Monday, December 1, 2025
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यूज्ड स्टांप बनाने वाला मास्टरमाइंड भास्कर के कैमरे में कैद: बोला- लॉ डिपार्टमेंट में पहचान, वहीं से मिलते हैं स्टांप; मेरे पिता थे अंडर सेक्रेटरी – Madhya Pradesh News


एमपी में यूज्ड एडहेसिव स्टांप का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है और जिम्मेदारों को इसकी भनक तक नहीं है। ये सिर्फ कुछ स्टांप की हेराफेरी नहीं बल्कि एक संगठित अपराध है, जिसकी जड़ें सरकारी विभागों की मिलीभगत और सिस्टम की खामियों तक फैली हुई हैं। स्टांप वे

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सवाल यह था कि इन तक यह ‘माल’ पहुंचा कौन रहा है? इसी सवाल का जवाब हमें इस खेल के मास्टरमाइंड, आरिफ खान तक ले गया। आरिफ खान, इस पूरे फर्जीवाड़े का कथित सरगना। उस तक पहुंचना आसान नहीं था। हमारी टीम ने कई दिनों तक उसके पुराने संपर्कों को खंगाला, दर्जनों फोन कॉल किए और आखिरकार एक सूत्र के जरिए उससे संपर्क साधने में कामयाबी मिली।

कुछ दिनों की बातचीत के बाद जब आरिफ को यकीन हो गया कि हम वाकई जरूरतमंद हैं, तो वह हमें बैकडेट में फर्जी दस्तावेज बनाकर देने के लिए तैयार हो गया। पढ़िए रिपोर्ट

इस पूरे गिरोह का मास्टरमाइंड आरिफ खान है। जो यूज्ड स्टांप को बाजार में बेचता है।

800 रुपए में एक साल पुराना किरायानामा…सबसे पहले हमारी टीम ने आरिफ से फोन पर संपर्क साधा। बातचीत कुछ इस तरह हुई

रिपोर्टर (हंसराज बनकर): सर नमस्ते, हंसराज बोल रहा हूं, राजेश से आपका नंबर मिला था।

आरिफ: बोलो क्या काम है।

रिपोर्टर: छोटे भाई का किरायानामा बनवाना था।

आरिफ: कब का बनवाना है और कौन-सा कॉलेज है?

रिपोर्टर: लास्ट ईयर का बनवाना है, आरजीपीवी कॉलेज है।

आरिफ: कहां लगाना है?

रिपोर्टर: कॉलेज में आवासीय स्कॉलरशिप के लिए।

आरिफ: 800 रुपए दे देना, बन जाएगा।

रिपोर्टर: क्या-क्या डॉक्यूमेंट्स देने होंगे?

आरिफ: मकान मालिक का आधार कार्ड और जिसका बनना है उसका आधार कार्ड।

बातचीत से साफ था कि आरिफ इस काम में माहिर है। लेकिन हमने मामले की तह तक जाने के लिए एक और पेंच फंसाया। हमने उसे बताया कि हमारे पास भोपाल में कोई मकान मालिक नहीं है, क्योंकि हम यहां रहते ही नहीं। इस पर आरिफ ने जो जवाब दिया, वह चौंकाने वाला था। वह फर्जी मकान मालिक बनने के लिए भी तैयार हो गया।

सिर्फ 5 मिनट में तैयार कर दिए फर्जी डॉक्यूमेंट डील पक्की होने के बाद आरिफ ने हमें आधार कार्ड लेकर बोर्ड ऑफिस बुलाया। बोर्ड ऑफिस के ठीक सामने, बेसमेंट में बनी नोटरी की दुकानों के पास वह हमें मिला। वह हमें ‘एएम इंटरप्राइजेज’ नाम की एक दुकान पर ले गया। यहां उसने रिपोर्टर से आधार कार्ड लिया और कंप्यूटर पर बैठे एक वकील को देकर किरायानामा तैयार करने को कहा।

वकील: मकान मालिक कौन है?

आरिफ (बिना झिझके): मैं हूं…

वकील: एड्रेस कौन-सा लिखना है?

आरिफ: अरेरा कॉलोनी वाला लिख दो।

वकील: किस तारीख का बनाना है?

आरिफ: 1 जुलाई 2024…

आरिफ (रिपोर्टर से): किराया 3000 लिखवा दूं?

रिपोर्टर: हां, जैसा आपको सही लगे, लिखवा दो।

हमारी आंखों के सामने, महज 5 मिनट के अंदर एक साल पुराना, पूरी तरह से फर्जी किरायानामा तैयार हो चुका था। आरिफ ने खुद को मकान मालिक बताकर उस पर दस्तखत भी कर दिए।

बैकडेट यानी 1 जुलाई 2024 को बना किरायानामा, जिसमें मकान मालिक के तौर पर आरिफ का नाम है।

बैकडेट यानी 1 जुलाई 2024 को बना किरायानामा, जिसमें मकान मालिक के तौर पर आरिफ का नाम है।

