Monday, December 1, 2025
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नंदी के कानों में क्यों फुसफुसाते हैं भक्त? जानिए इसके पीछे की मान्यताएं


हिंदू धर्म में नंदी के कानों में अपनी इच्छा फुसफुसाने की परंपरा काफी पवित्र मानी जाती है. शिवजी के किसी भी मंदिर में भक्त नंदी के कान में धीरे से अपनी इच्छाओं को जाहिर करते हैं. आखिर ऐसा करने के पीछे क्या धार्मिक मान्यताएं हैं? आइए जानते हैं इसके बारे में.

हिंदू परंपराओं में, नंदी को न केवल भगवान शिव का पवित्र बैल बताया गया है, बल्कि उनका शाश्वत द्वारपाल और संदेशवाहक भी कहा जाता है. भक्त नंदी के कान में फुसफुसाते हैं क्योंकि माना जाता है कि, उनके कान में बोली गई हर बात शिव जी तक पहुंचती हैं.

हिंदू परंपराओं में, नंदी को न केवल भगवान शिव का पवित्र बैल बताया गया है, बल्कि उनका शाश्वत द्वारपाल और संदेशवाहक भी कहा जाता है. भक्त नंदी के कान में फुसफुसाते हैं क्योंकि माना जाता है कि, उनके कान में बोली गई हर बात शिव जी तक पहुंचती हैं.

नंदी के कान में बोलने की जगह फुसफुसाया इसलिए जाता है कि, क्योंकि यह आत्मीयता और विश्वासनीयत को दर्शाता है, मानो कोई अपनी निजी चीजों को साझा कर रह हो. नंदी का मुख हमेशा शिवलिंग की ओर होता है, जो इस बात का प्रतीक है कि, आपका संदेश बिना किसी रुकावट के शिवजी के पास पहुंचता है.

नंदी के कान में बोलने की जगह फुसफुसाया इसलिए जाता है कि, क्योंकि यह आत्मीयता और विश्वासनीयत को दर्शाता है, मानो कोई अपनी निजी चीजों को साझा कर रह हो. नंदी का मुख हमेशा शिवलिंग की ओर होता है, जो इस बात का प्रतीक है कि, आपका संदेश बिना किसी रुकावट के शिवजी के पास पहुंचता है.

नंदी के कान में अपनी इच्छाओं को फुसफुसाने भक्त अपनी प्रार्थनाओं पर एकाग्र होकर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे उसकी ईमानीदारी बढ़ती है. नंदी के कानों में अपनी इच्छाओं को जाहिर करने के पीछे ये भी मान्यता है कि, इससे आपकी बात सीधे शिव तक पहुंचती है.

नंदी के कान में अपनी इच्छाओं को फुसफुसाने भक्त अपनी प्रार्थनाओं पर एकाग्र होकर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे उसकी ईमानीदारी बढ़ती है. नंदी के कानों में अपनी इच्छाओं को जाहिर करने के पीछे ये भी मान्यता है कि, इससे आपकी बात सीधे शिव तक पहुंचती है.

नंदी के कानों में फुसफुसाने की परंपरा किसी भी धार्मिक ग्रंथ या शास्त्रों में स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं है. यह मान्यताएं लोक परंपराओं पर आधारित है, जो समय के साथ भक्ति भाव में घूल मिल गई.

नंदी के कानों में फुसफुसाने की परंपरा किसी भी धार्मिक ग्रंथ या शास्त्रों में स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं है. यह मान्यताएं लोक परंपराओं पर आधारित है, जो समय के साथ भक्ति भाव में घूल मिल गई.

Published at : 08 Nov 2025 12:35 PM (IST)

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