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Aligarh famous Shami kebab: अलीगढ़ की गलियों में जैसे ही शाम ढलती है, मसालों की महक और तवे पर सिकते कबाबों की खुशबू हर किसी को अपनी ओर खींच लेती है. इन्हीं खुशबुओं के बीच जो स्वाद सबसे ज्यादा दिल जीत लेता है. वो है अलीगढ़ का मशहूर शामी कबाब. बाहर से कुरकुरा, अंदर से मुलायम और मसालों से भरपूर यह कबाब सिर्फ एक डिश नहीं बल्कि अलीगढ़ की खान-पान की पहचान बन चुका है.
अगर आप अलीगढ़ से होकर गुजर रहे हों और कहीं से मसालों की महक और तली हुई प्याज की खुशबू आपकी नाक तक पहुंचे तो समझ लीजिए आप किसी कबाब वाले ठेले या होटल के पास हैं. अलीगढ़ के शामी कबाब अपने स्वाद और नर्मी के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में मशहूर हैं. यहाँ के पुराने बाजार ऊपर कोर्ट इलाके और जमालपुर इलाके में कई दुकानों पर आपको ताज़ा तले हुए गरम-गरम शामी कबाब मिल जाएंगे.

अलीगढ़ मे शामी कबाब बनाने वाले दानिश बताते हैं कि इनकी खासियत ये है कि ये बाहर से हल्के कुरकुरे और अंदर से बेहद मुलायम होते हैं. इन्हें खाते ही चिकन के स्वाद के साथ दाल, और मसालों का मिश्रण मुँह में घुल जाता है. ये कबाब आमतौर पर चिकन या मटन के बनाए जाते हैं. लेकिन कई जगहों पर सिर्फ चिकन शामी कबाब ही उपलब्ध होते हैं. साथ में प्याज, नींबू और हरी चटनी इसका स्वाद दुगना कर देते हैं.

अगर बात रेट की करें तो अलीगढ़ के बाजारों में चिकन शामी कबाब की प्लेट ₹60 से ₹100 तक मिल जाती है. जिसमे क़वाब के 4 पीस चटनी, प्याज़ के साथ परोसे जाते हैं. वहीं, मटन के 4 पीस क़वाब की प्लेट की क़ीमत 200 रूपये की होती है. लेकिन दोनों तरह के क़वाब मे स्वाद का भरोसा पूरा मिलता है. शाम के वक्त जब दुकानों पर रौनक बढ़ती है तो लोग दूर-दूर से सिर्फ इन कबाबों का मजा लेने पहुंचते हैं.

अब बात करते हैं इसे बनाने की विधि की. क़वाब बनाने वाले दानिश बताते हैं कि असली शामी कबाब बनाने के लिए सबसे पहले 500 ग्राम चिकन में 100 ग्राम चना दाल, थोड़ा अदरक, लहसुन, काली मिर्च, जीरा, लौंग, इलायची और नमक डालकर धीमी आंच पर पकाया जाता है. जब पानी सूख जाए, तो उसे ठंडा करके मिक्सर में बारीक पीस लिया जाता है. इसमें हरी मिर्च, धनिया पत्ता और थोड़ा नींबू रस डालकर मिश्रण को गूंथ लिया जाता है.

अब इस मिश्रण से छोटे-छोटे टिक्के बनाए जाते हैं और इन्हें फेंटे हुए अंडे में डुबोकर हल्के तेल में सुनहरा तल लिया जाता है. जैसे ही ये कबाब सुनहरी खुशबू छोड़ने लगते हैं, तो बस समझ लीजिए कि यह तैयार हैं. अलीगढ़ के कई पुराने उस्ताद इन कबाबों को कोयले की धीमी आँच पर सेंकते हैं. जिससे इसमें एक खास स्मोकी फ्लेवर आ जाता है.फिर इन्हें प्याज और खट्टी चटनी के साथ भरोसा जाता है.

शामी कबाब सिर्फ एक स्नैक नहीं, बल्कि अलीगढ़ की पाक-परंपरा का अहम हिस्सा हैं. रमज़ान के महीने में इफ्तार के दौरान इनकी मांग सबसे ज़्यादा होती है. वहीं शादी-ब्याह या दावतों में भी अगर शामी कबाब ना हों तो खाने की टेबल अधूरी सी लगती है. स्थानीय लोग कहते हैं कि असली अलीगढ़ी कबाब वही है जो बिना किसी चटनी के भी लाजवाब लगे.

आज सोशल मीडिया और फूड ब्लॉगिंग के दौर में अलीगढ़ के शामी कबाब ने ऑनलाइन भी अपनी पहचान बना ली है. कई फूड व्लॉगर यहां आकर इनके टेस्ट पर वीडियो बनाते हैं. अगर आप अलीगढ़ आएं तो ऊपर कोर्ट या दोदपुर के पास किसी पुराने कबाबी की दुकान पर रुककर गरम-गरम शामी कबाब ज़रूर चखें. एक बार खाएंगे, तो इसका जायका जिंदगी भर याद रहेगा.

