Monday, December 1, 2025
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ट्रैक की गड़बड़ी से नहीं होंगे हादसे, रेलवे की ये तकनीक पहले ही कर देगी अलर्ट


नई दिल्‍ली. आप ट्रेनों में बिना टेंशन सफर करिए. ट्रैकों की जांच के लिए रेलवे खास तकनीक का इस्‍तेमाल कर रहा है. इससे ट्रैकों पर होने वाली गड़बड़ी का पता पहले ही चल जाएगा. इस तरह ट्रेनों का सफर और भी सुरक्षित हो जाएगा. उत्‍तर मध्‍य रेलवे के आगरा डिवीजन में इस नई तकनीक का इस्‍तेमाल तेजी से किया जा रहा है. रेलवे का यह कदम यात्रियों को सुरक्षित और बेहतर सफर कराने के उद्देश्‍य से उठाया जा रहा है.

देशभर में करीब 1.25 लाख किमी. लंबे रेलवे ट्रैक हैं. लगातार ट्रेन चलने की वजह से कई बार किसी खास स्‍थान पर ट्रैक कमजोर होने की आशंका रहती है. इसके लिए ट्रैक की लगातार जांच की जाती है. जहां पर कमजोर ट्रैक का पता चलता है, वहां पर ट्रैक बदला जाता है. अब ट्रैक में अल्ट्रासोनिक फ्लॉ डिटेक्शन (USFD) तकनीक का इस्‍तेमाल किया जा रहा है, जो हादसों की संभावना को कम करेगा.

ट्रैकों की कमियों का पता लगाएगी

आगरा डिवीजन में ट्रैकों की आंतरिक संरचना की सूक्ष्म जांच के लिए अल्ट्रासोनिक फ्लॉ डिटेक्शन (USFD) तकनीक का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है. यह नवीनतम तकनीक रेल की पटरियों में समय के साथ पैदा होने वाली खामियों को शुरुआती अवस्था में ही चिन्हित कर लेगी, जिसके बाद रेलवे कर्मी तुरंत जरूरी मरम्‍मत का काम समय पर पूरा कर सकेंगे. यात्री व मालगाड़ियों का ऑपरेशंस पूरी तरह सुरक्षित और संरक्षित हो सकेगा.

1509 किमी. ट्रैक में तकनीक का हुआ इस्‍तेमाल

आगरा डिवीजन में मौजूदा समय में लगभग 1509 किलोमीटर ट्रैक की नियमित रूप से USFD मशीनों द्वारा जांच की जा रही है. इस जांच की आवृत्ति ट्रेनों के आवागमन के घनत्व (GMT) पर आधारित होती है और डिवीजन के कई सेक्शनों में प्रत्येक दो से चार माह में ट्रैक की जांच की जा रही है.

9 टीमों का गठन

डिवीजन में मौजूदा समय में कुल 9 USFD टीमों का गठन किया गया है, जिनमें 13 प्रशिक्षित इंजीनियर कार्यरत हैं. ये सभी इंजीनियर बी-स्कैन USFD मशीनों से लैस हैं, जो ट्रैक की आंतरिक स्थिति को डिजिटल रूप में दर्ज कर तुरंत डिटेल्स जानकारी देती हैं. वेल्ड की सटीक जांच के लिए सभी टीमों को डिजिटल वेल्ड टेस्टर भी दिए गए हैं, जिससे वेल्डिंग खामियों सहीं पता लगाया जा सके.

डिजीटल रिकार्ड होता है तैयार

ट्रैक जांच का पूरा डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जाता है, जिसे विश्लेषण कर आवश्यक कार्रवाई की जाती है. वर्ष 2025-26 में मंडल के स्तर पर 3612.1 किलोमीटर ट्रैक, 24527 वेल्ड, 1673 टर्नआउट और 1745 स्वीच एक्सपेंशन जॉइंट्स की बारीकी से जांच की गई. इस जांच के दौरान विभिन्न नए फ्लॉ चिन्हित किए गए, जिनकी तत्काल मरम्मत कर दी गई, जिससे ट्रेनों केऑपरेसंश में कोई परेशानी न आए और संरक्षा मानकों का पूर्ण पालन हो सके.

इंजीनियरों की समय समय पर ट्रेनिंग भी

आगरा मंडल के USFD इंजीनियरों को समय-समय पर आरडीएसओ लखनऊ और इरिसेन पुणे जैसे संस्थानों में विशेषज्ञ प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है, जिससे वे लेटेस्‍ट तकनीकी मानकों के अनुरूप कार्य कर सकें और संरक्षा में निरंतर सुधार किया जा सके. USFD तकनीक आज भारतीय रेलवे की संरक्षा प्रणाली का एक अहम हिस्‍सा बन चुकी है. यह न केवल ट्रैक की विश्वसनीयता और स्थायित्व को सुनिश्चित करती है, बल्कि समय रहते खतरों की पहचान कर संभावित दुर्घटनाओं की रोकथाम में भी सहायक सिद्ध हो रही है.

यह भी तकनीक का इस्‍तेमाल

ट्रैक की जांच अब डिफेंस तकनीक से की जाएगी. इसमें जांच में ट्रैक मेंटीनेंस मशीन का इस्‍तेमाल किया जाएगा. यह मशीन दोनों ट्रैक पर चलेगी. इसकी स्‍पीड 30 किमी. प्रति घंटे की होगी. इसमें कैमरे लगे होंगे, जो ट्रैक के दोनों ओर की फोटो लेते हुए जांच करेंगे. अगर बीच में कोई हिस्‍सा छूट जाता है, तो मशीन वापस जाकर जांच करेगी. इस तरह ट्रैक की 100 फीसदी जांच की जा सकेगी. इस नई तकनीक को लेकर भारतीय रेलवे लगातार काम कर रहा है. इस तरह इन दोनों तकनीकों के बाद ट्रेनों का ऑपरेशंस ज्‍यारा सुरक्षित हो जाएगा.

अभी होती है ऐसे जांच

मौजूदा समय ट्रैक की मैन्‍युअल जांच होती है. रेलवे कर्मी व्‍हील चलाते हैं, इसमें कैमरा लगा होता है, जहां पर ट्रैक कमजोर होता है, वहां बता देता है. लेकिन यह काम मैन्‍युअल होता है. उदाहरण के लिए किसी स्‍थान पर व्‍हील चलाने का हाथ इधर-उधर हो गया और उसी जगह ट्रैक कमजोर हुआ तो पता नहीं चलेगा. इसलिए ट्रैक मेंटीनेंस मशीन से जांच कराने का फैसला किया गया है, जिससे गलती की कोई गुंजाइश न रहे और ट्रैक की जांच हो सके.



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