अहमदाबाद1 घंटे पहले
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गुजरात में पंचायत चुनाव के लिए वोटिंग 22 जून को होगी। राज्य में 8,326 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें से 751 ग्राम पंचायतों में निर्विरोध चुनाव हो गए हैं। शेष ग्राम पंचायतों के लिए वोटिंग होगी। कुल 3656 सरपंच, 16224 पंचायत सदस्य चुनने के लिए 81 लाख मतदाता मताधिकार का प्रयोग करेगे। सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। काउंटिंग 25 जून को होगी। चुनाव में पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू होगा। कड़ी तथा विसनगर विधानसभा क्षेत्रों में आने वाली पंचायतों में वोटिंग 22 जून को नहीं होगी।
गुजरात में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण मुद्दे के चलते ग्राम पंचायत चुनाव लगभग दो साल की देरी के बाद हो रहे हैं। यहां ग्राम पंचायत के चुनाव आमतौर पर गैर-दलीय आधार पर लड़े जाते हैं। यानी उम्मीदवार निजी तौर पर चुनाव लड़ते हैं हालांकि राजनीतिक दलों का उन्हें समर्थन प्राप्त होता है।
कड़ी तथा विसनगर विधानसभा क्षेत्रों में कड़ी, जेठाणु, सैणाल, विसनगर, जुनाठल ग्राम पंचायत एवं बाकासरा तालुका की पंचायतें आती हैं। यहां विधानसभा चुनाव दो दिन पहले हुए हैं। इसलिए यहां चुनाव नहीं होगा।
सके बाद बची कुल 4564 ग्राम पंचायतों में से 3775 ग्राम पंचायतों के चुनाव निर्विरोध हुए हैं। शेष ग्राम पंचायतों में चुनाव के वोटिंग होगी। इ
साल 2023 में जावेरी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों जैसे स्थानीय निकायों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की गुजरात सरकार के घोषणा किए जाने के बाद राज्य में इतने बड़े पैमाने पर ग्राम पंचायत चुनाव पहली बार हो रहे हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग ने 28 मई चुनाव का ऐलान किया था। उम्मीदवारों के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 9 जून और नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 11 जून थी। चुनाव आयोग के अनुसार 8,326 ग्राम पंचायतों में से 4,688 में आम या मध्यावधि चुनाव होंगे, जबकि 3,638 ग्राम परिषदों में उपचुनाव होंगे।

गुजरात में ग्राम पंचायत के लिए चुनाव दो साल बाद हो रहे हैं।
नोटा का विकल्प भी होगा चुनाव आयोग के अनुसार चुनाव मतपत्रों के माध्यम से कराए जाएंगे और मतदाताओं को नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प दिया जाएगा। राज्य में प्रमुख रूप से सत्तारुढ़ BJP और कांग्रेस के बीच ही होते हैं।

चुनाव में देरी पर दोनों दलों के अपने तर्क
कांग्रेस की गुजरात इकाई के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा कि चुनाव करीब दो साल से रुके हुए थे। कांग्रेस लंबे समय से चुनावों की मांग कर रही है, क्योंकि सत्तारूढ़ बीजेपी ने इन पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद प्रशासक नियुक्त करके लोगों की शक्ति छीन ली थी।
गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता यज्ञेश दवे ने कांग्रेस के इस आरोप का खंडन किया कि ग्रामीण निकाय चुनाव कराने में देरी के पीछे सत्तारूढ़ पार्टी का हाथ है. उन्होंने दलील दी कि चुनाव में देरी इसलिए हुई क्योंकि चुनाव आयोग को राज्य सरकार के अनुमोदित 27 फीसदी आरक्षणों को लागू करने के उद्देश्य से प्रत्येक वार्ड में ओबीसी आबादी की गणना का महत्वपूर्ण कार्य पूरा करना था। कांग्रेस केवल जनता के बीच गलत सूचना फैला रही है. अगर चुनावों की घोषणा पहले की गई होती, तो वह आरोप लगाती कि बीजेपी ने ओबीसी को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए जल्दबाजी में चुनाव कराए हैं।

1993 में पूरे देश में पंचायती राज लागू हुआ
आजादी के बाद 2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर में औपचारिक रूप से पंचायती राज की स्थापना की थी। भारत में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक समिति बनाई गई थी। इसके अध्यक्ष गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता थे। इस समिति ने कुछ सुझाव दिए थे जिन्हें लागू किया गया।
इस दौरान भी पंचायती राज कभी देशव्यापी नहीं हो पाया। 1979 में 74वां संविधान संशोधन किया गया। इस संविधान संशोधन के बाद 1993 में पूरे देश में पंचायती राज लागू हो गया। पूरे देश में पंचायती राज को लेकर एक समान कानून लागू हुआ।’