अमरेली23 मिनट पहले
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गिर के जंगल की मशहूर शेर जोड़ी जय और वीरू अब इस दुनिया में नहीं रहे। पहले वीरू (11 जून), फिर एक महीने से भी कम समय बाद जय (29 जुलाई) को जय की भी मौत हो गई। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जय-वीरू की जोड़ी अपनी चोटों से उबर नहीं पाई।
दोनों ही वर्चस्व की लड़ाई में दूसरे शेरों से लड़ते हुए घायल हो गए थे। यहां भी ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों पर दो शेरों ने अलग-अलग ऐसे समय हमला किया था, जब दोनों ही अकेले थे। इसके चलते पहले जय और अब वीरू की भी मौत गई।
अनंत अंबानी के वनतारा में ही दोनों का इलाज चल रहा था। लेकिन डॉक्टर्स के अथक प्रयासों के बावजूद दोनों की जान नहीं बच सकी। इनके इलाके की बात करें तो मालंका, पियावा, डेडकडी वीडी, गंधारिया सहित 35-40 किमी के क्षेत्र में इनका राज था।

गिर में जय-वीरू को नहीं देखा, तो कुछ नहीं देखा माना जाता है कि ‘जय’ और ‘वीरू’ दोनों का जन्म 2009-10 के आसपास हुआ था। दोनों ने डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय तक जूनागढ़ रेंज के अलग-अलग हिस्सों में मिलकर अपने इलाके की हिफाजत की। दोनों के बीच सहयोग इतना मजबूत था कि वे बड़े शेरों के बीच प्रभुत्व के लिए होने वाले संघर्षों से एक-दूसरे की रक्षा करते थे।
यह जोड़ी वन विभाग के अधिकारियों से लेकर वन्यजीव फोटोग्राफर्स, पर्यटकों, स्थानीय पशुपालकों और चरवाहों तक के बीच बेहद लोकप्रिय थी। इनके बारे में यह भी कहा जाता था कि गिर फॉरेस्ट में आगर जय-वीरू को नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। अब दोनों दोस्तों की मौत से गिर समेत पूरे गुजरात में शोक का माहौल है।

वीरू की आंखों की चमक बताती थी कि वह राज करेगा गिर फॉरेस्ट में 2007 से फोटोग्राफी कर रहे पिंकेशभाई तन्ना बताते हैं कि दोनों को मैंने साल 2011 में देखा और बहुत करीब से अपने कैमरे में कैद किया था। जय वीरू में वीरू अपने नाम के अनुसार निडर और साहसी था। वह ऐसे चलता था, जैसे अपना प्रभुत्व जमाने आया हो।
उसकी आंखों की चमक देखकर ही लगता था कि वह इस इलाके में अपना प्रभुत्व जमाए रखेगा। वीरू दूसरे शेरों से कभी नहीं डरता था। जीवन में कितनी भी मुश्किलें आईं, भागने की बजाय उसने परिस्थितियों का डटकर सामना किया।

28-30 शावकों के पिता थे दोनों जय-वीरू एक साथ ही पर्यटन मार्ग पर 3-4 किलोमीटर तक लगातार तक चलते थे। दोनों सड़कों पर जब चलते थे तो किसी से नहीं डरते थे। सडकों पर गुजरने वाली गाड़ियों के पास आने पर भी नहीं हटते थे। दूसरे शेरों के साथ उनके व्यवहार के बारे में गांव वाले कहते हैं- जय-वीरू कभी भी दूसरे शेरों को अपने इलाके में घुसने नहीं दिया।
उनकी दहाड़ इतनी तेज होती थी कि दूसरे शेर वहां जाने का जोखिम नहीं उठाते थे। पूरे गिर फॉरेस्ट में इनकी जैसी दूसरी कोई जोड़ी नहीं थी। अनुमान है कि इन दोनों के 7-8 शेरनियों से 28-30 शावक हुए। इस क्षेत्र का 50% हिस्सा सासण सफारी का क्षेत्र है। आम जनता इस क्षेत्र में शेरों को देख सकती है।

प्रधानमंत्री की जीप के सामने आ गए थे एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गिर फॉरेस्ट की सफारी करने आए , तो उन्होंने भी इनकी जोड़ी को अपने कैमरे में कैद किया था। ग्रामीण प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को याद करते हुए बताते हैं- जब प्रधानमंत्री गिर के दौरे पर थे, तब जय-वीरू की जोड़ी उनकी सफारी वाली जीप के सामने आ गई थी।
पीएम ने इनकी फोटो खींची और फिर काफिला बगल से गुजर गया था। प्रधानमंत्री मोदी भी इस बात से बहुत खुश हुए थे कि गुजरात की इतनी प्रसिद्ध जोड़ी के दर्शन उन्हें इस तरह हुए।

जय और वीरू दोनों अकेले थे, इसलिए हमला हुआ वीरू की आखिरी लोकेशन के बारे में बात करते हुए पिंकेशभाई कहते हैं- वीरू की आखिरी लोकेशन डेडकडी इलाके में रूट नंबर 9 में दर्ज की गई थी। आमतौर पर शेर अपना इलाका चिह्नित करते हुए घूमते हैं। जय और वीरू अलग-अलग अपना इलाका चिह्नित करने निकले थे। इस दौरान कमलेश्वर साइट के दो नर शेरों सलमान और भूपत ने वीरू पर हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया था। करीब एक महीने पहले ही जय की मौत हो गई।
इस समय जय डेडकडी इलाके से दूर था, इसलिए वह लड़ाई के दौरान वीरू को बचाने नहीं आ सका। इसके बाद जय पर भी हमला हुआ और वह भी घायल हो गया था। वीरू की याद में एक श्रद्धांजलि सभा भी हुई और सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। लोग वीरू को कभी नहीं भूल पाएंगे। उनका रूप और स्वभाव अद्भुत था।