Monday, July 7, 2025
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औरंगजेब को चौंकाने वाला ‘नन्हा गुरु’, मुसलमानों ने ‘बाला पीर’ कहकर झुकाया सिर


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इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं, जहां किसी ने इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी आध्यात्मिक ऊंचाई हासिल की हो. गुरु हर किशन सिंह जी ने बहुत कम उम्र में गुरु गद्दी संभाली. उन्होंने अपने आचरण से औरंगजेब को भी चौंका दिय…और पढ़ें

गुरु हर किशन सिंह के दिल्ली में आने पर औरंगजेब भी चौंक गया था.(Image: Social Media)

नई दिल्ली. सिख इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं, जहां किसी ने इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी आध्यात्मिक ऊंचाई हासिल की हो. गुरु हर किशन सिंह जी ने न सिर्फ कम उम्र में गुरु गद्दी संभाली बल्कि अपने जीवन में जो करुणा, सेवा और समर्पण का भाव दिखाया, वह आज भी लाखों दिलों को प्रेरणा देता है. गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म 7 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब, पंजाब में हुआ था. वे गुरु हर राय जी और माता कृष्ण कौर (सुलक्षणी) के छोटे पुत्र थे. गुरु हर राय जी ने अपने बड़े पुत्र राम राय को गुरु परंपरा से हटने के कारण गुरु गद्दी से वंचित कर दिया था और सिर्फ 5 साल की उम्र में हर किशन जी को अष्टम गुरु घोषित कर दिया.

इस निर्णय से राम राय नाराज हो गया और मुगल सम्राट औरंगजेब से शिकायत कर दी. औरंगजेब ने जानना चाहा कि आखिर ये छोटा-सा बालक कैसे सिखों का मार्गदर्शक बन गया है. उसने दिल्ली के राजा जय सिंह को गुरु जी को दरबार में बुलाने का आदेश दिया. गुरु जी ने पहले तो आने से मना किया, लेकिन संगत और जय सिंह के आग्रह पर वे दिल्ली आए. दिल्ली उस समय हैजा और चेचक की महामारी से जूझ रही थी. राजा जय सिंह ने उन्हें अपने बंगले में ठहराया, जो आज गुरुद्वारा बंगला साहिब के नाम से प्रसिद्ध है. यहां रहकर गुरु हर किशन सिंह जी ने बिना भेदभाव के बीमारों की सेवा की. अपने नन्हे हाथों से पानी पिलाया, मलहम लगाया और ढांढस बंधाया. उनकी सेवा देख दिल्ली के मुसलमान भी श्रद्धा से नतमस्तक हो गए और उन्हें ‘बाला पीर’ कहना शुरू कर दिया.

सेवा करते-करते गुरु जी खुद भी चेचक की चपेट में आ गए. कई दिनों तक बीमार रहने के बाद जब उनका अंत समय आया, तो उन्होंने अपनी माता को संकेत दिया- ‘बाबा बकाला’. यह इशारा था कि अगला गुरु बकाला गांव में मिलेगा. यह संकेत बाद में गुरु तेग बहादुर जी के रूप में पूरा हुआ. 3 अप्रैल 1664 को मात्र 8 साल की उम्र में गुरु हर किशन सिंह जी ने इस संसार को अलविदा कहा. उनकी मृत्यु के बाद जिस स्थान पर वे ठहरे थे, वही आज गुरुद्वारा बंगला साहिब के रूप में श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है.

गुरु हर किशन सिंह जी की जीवनगाथा सिर्फ सिखों के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए सेवा, सहानुभूति और परोपकार की मिसाल है. उन्होंने यह दिखा दिया कि उम्र नहीं, भावना ही किसी को महान बनाती है.

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Rakesh Singh

Rakesh Singh is a chief sub editor with 14 years of experience in media and publication. International affairs, Politics and agriculture are area of Interest. Many articles written by Rakesh Singh published in …और पढ़ें

Rakesh Singh is a chief sub editor with 14 years of experience in media and publication. International affairs, Politics and agriculture are area of Interest. Many articles written by Rakesh Singh published in … और पढ़ें

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