आचार्य वर्धमान जी महाराज का आशीर्वाद लेने के लिए खड़े जैन समाज के लोग।
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने कहा कि हमारी और परमात्मा की आत्मा एक जैसी है, उनके जैसे हमें भी परमात्मा बनने की योग्यता है, आत्मा से कर्मों को हटाने पर ही चारों गतियों में जन्म-मरण नहीं होगा। आत्मा की शक्ति ज्ञान और पुरुषार्थ से करने पर प्राप्त होती
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आचार्य जी ने जैन नसिया में शुक्रवार को धर्मसभा में कहा कि प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने जैन धर्म संस्कृति ,जिनालय संरक्षण, जिनवाणी संरक्षण पर महत्वपूर्ण अविस्मरणीय योगदान दिया है। शांति सागर जी तीर्थ उदाहरण रहे हैं । उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में मिथ्यात्व का त्याग कराया।
जैनवाडी ग्राम के जिन मंदिरों में ताले लगे थे, उन्हें समाज की धारा में वापस जैन समाज को जोड़ा। सामाजिक कुरीति बाल विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट बनाने की प्रेरणा दी।
आचार्य जी का पाद प्रक्षालन करते जैन समाज के लोग।
राजेश पंचोलिया के अनुसार आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री हितेंद्र सागर जी महाराज ने आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की गृहस्थ अवस्था से दीक्षा,उपवास, उपसर्ग, व्रत परिसंख्यान,समाधि तक के अनेक प्रसंग बताए। वर्तमान में शेडवाल, कुंभोंज बाहुबली आदि स्थानों पर विद्यार्थियों के लिए गुरुकुल की स्थापना कराई। उन्होंने कहा कि सम्मेदशिखर जी की जो भी भाव दर्शन वंदना करता हैं उसे नरक नहीं मिलता है।
आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य भंवर लाल, राकेश कुमार, पवन कुमार, मनीष कुमार चांदसेन वाले परिवार जयपुर को मिला। शुक्रवार को निर्मोहीमति जी माताजी का केश लोचन हुआ।

