जवाहर कला केंद्र की ओर से 28वें लोकरंग महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
जवाहर कला केंद्र की ओर से 28वें लोकरंग महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर लोक संस्कृति का अद्वितीय माहौल देखने को मिला। जैसे ही शाम का आगाज हुआ, राजस्थान के पारंपरिक लोक गीत मध्यवर्ती सभागार में गूंजने लगे और दर्शक लोक कला की रंगीन छटा में ख
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राजस्थानी कलाकारों ने मयूर नृत्य की मनोरम प्रस्तुति दी।
मध्यवर्ती में कार्यक्रम की शुरुआत हुई बाड़मेर से आए कलाकार बुंदु खान लंगा व समूह द्वारा प्रस्तुत लंगा गायन से जहां उन्होंने सिंधी सारंगी और खड़ताल की रंगत पर राग खमेती में ‘आयो रे हेली’ जैसे गीतों से शाम का स्वागत किया। साथ ही राजस्थानी संस्कृति की छटा बिखेरते हुए बारात के स्वागत और मायरे के गीतों की प्रस्तुति दी।
इसके बाद महाराष्ट्र से आए कलाकारों द्वारा सौंगी मुखवटे लोक नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। कलाकारों ने बड़े-बड़े मुखौटे लगाकर अपने आराध्य की उपासना के दृश्य साकार किए।

राजस्थान की युवा कलाकारों ने चरी नृत्य की प्रस्तुति से पारंपरिक रीतियों का उदाहरण दिया।
राजस्थान की युवा कलाकारों ने चरी नृत्य की प्रस्तुति से पारंपरिक रीतियों का उदाहरण दिया। सिर पर मटकी रखकर संतुलन का परिचय देते हुए ‘मैं तो नाचबा ने आई सा’ गीत पर मनोरम प्रस्तुति दी। गुजरात के कलाकारों द्वारा तलवार रास प्रस्तुत किया गया जहां नर्तकों ने तलवारों का उपयोग करते हुए देवी दुर्गा को समर्पित पारंपरिक प्रस्तुति दी।
राजस्थानी कलाकारों ने मयूर नृत्य की मनोरम प्रस्तुति दी। मोरियो आच्छो बोल्यो रे आधी रात में गीत पर मयूर का रूप धारण किए कलाकारों ने वर्षा ऋतु के आगमन की खुशियां मंच पर बिखेरी। इसके बाद महाराष्ट्र की ओर से प्रस्तुत लोक नृत्य लावणी ने अपनी तेज और नृत्यात्मक चाल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राजस्थान के सूर्यवर्धन सिंह ने भवाई में अपनी अनोखी शैली दिखाई, जिसमें लय और भाव का अद्भुत संगम देखने को मिला। वहीं किशनलाल व समूह ने ढोल-थाली बजाते हुए जीवंत नृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें ताल और उत्साह का अद्भुत मिश्रण देखने को मिला।

शिल्पग्राम में राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की रंगत के साथ लोक नृत्य की प्रस्तुतियों की मनमोहक झलक देखने को मिली।
गुजरात के भरूच रतनपुर से आए कलाकारों ने अफ्रीकी आदिवासी समूह की शैली में सिद्दी धमाल प्रस्तुत किया। अनोखी वेशभूषा और अफ्रीकी भाषा के गीत पर हुई इस प्रस्तुति में बाबा गोर की वंदना की गई, जो दर्शकों के लिए रोमांचक अनुभव साबित हुई। शाम की अंतिम प्रस्तुति में हरियाणा के रोहतक से आए कलाकारों ने ‘नंदि के बीरा’ गीत पर माथे पर बोरला, गले में कंठी, 25–30 मीटर लंबे दामण और पैरों में चांदी के कड़े पहने पारंपरिक नृत्य घूमर की प्रस्तुति दी।
शिल्पग्राम में बालम छोटो सो और जादू…
इधर शिल्पग्राम में राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की रंगत के साथ लोक नृत्य की प्रस्तुतियों की मनमोहक झलक देखने को मिली। सरदार राणा व समूह के कलाकारों ने बालम छोटो सो नृत्य प्रस्तुत किया, राजस्थानी संस्कृति के सौंदर्य ने सभी को भाव विभोर कर दिया। इसी के साथ यहां रावण हत्था वादन, कच्छी घोड़ी, जादू शो, राणा राम का नड़ वादन, मुकेश कुमार व समूह का पद दंगल, सांवरमल कथक व कलाकारों का लोक, चकरी नृत्य (शिवनारायण व समूह), भवाई नृत्य (गौतम परमार व समूह), चरी (वीरेन्द्र सिंह व समूह), चकरी नृत्य (ममता व समूह) की प्रस्तुति दी गयी। वहीं लोक जागरण में साहिल जीणावत ने भजन व फकीरा खान बिशाला मांगणियार समूह ने लोक गीतों की प्रस्तुति दी।

