Monday, December 1, 2025
Homeराज्यदिल्लीअल-फलाह की ‘सीक्रेट’ पार्किंग फर्जी, भास्कर की खबर पर मुहर: ED...

अल-फलाह की ‘सीक्रेट’ पार्किंग फर्जी, भास्कर की खबर पर मुहर: ED ने कहा- मरे लोगों के फेक साइन कराकर जमीन तरबिया फाउंडेशन के नाम कराई


नई दिल्ली39 मिनट पहलेलेखक: सुनील मौर्य

  • कॉपी लिंक

फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी ने दिल्ली के मदनपुर खादर में अपनी ‘सीक्रेट’ पार्किंग की जमीन फर्जी दस्तावेजों की मदद से रजिस्ट्री कराई थी। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शुक्रवार को दैनिक भास्कर के खुलासे पर मुहर लगा दी है।

भास्कर ने 20 नवंबर को बताया था कि जवाद ने मरे हुए लोगों के फर्जी साइन कराकर खसरा नंबर 792 की जमीन तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम करवाई गई थी। ED की जांच में पता चला है कि पहले जवाद के करीबी विनोद कुमार के नाम पर जमीन ट्रांसफर की गई, फिर फाउंडेशन को बेची गई।

हैरानी की बात यह है कि कई जमीन मालिकों की मौत साल 1972 और 1998 के बीच ही हो गई थी। इसके बावजूद, 2004 में जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) में मरे हुए लोगों के साइन या अंगूठे के निशान लिए गए थे।

ये मदनपुर खादर में तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन का एंट्री गेट है। दिल्ली ब्लास्ट में यूनिवर्सिटी का नाम आने के बाद गेट काले रंग से पोत दिया गया है। दीवार पर अल-फलहा यूनिवर्सिटी का नाम और एड्रेस लिखा है।

ये मदनपुर खादर में तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन का एंट्री गेट है। दिल्ली ब्लास्ट में यूनिवर्सिटी का नाम आने के बाद गेट काले रंग से पोत दिया गया है। दीवार पर अल-फलहा यूनिवर्सिटी का नाम और एड्रेस लिखा है।

फर्जीवाड़ा कैसे हुआ, ED ने अपनी जांच में बताया

ED ने बताया कि 7 जनवरी 2004 को खसरा नंबर 792 की जमीन पर एक GPA बनाई गई। इसे विनोद कुमार पुत्र भूले राम के नाम किया गया। इसमें सभी मृत जमीन मालिकों के नाम, उनके हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान दर्ज किए गए।

बाद में जमीनों को सेल डीड के जरिए विनोद ने 27 जून 2013 को ₹75 लाख में तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन को बेच दी। 21 दिसंबर 2012 को जवाद के नाम पर फाउंडेशन का रजिस्ट्रेशन हुआ था।

नाम, जिनकी मौत जमीन रजिस्ट्री से पहले हुई

  • नाथू: 1 जनवरी 1972 में दिल्ली के मदनपुर खादर में मौत।
  • हरबंस सिंह: 27 अप्रैल 1991 में दिल्ली के तेहखंड में मौत।
  • हरकेश: 12 जून 1993 में दिल्ली के पास ओखला में मौत।
  • शिव दयाल: दिल्ली के तुगलकाबाद में मौत।
  • जय राम: दिल्ली के तुगलकाबाद में मौत।

20 नवंबर: दैनिक भास्कर की पड़ताल में फर्जीवाड़ा सामने आया

दैनिक भास्कर की टीम 20 नवंबर को दिल्ली के कालिंदी कुंज थाने से करीब 300 मीटर दूर कच्चे रास्ते से गुजरने के बाद मदनपुर खादर पहुंची थी। कॉलोनी में सामने एक बड़ा गेट दिखा। उस पर हाल ही में उस पर काला पेंट किया गया था।

गेट के पास वाली दीवार पर लिखा था– अल-फलाह यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद। पहले गेट पर भी ये लिखा था, लेकिन दिल्ली बम ब्लास्ट के बाद उसे पेंट कर छिपा दिया गया है। अल-फलाह वही यूनिवर्सिटी है, जिसका नाम फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल से जुड़ा है।

इसी मॉड्यूल से जुड़े डॉ. उमर ने 10 नवंबर को लाल किले के पास कार में ब्लास्ट किया था, जिसमें 15 लोग मारे गए। 18 नवंबर को ED ने यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जवाद सिद्दीकी को मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार कर लिया। उन पर फर्जी तरीके से मान्यता लेने और 415 करोड़ रुपए का फर्जीवाड़ा करने का आरोप है।

