एम्स भोपाल में किया जाएगा इलाज।
कटने, जलने, मुंहासे या कान छिदवाने के बाद उभरने वाले कठोर घाव यानी कीलोइड अब रहस्य नहीं रहेंगे। साथ ही, मरीजों के लिए यह जीवनभर की पीड़ा भी नहीं बनेंगे। एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने पहली बार ऐसा स्केल तैयार किया है जो इन कीलोइड्स के दर्द, संक्रमण और असर
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अब तक डॉक्टर इन घावों को सामान्य स्केल से मापते थे, जो इस विशेष हिस्से की जटिलता को नहीं समझ पाता था। एम्स भोपाल की यह खोज न केवल मरीज की पीड़ा को अंकों में बदल देगी बल्कि इलाज के असर को भी वैज्ञानिक रूप से माप सकेगी। इस रिसर्च को Cureus Journal में हाल ही में प्रकाशित किया गया है।
कीलोइड त्वचा पर बनने वाले उभरे हुए, चमकदार और चिकने निशान होते हैं। जो कट, घाव, मुंहासे या सर्जरी के बाद बनते हैं। आम तौर पर छाती, कंधों या कानों पर दिखाई देते हैं।
अब तक नहीं था कोई सटीक पैमाना कीलोइड त्वचा की वह स्थिति है जिसमें चोट के बाद शरीर का ऊतक जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगता है और उभरी हुई कठोर गांठ का रूप ले लेता है। खासकर प्री-स्टर्नल कीलोइड यानी सीने के बीच की हड्डी के ऊपर बनने वाले कीलोइड अत्यधिक दर्दनाक और संवेदनशील होते हैं। ये लगातार खुजली, दर्द, लालिमा और कभी-कभी संक्रमण या मवाद बनने जैसी समस्याएं पैदा करते हैं।

एम्स भोपाल।
एम्स भोपाल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. मनाल खान और उनकी टीम ने पाया कि दुनिया में अब तक इस्तेमाल होने वाले स्केल जैसे वैनकूवर स्कार स्केल (VSS), पेशेंट एंड ऑब्जर्वर स्कार असेसमेंट स्केल (POSAS) और डेट्रॉइट कीलोइड स्केल (DKS), इन जटिल कीलोइड के लिए कारगर नहीं थे।
इन स्केल्स में दर्द, खुजली और संक्रमण के साथ-साथ मरीज की मानसिक स्थिति या जीवन पर प्रभाव का कोई सटीक आकलन नहीं किया जा सकता था। इसलिए नए स्केल की खोज की गई।
AIIMS का नया स्केल इसलिए खास

एम्स भोपाल।
एम्स भोपाल का यह नया स्केल दो हिस्सों में बंटा
- पहला हिस्सा मरीज का अनुभव (Patient Score) दर्ज करता है। इसमें खुजली, दर्द, संक्रमण और नींद पर असर जैसे लक्षणों को 0 से 3 अंक तक रेट किया जाता है।
- दूसरा हिस्सा डॉक्टर का मूल्यांकन (Observer Score) है। इसमें कीलोइड की मोटाई, फैलाव, लचीलापन, रंग, सूजन और स्राव को 0 से 4 अंक तक मापा जाता है।
इस तरह यह स्केल डॉक्टर की ऑब्जर्वेशन और मरीज की भावना, दोनों को जोड़कर कीलोइड की गंभीरता को वैज्ञानिक रूप में दर्शाता है।
कैसे करेगा इलाज में मदद यह स्केल डॉक्टरों को यह समझने में मदद करेगा कि किस मरीज को किस तरह का उपचार देना अधिक प्रभावी रहेगा। एम्स के डॉक्टरों के अनुसार, इस स्केल से इलाज के पहले और बाद के परिणामों की तुलना आसान होगी।
यानी डॉक्टर यह देख पाएंगे कि इलाज के बाद दर्द या संक्रमण कितना कम हुआ।यह स्केल सर्जरी, लेजर, स्टेरॉयड इंजेक्शन और प्रेशर थेरेपी जैसे उपचारों की प्रभावशीलता का तुलनात्मक अध्ययन करने में भी मदद करेगा। यह भविष्य में AI-असिस्टेड पेन मैपिंग जैसे डिजिटल हेल्थ टूल्स के साथ भी जोड़ा जा सकता है, जिससे डॉक्टर एक क्लिक पर कीलोइड की स्थिति की रिपोर्ट तैयार कर सकें।
पहली बार फिजिकल और सायकोलॉजिकल दोनों पहलू जुड़े एम्स भोपाल का यह स्केल अब तक के सभी स्केल से इसलिए अलग है क्योंकि इसमें फिजिकल पैरामीटर्स के साथ-साथ मरीज की क्वालिटी ऑफ लाइफ (Quality of Life) को भी शामिल किया गया है।टीम का कहना है कि अक्सर मरीज कीलोइड के कारण दर्द और खुजली से ज़्यादा उसके दिखने से परेशान रहता है, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है।
यह स्केल इस प्रभाव को भी मापता है। यानी अब डॉक्टर केवल दाग नहीं, बल्कि मरीज के मानसिक बोझ को भी उपचार का हिस्सा बना पाएंगे।
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