आशा सहयोगिनियों का कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन
मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ मानी जाने वाली आशा सहयोगिनियों ने एक बार फिर अपनी उपेक्षा और बढ़ते काम के बोझ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जिले की सैकड़ों आशा सहयोगिनियां सोमवार को कलेक्ट्रेट पहुंची और जमकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जिला कलेक्टर
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मुख्य काम मातृ-शिशु सेवा, लेकिन थोपे जा रहे अतिरिक्त भार
प्रदर्शन कर रहीं आशाओं ने बताया कि उनका मूल काम मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं देना है, लेकिन विभाग की ओर से उन्हें कई ऐसे कार्यों में लगाया जा रहा है जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। टीबी मरीजों के बलगम सैम्पल इकट्ठा करने से लेकर आयुष्मान भारत योजना के तहत आभा आईडी और कार्ड बनवाने तक का कार्य उनसे करवाया जा रहा है। इसके कारण न केवल उनकी मूल सेवाओं में बाधा आ रही है, बल्कि उन्हें फील्ड में कई तकनीकी और सामाजिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
पंचायत सर्वे से लेकर डिजिटल कार्यों तक का भार
आशाओं ने बताया कि हाल ही में ग्राम पंचायत स्तर पर कराए जा रहे विभिन्न सर्वे और जनगणना जैसे कार्य भी उन्हीं से करवाए जा रहे हैं। जबकि यह कार्य पंचायती राज या अन्य विभागों से संबंधित हैं। इन कार्यों के लिए किसी प्रकार का अतिरिक्त मानदेय या प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। दूसरी ओर, जब वे ऐसे कार्यों में देरी करती हैं तो अधिकारी उन्हें नोटिस देने और सेवा से हटाने की धमकी तक दे रहे हैं।
डॉक्टर-एएनएम की शर्तें और उत्पीड़न
प्रदर्शन के दौरान कुछ आशाओं ने बताया कि जब वे किसी कार्य को तकनीकी कारणों से नहीं कर पातीं, तो डॉक्टर और एएनएम द्वारा क्लेम फार्म पर साइन नहीं किए जाते। इससे उनका मेहनताना अटक जाता है। यह स्थिति मानसिक प्रताड़ना की तरह है, जहां उन्हें मजबूरी में हर वह कार्य करना पड़ता है जो उनसे कहा जाए, चाहे वह उनके दायित्व से बाहर ही क्यों न हो।
मानदेय समय पर नहीं, 10% बढ़ोतरी भी लंबित
आशा सहयोगिनियों ने बताया कि उन्हें प्रतिमाह मिलने वाला मानदेय अक्सर समय पर नहीं मिलता। कई बार दो से तीन माह तक भुगतान लंबित रहता है, जिससे घर चलाना मुश्किल हो जाता है। आशाओं का कहना है कि विभाग ने 10 प्रतिशत मानदेय बढ़ाने की घोषणा की थी, लेकिन वह राशि आज तक उनके खातों में नहीं पहुंची। प्रदर्शन कर रहीं आशा कार्यकर्ता कमला देवी ने कहा, “हम दिन-रात मेहनत करते हैं, गांवों में जाकर गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की देखरेख करते हैं, लेकिन जब अपने हक की बात करते हैं तो हमें नजरअंदाज कर दिया जाता है।”
न्यूनतम मानदेय 26 हजार की मांग
आशाओं ने यह भी कहा कि उनका कार्य एएनएम और डॉक्टरों से कम नहीं है। कई बार तो वे गांवों में अकेले जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देती हैं, जहां डॉक्टर या एएनएम नहीं पहुंचते। बावजूद इसके उन्हें ना के बराबर मानदेय दिया जा रहा है। उन्होंने न्यूनतम 26 हजार रुपए प्रति माह मानदेय देने की मांग की है, ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।
ड्यूटी समय निर्धारित करने की मांग
ज्ञापन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आशाओं की कोई निश्चित ड्यूटी समयावधि नहीं है। उन्हें कभी भी किसी भी समय बुला लिया जाता है। इससे उनका पारिवारिक जीवन भी प्रभावित हो रहा है। आशाओं ने मांग की है कि उनकी ड्यूटी का समय तय किया जाए और उसके बाद उन्हें काम के लिए बाध्य नहीं किया जाए।
आंदोलन की चेतावनी
आशा सहयोगिनियों ने स्पष्ट कहा कि यदि जल्द उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया और उन्हें राहत नहीं दी गई तो वे जिलेभर में बड़ा आंदोलन शुरू करेंगी। इसका जिम्मेदार जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग होगा। ज्ञापन में मांग की गई कि विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया जाए कि वे आशाओं को मूल कार्य से हटाकर अतिरिक्त कार्य न दें और किसी भी प्रकार की मानसिक प्रताड़ना से बचाएं।