क्या आपको भी जेल जैसा लगता है ऑफिस, इसकी वजह साइकोपैथ बॉस तो नहीं? रिसर्च में हुआ खुलासा

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क्या आपको भी जेल जैसा लगता है ऑफिस, इसकी वजह साइकोपैथ बॉस तो नहीं? रिसर्च में हुआ खुलासा



<p style="text-align: justify;">वर्कप्लेस, एक ऐसी जगह जहां हर कोई प्रोफेशनल अपने दिन का अ​धिकांश समय गुजरता है. लेकिन कई बार यहां सिचुएशन टेंस हो जाती है. वर्क कल्चर इस कदर टाॅ​क्सिक एनवायरनमेंट में बदल जाता है कि ऑफिस एक जेल की तरह महसूस होने लगता है. इसके पीछे वजह कुछ भी सकती है. लेकिन हाल ही में सामने आई रिसर्च में दावा किया गया है कि ऐसा बाॅस के साइकोपैथ (मनोरोगी) ​​डिसऑर्डर के जूझने से भी हो सकता है. आ​खिर रिसर्च क्या कहती है और कब ऑफिस एक जेल में बदलता हुआ फील होता है, आइए जानते हैं…</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>जेल में कैसे बदल रहा ऑफिस?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">एक स्टडी में सामने आया कि काॅर्पोरेट बाॅस में पांच में से एक में साइकोपैथ (मनोरोगी) के लक्षण हो सकते हैं. जेल में कैदियों में भी इसी दर से मनोरोगी सामने आते हैं. बाॅस के बिहेवियर का असर वर्क एनवायरनमेंट पर पड़ता है. ऐसे में स्टडी में सामने आए आंकड़ों पर गाैर किया जाए तो वर्कप्लेस का माहाैल जेल जैसा होता जा रहा है. वहीं सामान्य लोगों में 100 में से एक में साइकोपैथ के लक्षण दिखाई देते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ऐसे की गई रिचर्स</strong></p>
<p style="text-align: justify;">रिसर्चर्स ने सप्लाई चेन मैनेजमेंट में काम करने वाले 261 प्रोफेशन पर स्टडी की. इस दाैरान रिसर्चर्स ने पाया कि 21 परसेंट में सहानुभूति की कमी, इनसिंसेरिटी, चार्म और सेल्फिशनेस जैसे लक्षण थे. ये लक्षण वर्कप्लेस पर अनइथिकल बिहेवियर, मैनिपुलेशन और टाॅ​क्सिक वर्क एनवायरनमेंट का कारण बन सकते हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्यों आ रही दिक्कत?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">काॅर्पोरेट में आ​खिर इस तरह की दिक्कत क्यों आ रही है. इसको लेकर भी रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी में बताया है. स्टडी के अनुसार कंपनियां प्रोफेशनल के रिक्रूमेंट के दाैरान योग्यता पर ध्यान देती हैं, लेकिन पर्सनालिटी पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता. ऐसे में स्मार्ट और आक​र्षित लगने वाले मनोरोगी चयनित कर लिए जाते हैं, जो बाद में वर्कप्लेस पर मुसीबत पैदा कर सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये हो सकता है समाधान</strong></p>
<p style="text-align: justify;">रिसर्चर्स का मानना है कि कंपनियों को रिक्रूटमेंट करने से पहले कैंडिडेट्स के करेक्टर को परखना चाहिए. इसके बाद क्वालिफिकेशन की जांच होनी चाहिए. इससे कंपनियां मनोरोगी पेशेवर की भर्ती से बच सकती हैं. इसको लेकर रिसर्चर्स की ओर से एक टूल भी तैयार किया गया है, जो रिक्रूटमेंट के दाैरान कंपनियों की मदद कर सकता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>साइकोपैथ व्यक्ति में दिख सकते हैं ये लक्षण</strong></p>
<ul>
<li style="text-align: justify;">जरूरत से ज्यादा गुस्सा आना और आक्रामक स्वभाव.</li>
<li style="text-align: justify;">मन में कानून या समाज का कोई डर नहीं होता.</li>
<li style="text-align: justify;">हिंसा या अपराध करने के बाद मन में कोई पछतावा भी नहीं होता.</li>
<li style="text-align: justify;">किसी की परवाह न करना और इमोशन कम होना.</li>
<li style="text-align: justify;">हिंसा को देखकर खुश होना.</li>
<li style="text-align: justify;">10 से 12 साल की उम्र पार करते ही अपराध करने की तरफ बढ़ना.</li>
<li style="text-align: justify;">किसी बात पर अचानक गुस्सा होना और व्यवहार में बदलाव आना.</li>
<li style="text-align: justify;">दूसरे व्यक्ति के दुख या दर्द को न समझना.</li>
</ul>
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<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>



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