Sunday, July 20, 2025
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‘शोले’ की ‘राधा’ को देख जब पसीजा’ ठाकुर’ का दिल, लगाना चाहते थे गले, डायरेक्टर ने दिलाया याद- आपके हाथ नहीं हैं


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1975 में रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘शोले’ हिंदी सिनेमा की एतिहासिक फिल्म है. फिल्म के आखिरी दिन एक मजेदार वाक्या हुआ, जिसका जिक्र जावेद अख्तर ने किया था.

‘शोले’ 1975 की ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर फिल्म है.

हाइलाइट्स

  • 1975 में रिलीज हुई थी फिल्म शोले.
  • शोले में ठाकुर के रोल में नजर आए थे संजीव कुमार.
  • 1970-80 में संजीव कुमार ने दी कई हिट.

नई दिल्ली. कुछ कलाकार ऐसे होते हैं, जिनकी एक्टिंग महसूस की जाती है, उनके चेहरे के भावों में ही किरदार की कहानी छुपी होती है. ऐसे कलाकारों में ही शुमार थे ‘संजीव कुमार’. वह अपने अभिनय से हर किरदार में जान फूंकने का हुनर रखते थे. कौन भूल सकता है ‘शोले’ के ठाकुर बलदेव सिंह को! संजीव कुमार ने किरदार को इस तरह पर्दे पर निभाया कि आज भी वो लोगों के जेहन में जिंदा हैं.

उनके इस किरदार से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है. इस किस्से को ‘शोले’ के लेखक जावेद अख्तर ने अनुपमा चोपड़ा की किताब ‘शोले: द मेकिंग ऑफ क्लासिक‘ में बयां किया.

गुजराती परिवार के इस लड़के को था सिनेमा से प्यार

संजीव कुमार का असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था. उनका जन्म 9 जुलाई 1938 को गुजरात के एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था. बचपन से ही उन्हें एक्टिंग का शौक था. मुंबई आने के बाद उन्होंने एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया और फिर रंगमंच से अपने अभिनय जीवन की शुरुआत की. उन्होंने थिएटर और ड्रामों में काम किया, जहां उनकी कला को खूब सराहा गया.

1960 में मिली थी पहली फिल्म

उन्होंने 1960 में फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ से अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन बतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली फिल्म ‘निशान’ थी. उनका बात करने का अंदाज, हाव-भाव और किरदार में डूब जाने की क्षमता ने उन्हें दूसरे कलाकारों से अलग बना दिया.

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कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो हमेशा के लिए अमर हो जाती हैं. जिन्हें सालों बाद देखो या दशकों बाद, उस फिल्म का मजा जरा कम नहीं होता है. ऐसी ही एक आइकॉनिक फिल्म है ‘शोले’. सलीम-जावेद की लिखी स्क्रिप्ट पर जब फिल्म तो इसने आग लगा दी. 

‘राधा’ को देख टूट गए थे संजीव कुमार, फिर…

‘शोले’ फिल्म के यं तो कई किस्से हैं, लेकिन आखिरी दिन का ये किस्सा आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगा. जावेद अख्तर ने अनुपमा चोपड़ा की किताब ‘शोले: द मेकिंग ऑफ क्लासिक’ में बयां किया. शूटिंग का आखिरी दिन था और आखिरी सीन शूट हो रहा था. इस सीन में, जय (अमिताभ बच्चन) की मौत से ठाकुर की बहू राधा (जया बच्चन) टूट चुकी होती है. इस सीन में दिखाए गए दर्द को संजीव कुमार इतनी गहराई से महसूस करते हैं कि वह आगे बढ़कर राधा को गले लगाने के लिए जाते हैं. इस दौरान डायरेक्टर रमेश सिप्पी उन्हें रोकते हैं और याद दिलाते हैं कि आप राधा को गले नहीं लगा सकते, क्योंकि फिल्म में आपके हाथ नहीं हैं. यह किस्सा उनकी भूमिका निभाने की शिद्दत को दिखाता है कि वह अपने किरदार को किस हद तक जीते हैं.

70-80 के दशक सबसे बेहतरीन कलाकार

70 और 80 के दशक में संजीव कुमार हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में गिने जाते थे. उन्होंने ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘नमकीन’, ‘अंगूर’, ‘सत्यकाम’, ‘कोशिश’, ‘नौकर’, ‘आशीर्वाद’, ‘पति-पत्नी और वो‘ जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया. उनकी हर भूमिका में अलग चमक थी. कभी वो खिलखिलाते, कभी रुलाते, कभी खिजियाते तो कभी दुलारते दिखे. उनके अभिनय के लोग कायल थे. उन्हें दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया.

आत्मविश्वास से लबरेज लेकिन थे अंधविश्वासी

संजीव कुमार स्क्रीन पर आत्मविश्वास से लबरेज दिखते थे, लेकिन निजी जिंदगी कुछ अलग सी ही थी. अंधविश्वासी भी थे.अक्सर अपने दोस्तों से कहते थे कि वो 50 साल तक नहीं जी पाएंगे. इसके पीछे तर्क देते कि उनके परिवार में ऐसा होता आया है. घर के पुरुष सदस्यों की मौत 50 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है. सबके प्यारे हरि भाई का यह डर सच साबित हुआ. 6 नवंबर 1985 को महज 47 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. संजीव कुमार के अभिनय का सफर छोटा जरूर था, लेकिन इतना असरदार था कि आज भी वह लोगों के दिल में बसे हुए हैं

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Shikha Pandey

शिखा पाण्डेय News18 Digital के साथ दिसंबर 2019 से जुड़ी हैं. पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें 12 साल से ज्यादा का अनुभव है. News18 Digital से पहले वह Zee News Digital, Samachar Plus, Virat Vaibhav जैसे प्रतिष्ठ…और पढ़ें

शिखा पाण्डेय News18 Digital के साथ दिसंबर 2019 से जुड़ी हैं. पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें 12 साल से ज्यादा का अनुभव है. News18 Digital से पहले वह Zee News Digital, Samachar Plus, Virat Vaibhav जैसे प्रतिष्ठ… और पढ़ें

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