यूनिवर्सिटी के अलावा जवाद अहमद के नाम पर 9 फर्जी कंपनियां हैं। इन्हीं में से एक तरबिया फाउंडेशन है। इसका रजिस्ट्रेशन 21 दिसंबर 2012 को हुआ था। इसमें दो डायरेक्टर हैं, जवाद अहमद सिद्दीकी और सूफियान अहमद सिद्दीकी।

लोगों में डर, बोले- रोज रात में कारें आती थीं

भास्कर टीम ने मदनपुर खादर में लोगों से तरबिया फाउंडेशन की जमीन के बारे में पूछा। कई लोग अल-फलाह यूनिवर्सिटी का नाम सुनते ही बात करने के लिए तैयार नहीं हुए। आखिर में एक बुजुर्ग महिला राजी हो गईं। उन्होंने बताया कि यहां अल-फलाह यूनिवर्सिटी की गाड़ियां आती-जातीं थीं।

उन्होंने बताया, ‘यहां रोज स्कूल की गाड़ियां आती हैं। कभी-कभी शाम को अंधेरा होने के बाद कारें भी आती हैं। पास में श्मशान घाट की जमीन है। उसी की जमीन पर ये फाउंडेशन बना है। पहले इसके गेट पर नाम लिखा था। दिल्ली में ब्लास्ट के बाद इसे हटा दिया। एक-दो दिन पहले ही गेट को पूरा काला कर दिया।’

यहीं हमें एक और शख्स मिले। वे डर की वजह से नाम नहीं बताते। हमने पूछा कि इस गेट पर क्या लिखा था। ये प्रॉपर्टी किसकी है। जवाब मिला, ‘गेट पर कोई नाम लिखा था। यहां यूनिवर्सिटी की गाड़ियां लगती हैं। इस जमीन पर केस भी चल रहा है।’

हमने पूछा कि दिल्ली में ब्लास्ट के बाद जिस यूनिवर्सिटी का नाम आया था, क्या ये प्रॉपर्टी उसी से जुड़ी है? इस पर वे कहते हैं, ‘आप दीवार पर नाम पढ़ लो। साफ लिखा है।’ इस बातचीत से दो जानकारियां मिलीं। एक कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी की गाड़ियां इस जगह खड़ी की जाती थीं और दूसरी कि ये जमीन विवादित है।

ये 2015 और 2025 की फोटो हैं। 2015 की फोटो में अंदर स्कूल बसें दिखाई दे रही हैं। गेट पर तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन का नाम लिखा है।

ये 2015 और 2025 की फोटो हैं। 2015 की फोटो में अंदर स्कूल बसें दिखाई दे रही हैं। गेट पर तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन का नाम लिखा है।

केयरटेकर बोला- ये जवाद अहमद का तरबिया फाउंडेशन है

हम काले रंग से पोते गए गेट पर पहुंचे। एक शख्स ने थोड़ा गेट खोला और बात करने लगा। वो केयरटेकर था। हमने कहा कि अंदर आना है। उसने जवाब दिया- गेट खोलने से मना किया गया है।

हमने पूछा कि इस जगह का नाम क्या है? केयरटेकर ने बताया तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम से है।

गेट पर काला रंग कब हुआ है? जवाब मिला- 3-4 दिन पहले। फिर बोला- इससे ज्यादा बात नहीं करूंगा।

बातचीत के दौरान केयरटेकर बार-बार चेहरा छिपाने की कोशिश करता रहा। हमने पूछा कि क्या ये जवाद अहमद सिद्दीकी का है। जवाब मिला- हां जी, उन्हीं का है।

ये शख्स तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के केयरटेकर हैं। सवाल पूछने पर झुंझलाते हुए बोले- बस हो गया। नाम बाहर लिखा है। इससे ज्यादा बात नहीं कर सकता। इतना कहकर गेट बंद कर दिया।

ये शख्स तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के केयरटेकर हैं। सवाल पूछने पर झुंझलाते हुए बोले- बस हो गया। नाम बाहर लिखा है। इससे ज्यादा बात नहीं कर सकता। इतना कहकर गेट बंद कर दिया।

आरोप- मर चुके 30 लोगों के फर्जी साइन कराकर प्रॉपर्टी हड़पी

ये बात साफ हो गई कि तरबिया फाउंडेशन अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी का ही है। इसके बाद हमने जमीन विवाद की पड़ताल शुरू की। करीब 3-4 किमी घूमने और लोगों से बात करने के बाद हमें पीड़ित मिल गए।

