भोपाल एम्स के डॉक्टरों ने यूरोलॉजी सर्जरी के क्षेत्र में नई दिशा दिखाई है। अहमदाबाद में आयोजित 35वीं वेस्ट जोन यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया कॉन्फ्रेंस (WZUSICON 2025) में एम्स भोपाल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केतन मेहरा ने अपने रिसर्च के नतीजे पेश किए।
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जिनमें पाया गया कि रेट्रोपेरिटोनियल लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से मरीजों को कम दर्द, कम रक्त स्राव और जल्दी रिकवरी मिलती है। एम्स भोपाल में किए गए इस अध्ययन में 42 मरीज शामिल थे। जिन्होंने इस विधि से गुर्दे की सर्जरी और एड्रिनल ग्लैंड की सर्जरी कराई थी।
दोनों ही विधियां सुरक्षित पाई गईं लेकिन रेट्रोपेरिटोनियल सर्जरी में ऑपरेशन के दौरान मरीजों की सांस लेने की स्थिति बेहतर रही, खून का बहाव कम हुआ, दर्द भी कम महसूस हुआ। साथ ही अस्पताल में भर्ती रहने का समय घट गया। इस अध्ययन को डॉ. देवाशीष कौशल और डॉ. कुमार माधवन का भी सहयोग मिला।
रिसर्च ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर दिलाई पहचान यह देश के उन कुछ प्रॉस्पेक्टिव स्टडीज में से एक है। जिसने दो ‘मिनिमली इनवेसिव’ (कम चीरा लगने वाली) तकनीकों की तुलना की है। इस रिसर्च ने यह साबित किया कि हर मरीज के लिए सर्जरी का तरीका उसकी शारीरिक स्थिति के हिसाब से चुना जाना चाहिए, ताकि परिणाम बेहतर हों और जटिलताएं कम से कम रहें।
संस्थान प्रमुख ने की तारीफ एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक और लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. माधवानंद कर ने कहा कि रेट्रोपेरिटोनियल तकनीक जटिल सर्जरी में बेहतर विकल्प साबित हो रही है।
मरीजों की तकलीफ और ऑपरेशन के बाद की रिकवरी दोनों में सुधार देखा गया है। यह रिसर्च एम्स भोपाल की बढ़ती रिसर्च क्षमता और देश में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के क्षेत्र में उसके योगदान को दर्शाता है।
रिसर्च से जुड़ी मुख्य बातें
- अध्ययन एम्स भोपाल में फरवरी 2024 से मई 2025 के बीच हुआ।
- 42 वयस्क मरीजों को शामिल किया गया।
- रेट्रोपेरिटोनियल सर्जरी में रक्तस्राव और दर्द कम पाया गया।
- अस्पताल में भर्ती रहने का समय घटा।

