पहले लंग कैंसर को सिर्फ स्मोकिंग से जोड़ा जाता था, लेकिन अब नॉन-स्मोकर्स में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं. यह फेफड़ों की सेल्स की अनियंत्रित ग्रोथ से होता है. रिसर्चर्स ने पाया है कि स्मोकिंग के अलावा कई और फैक्टर्स भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. इनमें वायु प्रदूषण रेडॉन गैस का संपर्क, दूसरों के सिगरेट का धुआं, जेनेटिक्स फैक्टर, खाना पकाने से निकलने वाला धुआं और कुछ वायरल इन्फेक्शंस शामिल हैं. यह एक बढ़ती हुई वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती है, जिसके खतरे से निपटने के लिए जागरूकता बढ़ाना और शुरुआती जांच बेहद जरूरी है.
एयर पॉल्यूशन
PM2.5 जैसे छोटे पार्टिकल्स फेफड़ों में घुसकर कैंसर कॉज कर सकते हैं. 2022 की एक स्टडी से पता चला है कि एयर पॉल्यूशन से फेफड़ों की सेल्स में पहले से मौजूद स्लीपिंग म्यूटेशन्स एक्टिव हो जाते हैं, जिससे कैंसर बन सकता है.
रेडॉन गैस एक्सपोजर
रेडॉन एक कलरलेस और ओडोरलेस रेडियोएक्टिव गैस है, जो जमीन से निकलकर घरों, खासकर बेसमेंट में जमा हो सकती है. ईपीए के मुताबिक, ये लंग कैंसर का दूसरा सबसे बड़ा कारण है और नॉन-स्मोकर्स में भी ये मेन कॉज है. इसकी पहचान स्पेशल इक्विपमेंट के बिना मुश्किल है.
सेकंडहैंड स्मोक
अगर आप खुद स्मोक नहीं करते, तब भी किसी और के स्मोक (सेकंडहैंड स्मोक) से आपको कैंसर हो सकता है. सीडीसी के डाटा के हिसाब से, सिर्फ अमेरिका में हर साल 7,300 नॉन-स्मोकर्स की मौत सेकंडहैंड स्मोक से लंग कैंसर के कारण होती है.
जेनेटिक सेंसिटिविटी और म्यूटेशंस
कुछ लोगों में जेनेटिकली लंग कैंसर होने का रिस्क ज्यादा होता है. EGFR जीन में कुछ म्यूटेशंस नॉन-स्मोकर लंग कैंसर पेशेंट्स में कॉमन हैं. खासकर फीमेल्स और यंग पेशेंट्स में. अच्छी बात ये है कि इन म्यूटेशन्स वाले कैंसर के लिए अब टार्गेटेड ट्रीटमेंट्स मौजूद हैं.
कुकिंग फ्यूम्स से इंडोर पॉल्यूशन
विकासशील देशों में लकड़ी, कोयला या गोबर जैसे बायोमास फ्यूल पर खाना बनाने से हानिकारक धुआं निकलता है, जिससे लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. 2020 की एक स्टडी ने बताया कि खासकर उन महिलाओं में रिस्क ज्यादा होता है, जो घर पर खाना बनाने में ज्यादा टाइम बिताती हैं. फ्राइंग के दौरान निकलने वाला तेल का धुआं भी कैंसर का एक रीजन है.
वायरस और इन्फेक्शंस
रिसर्चर्स ये भी देख रहे हैं कि कुछ वायरस जैसे एचपीवी और ईबीवी नॉन-स्मोकर्स में लंग कैंसर ट्रिगर कर सकते हैं. ये वायरस सेल्स में ऐसे चेंजेस ला सकते हैं, जिनसे धीरे-धीरे ट्यूमर बन जाता है.
फेफड़ों के कैंसर में अवेयरनेस है जरूरी
नॉन स्मोकर्स में लंग कैंसर के केसेस बढ़ना एक बड़ी कंसर्न है. लंग कैंसर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, 2025 तक ये बीमारी दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों की टॉप वजह बन जाएगी. नॉन स्मोकर्स में अक्सर ये कैंसर लेट स्टेज में डिटेक्ट होता है. इसलिए अर्ली डायग्नोसिस और डिटेक्शन बहुत क्रिटिकल है. कई देशों अब अपनी स्क्रीनिंग गाइडलाइंस को रिवाइज कर रहे हैं, ताकि पॉल्यूशन एक्सपोजर और जेनेटिक रिस्क जैसे फैक्टर्स को भी शामिल किया जा सके. इसके अलावा एन्वॉयरनमेंटल रिस्क के बारे में अवेयरनेस बढ़ाना, घरों में एयर क्वॉलिटी टेस्ट करवाना और क्लीन कुकिंग टेक्निक्स को प्रमोट करना. इस डिजीज को प्रिवेंट करने में काफी हेल्पफुल हो सकता है. ये एक ग्लोबल हेल्थ चैलेंज है, जिसके लिए एक कॉम्प्रिहेंसिव अप्रोच की जरूरत है.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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