कोर्ट में जमीन का केस कुलदीप सिंह बिधूड़ी लड़ रहे हैं। हमने उनसे पूरे विवाद के बारे में पूछा। कुलदीप सिंह प्रॉपर्टी से जुड़े डॉक्यूमेंट दिखाते हुए कहते हैं, ‘हमारी मदनपुर खादर एक्सटेंशन में प्रॉपर्टी है। उसका खसरा नंबर 792 है। वह हमारे परिवार की जॉइंट प्रॉपर्टी है। वहां मेरे परिवार की और भी प्रॉपर्टी हैं।’

‘2015 में पता चला कि कुछ लोगों ने तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम पर रजिस्ट्री करा दी है। वहां बाउंड्री करा रहे हैं।’

‘मेरे परिवार के नत्थू सिंह का निधन 1972 में हो गया था। उनके नाम से 2004 में नकली GPA यानी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाई। 2004 की GPA से 2013-14 में तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम पर रजिस्ट्री करा दी। डॉ. जवाद अहमद सिद्दीकी उस फाउंडेशन का चेयरमैन है।’

ये नत्थू सिंह का डेथ सर्टिफिकेट है। इस पर मौत की तारीख 1 जनवरी 1972 की तारीख लिखी है।

ये नत्थू सिंह का डेथ सर्टिफिकेट है। इस पर मौत की तारीख 1 जनवरी 1972 की तारीख लिखी है।

‘हमें फर्जीवाड़े का पता चला, जब हमने रजिस्ट्री के कागजात निकलवाए। हमारे परिवार और आसपास के कई लोगों के नकली साइन कराकर रजिस्ट्री कराई गई थी। 25 से 30 ऐसे लोग हैं, जिनके नाम पर 2004 में नकली GPA बनवाई गई। ये लोग 2004 से पहले मर चुके थे। उनकी तीसरी पीढ़ी को प्रॉपर्टी ट्रांसफर हो चुकी है। इसके बाद भी जमीन अपने नाम करा ली।’

‘तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन जवाद अहमद सिद्दीकी का है। हमने 2015 में उनके खिलाफ थाने में शिकायत की। इसके बाद मुझे कई बार धमकी दी गई। मैंने कहा कि आप मुझे गोली मार दो, तभी चुप हो पाऊंगा, वर्ना लड़ाई लड़ता रहूंगा।’

विदेशी फंडिंग की जांच के लिए PMO को लेटर लिखा, लेकिन एक्शन नहीं कुलदीप सिंह आगे बताते हैं, ‘जिस तरह मुझे धमकी दी गई, हमारे साथ फर्जीवाड़ा किया गया, पुलिस अधिकारियों से शिकायत पर भी कार्रवाई नहीं होती थी, पैसों में हेराफेरी हुई, उससे शक हो गया था कि तरबिया फाउंडेशन को गलत तरीके से फंडिंग हो रही थी।’

‘मैंने 2015 में इसकी शिकायत PMO में की। कहा कि तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन की फंडिंग की जांच होनी चाहिए। इन्हें इतनी फंडिंग कहां से आ रही है। उन्होंने मेरे एडवोकेट को भी मैनेज कर लिया था। मैंने अपने बेटे को वकालत की पढ़ाई करवाई। अब वही एडवोकेट बनकर केस देख रहा है। आतंकियों के नेटवर्क का अल-फलाह यूनिवर्सिटी से कनेक्शन का पता चला है, तब से डर और बढ़ गया है।’

14 सितंबर 2015 को तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन की शिकायत PMO से की गई थी। इसमें विदेशी मदद लेने का आरोप लगाया गया था।

14 सितंबर 2015 को तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन की शिकायत PMO से की गई थी। इसमें विदेशी मदद लेने का आरोप लगाया गया था।

हमने पूछा कि अभी केस की क्या स्थिति है? कुलदीप कहते हैं, ‘आरोपियों के खिलाफ FIR हुई थी। उन्होंने कोर्ट में जाकर केस रुकवा दिए। हम इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गए। तब धमकाने के लिए मेरे ऊपर भी FIR की गई। दूसरे कई लोगों पर FIR दर्ज करा दी गई।’

ये जवाद अहमद के खिलाफ की गई शिकायत की कॉपी है। इसमें जमीन कब्जा करने के अलावा कार्रवाई न होने की बात लिखी है।

ये जवाद अहमद के खिलाफ की गई शिकायत की कॉपी है। इसमें जमीन कब्जा करने के अलावा कार्रवाई न होने की बात लिखी है।

