मोबाइल के आने के बाद आज के युवा शब्दों के अर्थ शब्दकोशों में नहीं बल्कि मोबाइल में ही खोजते हैं। ऐसे में शब्दों की उत्पत्ति और उनकी व्यंजना को समझने में युवा पीढ़ी असमर्थ होती जा रही है। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि शब्दकोश से ज्यादा सुलभ है। यह बात
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सबको साथ लेकर चलने वाली भाषा है हिंदी
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए प्रो. अली ने कहा कि हिंदी भाषा सबको साथ लेकर चले वाली भाषा है। इसमें अंग्रेजी, पुर्तगाली, उर्दू सहित तमाम भाषाओं के शब्द सम्मिलित हैं। जिनको कार्यालयों में सहजता से स्वीकार किया गया है। कार्यालयी भाषा और साहित्यिक भाषा अलग- अलग होती है। साहित्यिक हिंदी का संबंध अनुभूतियों और संवेदनाओं से है। साहित्यिक हिंदी में सर्जनात्मकता और विचारपरकता होती है। कार्यालयी हिंदी की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें तथ्यात्मकता और स्पष्टता होनी चाहिए। कार्यालयी हिंदी में प्रायः तत्सम शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है और यह आज्ञार्थक एवं सुझावपरक भी होती है।
समर्थ पोर्टल और ई- फाइलिंग में हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग को बढ़ावा
दूसरे सत्र में इलाहाबाद विश्वविद्यालय आईसीटी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. नीलेश आनंद ने समर्थ पोर्टल प्रबंधन एवं ई फाइलिंग और हिंदी विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि समर्थ पोर्टल के लिए हिंदी सहज स्वीकृत भाषा है। समर्थ पर हिंदी के प्रचलित फॉन्ट में आसानी से सूचनाएं अंकित की जा सकती हैं। डॉ. आनंद ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में समर्थ प्रबंधन और ई फाइलिंग से जुड़े विभिन्न पहलुओं को पीपीटी के माध्यम से स्पष्ट किया। समर्थ पोर्टल के बारे में उन्होंने बताया कि समर्थ आपकी डिजिटल सर्विस बुक है। ये डिजिटल इंडिया का एक भाग है। जो भी डिजिटल होगा पेपरलेस होगा इससे लगत बचेगी, पारदर्शिता आयेगी, संचिकाओं की गति बढ़ेगी, बेहतर नागरिक जुडाव होगा और कागजी फाइलों के बोझ से मुक्ति मिलेगी और कागज़ के लिए पेड़ कम कटेंगे।
संयोजक प्रो. कुमार वीरेंद्र ने संबंधित विषय पर अपनी बात रखी। हिंदी अधिकारी प्रवीण श्रीवास्तव एवं हिंदी अनुवादक हरिओम कुमार ने स्मृति चिह्न एवं किताबें भेंट कर अतिथियों का अभिनंदन किया। धन्यवाद ज्ञापन अंजली मिश्रा और धर्मेश कुमार ने किया।