Monday, November 3, 2025
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अबॉर्शन पर सुनवाई चल रही थी, नाबालिग की डिलीवरी हुई: 15 साल की रेप पीड़ित का केस; गुजरात हाईकोर्ट बोला- राज्य 6 महीने तक खर्च उठाए


गुजरात27 मिनट पहले

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गुजरात हाईकोर्ट में 15 साल की रेप पीड़ित की अबॉर्शन की सुनवाई के दौरान हुई डिलीवरी

अहमदाबाद की 15 साल की नाबालिग दुष्कर्म पीड़ित ने गुजरात हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान 28 अक्टूबर की दोपहर एक बच्ची को जन्म दिया है। यह सुनवाई 35 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति से जुड़ी याचिका पर हो रही थी।

कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह मां और बच्ची के सभी खर्च छह महीने तक उठाए, जिसमें डिलीवरी का खर्च भी शामिल है।

अबॉर्शन को लेकर क्या है कानून

जानिए क्या था पूरा मामला

नाबालिग के पिता ने 35 हफ्ते की गर्भावस्था खत्म करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। 24 अक्टूबर को आरोपी के खिलाफ मांडल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज हुई। कोर्ट ने सोला सिविल अस्पताल को मेडिकल जांच का आदेश दिया, लेकिन रिपोर्ट आने से पहले ही बच्ची का जन्म हो गया। जिसके बाद कोर्ट ने केस को निरर्थक बता दिया। नाबालिग को 25 अक्टूबर को अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तीन दिन बाद, 28 अक्टूबर की दोपहर प्रसव पीड़ा शुरू होने पर उसने 2.2 किलो वजन की बच्ची को जन्म दिया।

कोर्ट ने मां-बच्ची की जिम्मेदारी सरकार को दी

गुजरात हाईकोर्ट ने अहमदाबाद जिले के जांच अधिकारी और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को नाबालिग मां और उसकी बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी है। अदालत ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार छह महीने तक मां और बच्ची के इलाज, देखभाल और जरूरतों का पूरा खर्च उठाए।

साथ ही कोर्ट ने DLSA को आदेश दिया कि वह पीड़िता को अंतरिम मुआवजा दिलाए और यह सुनिश्चित करे कि सभी निर्देशों का पालन समय पर और सही तरीके से हो।

नाबालिग और बच्ची की सुरक्षा के निर्देश

अदालत ने कहा कि अगर नाबालिग चाहे, तो अपनी बच्ची को अहमदाबाद की किसी मान्यता प्राप्त गोद लेने वाली संस्था को सौंप सकती है। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) करेगी। वहीं, अगर नाबालिग परिवार के साथ नहीं रहना चाहती है, तो उसे महिला आश्रय गृह में रखा जाएगा, जहां उसकी पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था की जाएगी।

एडॉप्शन की प्रक्रिया कैसे होती है

कानून के अनुसार, अगर मां या परिवार नवजात की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता, तो जन्म के बाद चार महीने तक नवजात मां की कस्टडी में रह सकता है। इसके बाद उसे सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) के पोर्टल के जरिए गोद लेने की प्रक्रिया में लाया जाता है। गोद लेने के इच्छुक माता-पिता को ऑनलाइन आवेदन भरना होता है, जिसके बाद सरकारी अधिकारी दस्तावेजों की जांच करते हैं। प्रक्रिया पूरी होने पर एडॉप्शन कमेटी के माध्यम से बच्चे को नए परिवार में सौंपा जाता है।

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