मरने वालों के डेथ सर्टिफिकेट जारी, उनके भी फर्जी साइन कराए कुलदीप के आरोपों की पड़ताल के लिए हमने रजिस्ट्री विभाग की सर्टिफाइड कॉपी देखी। वे शिकायतें भी देखीं, जो फर्जीवाड़े के खिलाफ की गई थीं। इस दौरान स्टांप विभाग का 24 जून, 2013 का डॉक्यूमेंट मिला। इस पर मदनपुर खादर के खसरा नंबर-792 की रजिस्ट्री है।

प्रॉपर्टी की तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम पर रजिस्ट्री की गई थी। डॉक्यूमेंट पर जवाद अहमद सिद्दीकी की फोटो और साइन भी हैं।

प्रॉपर्टी की तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम पर रजिस्ट्री की गई थी। डॉक्यूमेंट पर जवाद अहमद सिद्दीकी की फोटो और साइन भी हैं।

कुल 1.146 एकड़ जमीन को 75 लाख रुपए में लेने का जिक्र है। ये जमीन 58 अलग-अलग लोगों के नाम पर थी, जिनसे जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाकर विनोद कुमार नाम के शख्स ने जवाद अहमद को बेची थी।

हमारी पड़ताल में पता चला कि जमीन के कागज पर जिन 58 लोगों का नाम हैं, इनमें से 30 लोगों की मौत 2004 से पहले हो चुकी थी।

हमारी पड़ताल में पता चला कि जमीन के कागज पर जिन 58 लोगों का नाम हैं, इनमें से 30 लोगों की मौत 2004 से पहले हो चुकी थी।

इस बारे में जानने के लिए हम नत्थू सिंह के परपोते धर्मेंद्र से मिले। वे कहते हैं, ‘तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन ने हमारे साथ फ्रॉड किया है। मेरे परदादा नत्थू सिंह की 1972 में डेथ हो गई थी। उनके चार बेटे थे। उनके बड़े बेटे लालचंद की 1987 में डेथ हो गई थी। दूसरे बेटे लिक्खी राम भी अब दुनिया में नहीं हैं।’

‘तीसरे बेटे रामपाल सिंह की 2012 में डेथ हुई थी। चौथे बेटे बाबू सिंह ने जवाद सिद्दीकी से सेटलमेंट कर लिया। उन्होंने बाकी तीन भाइयों का जिक्र ही नहीं किया और फर्जी तरीके से जमीन ले ली। हम लड़ाई लड़ रहे थे।’

धर्मेंद्र के परिवार से जुड़े बिजेंद्र कुमार बताते हैं, ‘मैं लाल चंद का बेटा हूं। मेरे दादा नत्थू सिंह की मौत 1972 में हुई तो 2004 में उनके साइन कैसे हो गए। ये फर्जीवाड़ा जवाद अहमद ने किया है।’

‘अंग्रेजी में साइन करता हूं, मेरे नाम से हिंदी में साइन कर जमीन हड़प ली’ यहीं रहने वाले भगत सिंह बताते हैं, ‘हमारी जमीन जेजे कॉलोनी में थीं। पता चला कि मेरे जाली साइन करके जमीन तरबिया फाउंडेशन को बेच दी गई है। हमने पुलिस में केस किया। इसके बाद तरबिया फाउंडेशन की तरफ से कई लोग आए। हमें धमकी देने लगे। एक का नाम डॉ. अब्बास करके कुछ था।’

‘हम 5 भाई हैं। सभी के जाली साइन करके जमीन हड़प ली गई। एक भाई का नाम प्रेम सिंह है। उनका नाम देवा सिंह लिखा है।’

साकेत कोर्ट ने जांच रोकी, दो सिविल केस जारी, हाईकोर्ट में केस पेंडिंग

इस पूरे मामले पर हमने कोर्ट से जानकारी जुटाई। पता चला कि कोर्ट ने जांच पर रोक लगा दी है। हालांकि, केस रद्द नहीं हुआ है। पीड़ित कहते हैं कि हम कोर्ट से जांच कर कार्रवाई की मांग करेंगे।

कोर्ट में अल-फलाह यूनिवर्सिटी की तरफ से पैरवी करने वाले एडवोकेट मोहम्मद रजी से हमने केस के स्टेटस और फर्जीवाड़े के बारे में पूछा। हालांकि उन्होंने कहा मैं ये केस नहीं देख रहा हूं। इस बारे में हमने अल-फलाह यूनिवर्सिटी से भी जानकारी मांगी है। उनका बयान मिलते ही स्टोरी में जोड़ेंगे।

