Air Pollution: हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि 2015 से नवंबर 2025 के बीच भारत के किसी भी बड़े शहर में हवा की क्वालिटी ‘सुरक्षित स्तर’ पर दर्ज नहीं की गयी. इस पूरी अवधि में दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर बना रहा. यह विश्लेषण ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ (दिल्ली स्थित जलवायु अनुसंधान संगठन) द्वारा शुक्रवार (28 नवंबर) को ‘प्रमुख भारतीय शहरों का एयर क्वालिटी आकलन (2015-2025)’ शीर्षक से जारी किया गया.
नवीनतम विश्लेषण से पता चलता है कि 2015 से नवंबर 2025 के बीच 11 शहरों में से दिल्ली में एयर क्वालिटी सबसे ज्यादा खराब रही. राष्ट्रीय राजधानी में वार्षिक औसत एक्यूआई स्तर 2016 में सबसे अधिक (250 से अधिक) था और 2019 से इसमें गिरावट देखी गयी है. हालांकि यह अभी भी सुरक्षित स्तर से बहुत दूर है. 2025 में एक्यूआई 180 रहा. दिल्ली के बाद लखनऊ, वाराणसी, अहमदाबाद और पुणे का स्थान है, जहां लंबे समय तक एक्यूआई का स्तर ऊंचा रहा. विश्लेषण में कहा गया है, “लखनऊ और वाराणसी में शुरुआत बेहद उच्च स्तर (अक्सर 200 से ऊपर) से हुई थी. हालांकि 2019 के बाद दोनों शहरों में लगातार सुधार हुआ है, फिर भी 2025 तक इनका एक्यूआई मान स्वस्थ सीमा से ऊपर बना रहेगा.”
पश्चिमी और दक्षिणी शहरों – जैसे चेन्नई, चंडीगढ़, विशाखापत्तनम, मुंबई और बेंगलुरु – की तुलना में उत्तरी शहरों – जैसे दिल्ली, लखनऊ और वाराणसी – में एयर क्वालिटी का स्तर विशेष रूप से सर्दियों के दौरान क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण अधिक होता है. समस्या यह है कि ये उत्तरी शहर चारों ओर से लैंडलाक्ड हैं, क्योंकि सिंधु-गंगा का मैदान हिमालय से घिरा हुआ है. इस कारण प्रदूषक फंस जाते हैं और फैल नहीं पाते. इसके अलावा विश्लेषण में कहा गया है, “शहरों के भीतर घनी शहरी संरचनाएं अतिरिक्त ‘सतह खुरदरापन’ पैदा करती हैं, जो एक फ्रिक्शन या घर्षण प्रभाव है जो हवा की गति को और धीमा कर देता है और फैलाव को सीमित कर देता है.”
सर्दियों में स्थिति और भी बदतर
गर्मियों में मानसून के दौरान बारिश और तेज पश्चिमी हवाएं प्रदूषकों को तितर-बितर करने में मदद करती हैं, लेकिन सर्दियों में स्थिति और भी बदतर हो जाती है. इस दौरान दिल्ली विशेष रूप से प्रभावित होती है क्योंकि यह उत्तर में हिमालय से घिरी एक विशाल, समतल घाटी के बीच में स्थित है. विश्लेषण में कहा गया है, “सर्दियों (दिसंबर-फरवरी) के दौरान ग्रहीय सीमा परत (वायुमंडल का सबसे निचला भाग) में हवा पतली होती है क्योंकि पृथ्वी की सतह के पास ठंडी हवा सघन होती है. ठंडी हवा ऊपर की गर्म हवा के नीचे फंस जाती है, जिससे एक प्रकार का वायुमंडलीय ‘ढक्कन’ बन जाता है. इस घटना को विंटर इंवर्सन या शीतकालीन व्युत्क्रमण कहते हैं. चूंकि हवा की वर्टिकल मिक्सिंग केवल इसी परत के भीतर होता है, इसलिए उत्सर्जित प्रदूषकों को वायुमंडल में फैलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती.”