फर्जीवाड़े की तकनीक: ‘D’ सीरीज को बनाया ‘B’ यह गिरोह सिर्फ फर्जी दस्तखत और पते तक ही सीमित नहीं है, बल्कि स्टांप पेपर के साथ भी शातिराना तरीके से छेड़छाड़ करता है। पुरानी तारीख का दस्तावेज बनाने के लिए स्टांप पेपर की सीरीज को बदलना सबसे जरूरी होता है। जब हमने स्टांप पेपर के बारे में पूछा, तो आरिफ ने बड़ी बेफिक्री से कहा, ‘मैं स्टांप पेपर ‘डिपार्टमेंट से’ लेकर आता हूं। एक स्टांप पेपर मुझे 100 रुपए का पड़ता है।’

एक्सपर्ट की जांच ने खोली पोल हमने आरिफ द्वारा बनवाए गए इस फर्जी किरायानामे की जांच एक हैंडराइटिंग और डॉक्यूमेंट एक्सपर्ट से करवाई। एक्सपर्ट की जांच में जो सामने आया, वह इस गिरोह के शातिर तरीकों की पुष्टि करता है:

  • सीरीज से छेड़छाड़: एक्सपर्ट ने बताया कि स्टांप पर बनी सीरीज के साथ छेड़छाड़ की गई है। वर्तमान ‘D’ सीरीज को एक साल पुराना दिखाने के लिए ‘D’ अक्षर को फिजिकल इरेजर (किसी नुकीली चीज) से खुरचा गया है।
  • ओवरराइटिंग: खुरचने के बाद उस जगह पर लाल पेन से ‘B’ अक्षर बना दिया गया, ताकि वह पुरानी सीरीज का लगे।
  • इंफ्रारेड लाइट टेस्ट: जब एक्सपर्ट ने इंफ्रारेड (IR) लाइट फिल्टर से स्टांप को देखा, तो खुरचा हुआ असली ‘D’ अक्षर साफ-साफ दिखाई देने लगा।
  • सुपरइंपोज टेस्ट: इसके बाद, एक्सपर्ट ने एक असली ‘D’ सीरीज के स्टांप को छेड़छाड़ किए गए स्टांप पर सुपरइम्पोज किया। असली ‘D’ अक्षर फर्जी स्टांप पर बने निशान पर हूबहू फिट हो गया, जिससे यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो गया कि यह असल में ‘D’ सीरीज का ही स्टांप था।

फर्जी स्टांप से सरकारी योजनाओं में लग रही सेंध यह फर्जीवाड़ा सिर्फ कुछ रुपयों का नहीं, बल्कि सरकारी योजनाओं को खोखला करने का एक संगठित प्रयास है। मध्य प्रदेश में’आवास भत्ता सहायता योजना’ और ‘मुख्यमंत्री आवास किराया योजना’ जैसी स्कीम हैं, जिनका फायदा अनुसूचित जाति और जनजाति के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को मिलता है। इन योजनाओं का फायदा लेने के लिए छात्रों को पोर्टल पर किरायानामा अपलोड करना होता है।

कई बार छात्र समय पर आवेदन नहीं कर पाते और बाद में आरिफ जैसे एजेंटों से संपर्क कर पुरानी तारीख का फर्जी किरायानामा बनवाकर जमा कर देते हैं, भले ही वे उस दौरान उस शहर में किराये पर रहे ही न हों। हमने इसकी पुष्टि के लिए अपने एक साथी को छात्र बनाकर आरिफ से बात कराई।

विभाग से मिलीभगत का दावा आरिफ ने बातचीत के दौरान कई बार अपनी ‘ऊंची पहुंच’ का जिक्र किया। उसने दावा किया,’मेरे पिताजी लॉ डिपार्टमेंट में अंडर सेक्रेटरी रहे हैं, डिपार्टमेंट में अंदर तक पहचान है।’ उसने यह भी कहा कि स्टांप के साथ लगने वाले लीगल पेपर उसे मुफ्त में मिल जाते हैं। ‘यह लीगल पेपर दूसरों को महंगे मिलते हैं, मैं तो लॉ डिपार्टमेंट से निकाल लाता हूं, अपना कोई खर्च नहीं होता।’

आरिफ के इस बयान से सरकारी विभागों के अंदर चल रही मिलीभगत का साफ पता चलता है। यहां सवाल उठता है कि इस्तेमाल हो चुके स्टांप और सरकारी लीगल पेपर विभाग से बाहर आ रहे हैं और किसी जिम्मेदार अधिकारी की नजर इस पर नहीं पड़ रही है?

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यदि आप कोई प्रॉपर्टी या सामान खरीदने-बेचने का एग्रीमेंट करते हैं या किरायानामा बनवाते हैं तो उसे कानूनी रूप देने के लिए स्टांप ड्यूटी चुकानी पड़ती है। इसके लिए एडहेसिव (चिपकाने वाले) स्टांप का इस्तेमाल होता है। ये डाक टिकट की तरह होते हैं। मगर, इसके लिए जो स्टांप खरीदे जाते हैं, क्या वह असली हैं? दैनिक भास्कर की पड़ताल में एक ऐसे घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जो आपकी जेब के साथ-साथ सरकारी खजाने को हर दिन लाखों का चूना लगा रहा है। पढ़ें पूरी खबर



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