क्या लड़कियों के साथ रहने से मैच हो जाती है उनकी पीरियड डेट? ये रहा सच

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क्या लड़कियों के साथ रहने से मैच हो जाती है उनकी पीरियड डेट? ये रहा सच



<p style="text-align: justify;">अक्सर कहा जाता है कि अगर लड़कियां हॉस्टल, कॉलेज डोरमेट्री या परिवार में एक साथ रहती हैं तो उनके पीरियड्स आपस में सिक्रनाइज हो जाते हैं. सवाल यह उठता है कि इस तथ्य के पीछे हकीकत क्या है या यह महज एक मिथ है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है? आइए जानते हैं इस मामले में क्या कहता है विज्ञान?</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>मैक्लिंटॉक इफेक्ट क्या है?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">साल 1971 के दौरान मार्था मैक्लिंटॉक ने अपने एक रिसर्च लेटर में दावा किया कि एक साथ रहने वाली 135 कॉलेज स्टूडेंट्स के पीरियड्स समय के साथ सिंक्रनाइज हो गए. रिसर्च में यह बात सामने आई कि हॉस्टल में रहने वाली सभी लड़कियों के पीरियड्स शुरू होने की तारीख धीरे-धीरे करीब आ गईं. मैक्लिंटॉक ने इसे फेरोमोन्स (रासायनिक संकेतों) का असर बताया. उनका दावा था कि फेरोमोन्स एक महिला के शरीर से निकलकर दूसरी महिला के पीरियड्स को प्रभावित करते हैं. इस सिद्धांत के अनुसार, जब महिलाएं एक साथ समय बिताती हैं तो फेरोमोन्स एक-दूसरे के हार्मोनल सिस्टम पर असर डालते हैं, जिससे उनके पीरियड्स की तारीखें करीब आ जाती हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या कहती है नई रिसर्च?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मैक्लिंटॉक के बाद कई रिसर्चर्स ने इस स्टडी को दोहराने की कोशिश की तो मिले-जुले नतीजे सामने आए. कई स्टडी में मैक्लिंटॉक इफेक्ट को सपोर्ट किया तो कुछ ने इसे सिर्फ संयोग बताया. आइए जानते हैं कि अलग-अलग रिसर्च में क्या बातें सामने आईं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और क्लू ऐप की स्टडी (2017)</strong></p>
<p style="text-align: justify;">2017 के दौरान ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और पीरियड ट्रैकिंग ऐप क्लू ने मिलकर करीब 1500 महिलाओं का डेटा चेक किया. इस स्टडी में 360 जोड़ियां बनाई गईं, जिनमें करीबी रिश्ते वाली महिलाएं जैसे रूममेट्स या दोस्त थीं. रिसर्चर्स ने हर जाड़ी के कम से कम तीन पीरियड्स साइकल को चेक किया. 273 जोड़ियों में पीरियड्स की शुरुआत की तारीखों में अंतर बढ़ गया, जबकि महज 79 जोड़ियों में यह अंतर कम हुआ. इसका मतलब यह हुआ कि पीरियड्स का सिंक्रनाइज होने की जगह ज्यादातर मामलों में पीरियड्स की तारीख अलग हो गईं. इस स्टडी में सामने आया कि एक साथ रहने से सिंक्रनाइज के आसार नहीं बढ़ते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>चीनी कॉलेज की स्टूडेंट्स पर स्टडी (2006)</strong></p>
<p style="text-align: justify;">2006 के दौरान झेंगवेई यांग और जेफरी शैंक ने 186 चीनी कॉलेज छात्राओं पर एक साल से अधिक समय तक स्टडी की. इन छात्राओं को 4 से 8 के ग्रुप में डोरमेट्री में रखा गया. रिसर्चर्स ने पाया कि इन महिलाओं के पीरियड्स की तारीख सिंकनाइज नहीं हुईं. इसकी जगह पीरियड्स की शुरुआत में अंतर संयोग के आधार पर ही देखा गया. इस स्टडी में सामने आया कि पीरियड्स में डिफरेंस, लंबाई की वजह से पीरियड्स ओवरलैप हो सकते हैं, लेकिन यह फेरोमोन्स या सामाजिक निकटता का नतीजा नहीं है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स पर स्टडी (2023)</strong></p>
<p style="text-align: justify;">2023 के दौरान भारत में मेडिकल छात्राओं पर हुई एक स्टडी में मैक्लिंटॉक इफेक्ट का कुछ हद तक सपोर्ट किया गया. इस स्टडी में 62 स्टूडेंट्स को शामिल किया गया, जो हॉस्टल में दो-दो ग्रुप में रहती थीं. 13 महीनों तक उनके पीरियड्स की तारीख चेक की गइं. नतीजों में 54.8% जोड़ियों में पीरियड्स की शुरुआत की तारीखें करीब आईं, जिसे रिसर्चर्स ने सिंक्रनाइज का संकेत माना. हालांकि, स्टडी में यह भी माना गया कि फेरोमोन्स को रासायनिक रूप से अलग नहीं किया जा सका है. इसकी पुष्टि के लिए ज्यादा रिसर्च की जरूरत है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>यह मिथ इतना क्यों लोकप्रिय?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मिले-जुले नतीजों के बावजूद पीरियड्स सिंक्रनाइज की यह धारणा आज भी सुर्खियों में रहती है. दरअसल, कई महिलाएं उन मौकों को ज्यादा याद रखती हैं, जब उनके पीरियड्स किसी सहेली या रूममेट के साथ मैच कर गए. वे ऐसे मौकों को भूल जाती हैं, जब ऐसा नहीं हुआ. वहीं, औसत मासिक धर्म चक्र 28 दिन का होता है, लेकिन यह 21 से 40 दिन तक हो सकता है. अगर दो महिलाओं के चक्र अलग-अलग लंबाई के हैं तो गणितीय रूप से उनके पीरियड्स कभी-कभी एक साथ आ सकते हैं.</p>
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<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>



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