Last Updated:
देहरादून. चाय लवर्स सुख-दुख, खुशी-टेंशन हर मूड में चाय पीना पसंद करते हैं. आपने अब तक मीठी चाय तो जरूर पी होगी, लेकिन क्या आपने कभी नमकीन स्वाद वाली चाय का लुत्फ उठाया है? उत्तराखंड की पहाड़ियों में रहने वाली भोटिया जनजाति एक खास नमकीन चाय बनाती है, जिसे ‘ज्या’ कहा जाता है. इसका स्वाद और तरीका दोनों ही बाकी चाय से एकदम अलग है.
उत्तराखंड की भोटिया जनजाति के लोग नमकीन चाय बनाते हैं जिन्हें ज्या कहा जाता है. इसे बनाने के लिए चीनी, चाय पत्ती, देसी घी के साथ-साथ सत्तू का भी उपयोग किया जाता है.

उत्तराखंड के चमोली जिले के पहाड़ी इलाकों में भोटिया जनजाति रहती हैं. यहां की महिलाएं खास तरह की चाय बनाती हैं जिसे ‘ज्या’ कहा जाता है. इस चाय का स्वाद इसलिए अलग होता है क्योंकि इसमें सत्तू, गुड़, घी, आटा और नमक का इस्तेमाल किया जाता है. ‘ज्या’ को विवाह, मुंडन जैसे शुभ कार्यों के साथ-साथ घर आए मेहमानों की मेहमाननवाजी के लिए भी परोसा जाता है. भोटिया जनजाति के लोग ‘ज्या’ को न केवल सर्दी बल्कि हर मौसम में पीना पसंद करते हैं.

स्थानीय निवासी मोनी ने बताया कि नमकीन चाय सेहत के लिहाज से न सिर्फ फायदेमंद मानी जाती है, बल्कि इसका स्वाद भी ऐसा होता है कि जो एक बार इसका स्वाद चख ले, वह बार-बार इसे पीना चाहता है.

ज्या, सामान्य चाय की तरह नहीं बनती, बल्कि इसे एक खास पारंपरिक विधि से तैयार किया जाता है. सबसे पहले एक बर्तन में पानी गर्म किया जाता है, फिर उसमें भोटिया जनजाति की खास चायपत्ती डाली जाती है, जिसे ‘धुनेर’ कहा जाता है. इस चाय को अच्छी तरह पकने तक उबाला जाता है. इसके बाद चाय को छानकर ‘दुंबू’ नामक लकड़ी के बर्तन में डाला जाता है, जिसमें स्वादानुसार नमक, दूध, चुटकी भर आटा और 1 से 2 चम्मच देसी घी या पीना घी मिलाया जाता है. फिर इस मिश्रण को अच्छी तरह फेंटा जाता है. दुंबू में कभी-कभी अखरोट के बीज और नारियल का पिसा हुआ मिश्रण भी मिलाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और पौष्टिकता बढ़ जाती है. फेंटने के बाद तैयार ज्या को कटोरी में डालकर परोसा जाता है और पारंपरिक तौर पर इसे सत्तू के साथ सर्व किया जाता है.

स्थानीय निवासी हिमानी देवी बताती हैं कि सर्दियों में नमकीन चाय ‘ज्या’ को सत्तू के नाश्ते के साथ परोसा जाता है. उन्होंने कहा कि यह चाय हर मौसम में पी जा सकती है, लेकिन खासतौर पर विंटर्स और बरसात के मौसम में इसे अधिक पसंद किया जाता है. यह सेहत के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है क्योंकि इसमें देसी घी, नमक और धुनेर जैसी पारंपरिक सामग्रियों का उपयोग होता है. इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए जिन्हें गर्म चीजों से एलर्जी है, उन्हें इसका सेवन सोच-समझकर करना चाहिए.

स्थानीय लोग बताते हैं कि वे गर्मियों के छह महीने नीति घाटी में बिताते हैं और सर्दियों में नीचे के क्षेत्रों की ओर चले जाते हैं. इस दौरान वे पारंपरिक तौर पर कई तरह के व्यंजन तैयार करते हैं, जो उनके खानपान और संस्कृति का अहम हिस्सा होते हैं.

बताया जाता है कि भोटिया जनजाति के लोग अपने सभी शुभ कार्यों जैसे विवाह, नामकरण या त्योहारों के अवसर पर पारंपरिक परिधान पहनते हैं और साथ ही स्थानीय पारंपरिक पकवान भी तैयार करते हैं. ये व्यंजन न सिर्फ उनके सांस्कृतिक गौरव को दर्शाते हैं बल्कि मेहमानों के स्वागत-सत्कार का भी अहम हिस्सा होते हैं.