इसके बाद हमने पीड़ितों के वकील दीपक से बात की। वे कहते हैं, ‘इस फर्जीवाड़े में सिविल और क्रिमिनल दोनों केस चल रहे हैं। क्रिमिनल केस में एक FIR 2015 की और दूसरी 2021 की है। ये केस साकेत कोर्ट में चल रहे थे। बाद में क्रिमिनल केस में कोर्ट ने जांच पर रोक लगा दी।’

‘इसके खिलाफ हमने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की है। इसी तरह दो सिविल केस भी चल रहे हैं। फर्जी तरीके से साइन कराकर जमीन की रजिस्ट्री कराने का मामला है। इसमें रजिस्ट्री रद्द कराने का मामला चल रहा है। ये अभी पेंडिंग है।’

जवाद अहमद के खिलाफ दर्ज FIR में गलत तरीके से जमीन खरीदने के अलावा धमकाने के आरोप भी लगाए गए थे।

जवाद अहमद के खिलाफ दर्ज FIR में गलत तरीके से जमीन खरीदने के अलावा धमकाने के आरोप भी लगाए गए थे।

7 साल में अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने कमाए 415 करोड़ रुपए

अब तक की जांच में पता चला है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी ने सात साल में 415 करोड़ रुपए की कमाई की है। यूनिवर्सिटी से जुड़ी 9 शेल कंपनियां भी मिली हैं। एक ही पैन नंबर से सभी का लेनदेन हो रहा था। साफ है कि सभी का काम एक ही ट्रस्ट से हो रहा था।

ED ने 18 नवंबर को अल-फलाह यूनिवर्सिटी के फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद सिद्दीकी को एडिशनल सेशन जज शीतल चौधरी प्रधान के सामने पेश किया गया। कोर्ट ने उन्हें 13 दिन की कस्टडी में भेज दिया।

ED ने कोर्ट में बताया कि 2018-19 और 2024-25 के बीच अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने करीब 415.10 करोड़ रुपए की कमाई हुई। ED का तर्क है कि ये रकम उस वक्त कमाई गई जब यूनिवर्सिटी ने गलत तरीके से मान्यता ले रखी थी। इस तरह ये कमाई अपराध है।

ED ने अल-फलाह ग्रुप के खिलाफ दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की तरफ से दर्ज दो FIR के आधार पर जांच शुरू की थी। इनमें आरोप लगाया गया था कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी ने छात्रों और अभिभावकों को धोखा देने के लिए NAAC मान्यता के बारे में झूठे दावे किए हैं। यह यूनिवर्सिटी अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट चलाता है।

अल-फलाह यूनिवर्सिटी के 10 लोग लापता, दिल्ली ब्लास्ट से जुड़े होने का शक दिल्ली में लाल किले के पास हुए कार ब्लास्ट के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े 10 लोग लापता हैं। उनके फोन भी बंद है। जांच एजेंसी को शक है कि ये सभी ब्लास्ट में शामिल हो सकते हैं। वहीं जांच एजेंसियों ने खुलासा किया है कि विस्फोटक से भरी कार उड़ाने वाला डॉ. उमर नबी अपने जैसे और सुसाइडल बॉम्बर तैयार करने की साजिश रच रहा था। इसके लिए वह वीडियो बनाकर युवाओं को भेजता था।

दिल्ली ब्लास्ट में अब तक डॉ. मुजम्मिल, डॉ. आदिल और डॉ. शाहीन समेत 8 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। इनके अलावा अलफलाह यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाला डॉ. उमर कश्मीर के पुलवामा का रहने वाला है। दिल्ली में ब्लास्ट वाली कार उमर ही चला रहा था।

……………………………….. दिल्ली ब्लास्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें

ब्लास्ट की साजिश का अड्डा अल-फलाह का रूम नंबर-13

दिल्ली कार ब्लास्ट में डॉक्टर टेटर मॉड्यूल के बाद अगर सबसे ज्यादा चर्चा में है, तो वो फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी है। यहीं बिल्डिंग नंबर-17 का रूम नंबर-13 वो जगह है, जहां बड़े हमले को अंजाम देने की साजिश रची जा रही थी। डॉ. उमर और मुजम्मिल ने यहीं बैठकर फंडिंग से लेकर विस्फोटक जुटाने तक का प्लान बनाया और उस पर काम किया। पढ़िए पूरी खबर

खबरें और भी हैं…



Source link

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments