यह शिविर पारम्परिक कलाओं की प्रतिनिधि संस्था ‘रंगरीत’ और ‘सरस्वती कला केन्द्र’ के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।
महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय संग्रहालय ट्रस्ट की ओर से सिटी पैलेस, जयपुर में आयोजित हो रहे एक माह के सांस्कृतिक विरासत प्रशिक्षण शिविर में प्रतिभागियों को विभिन्न पारंपरिक भारतीय कलाओं की बारीकियों से रूबरू करवाया जा रहा है। इस शिविर का उद्देश्य युव
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प्रसिद्ध कला विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न पारंपरिक कला रूपों में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
इसमें पारंपरिक चित्रकला, आला गिला, आराइश, ध्रुवपद, कथक, बांसुरी, कैलीग्राफी, वैदिक ज्योतिष और ठीकरी (मिरर वर्क) कला शामिल है। यह शिविर पारम्परिक कलाओं की प्रतिनिधि संस्था ‘रंगरीत’ और ‘सरस्वती कला केन्द्र’ के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। शिविर का समापन 20 जून को होगा।

शिविर का समन्वय रामू रामदेव द्वारा किया जा रहा है
शिविर का समन्वय रामू रामदेव द्वारा किया जा रहा है, जो बाबूलाल भारोदिया के साथ मिलकर प्रतिभागियों को ढूंढाड़ शैली में ‘पारंपरिक चित्रकला’ की बारीकियां सिखा रहे हैं। रामू रामदेव ने बताया कि यह शिविर पारंपरिक कला व संस्कृति को बढ़ावा देने की जयपुर राज परिवार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि यह गत 28 वर्षों से सिटी पैलेस में प्रत्येक वर्ष शिविर का आयोजन किया जा रहा है।

डॉ. ज्योति भारती गोस्वामी प्रतिभागियों को जयपुर घराने की शुद्ध शैली में ‘कथक’ एवं ‘लोकनृत्य’ की विधाएं सिखा रही हैं।
इस वर्ष जयपुर सहित देश के विभिन्न हिस्सों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, चेन्नई और मध्य प्रदेश से प्रतिभागी पारंपरिक कलाओं का प्रशिक्षण लेने के लिए आए हुए हैं। उन्होंने ‘पारंपरिक चित्रकला’ कला के बारे में बताया कि प्रतिभागियों को चित्रकला का प्रारंभिक ज्ञान दिया जा रहा है, जिसमें अब तक लाईनिंग, ब्रश चलाना तथा रंग भरने जैसी मूल तकनीकें सिखाई गई हैं।
डॉ. ज्योति भारती गोस्वामी प्रतिभागियों को जयपुर घराने की शुद्ध शैली में ‘कथक’ एवं ‘लोकनृत्य’ की विधाएं सिखा रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण की शुरुआत कथक के मूल व्याकरण से की गई, जिसमें ताल, लय, भाव एवं शारीरिक संतुलन की समझ विकसित की गई।
इसके पश्चात, प्रतिभागियों को मुद्राओं, फुटवर्क, तोड़े, तिहाई, अंग-संचालन और पद-संचालन जैसे तत्वों का गहन अभ्यास करवाया जा रहा है। वहीं, डॉ. मधुभट्ट तैलंग जयपुर घराने का ध्रुवपद’ सिखा रही हैं, जिसमें प्रतिभागियो को ध्रुपद गायन की मूल संरचना, जैसे राग की शुद्धता, और लय- ताल से परिचित कराया जा रहा है।
डॉ. नाथूलाल वर्मा प्रतिभागियों को पारंपरिक ‘आला-गिला और आराईश’ (फ्रेस्को) शैली की चित्रकला की तकनीकी बारीकियों का प्रशिक्षण दे रहे हैं। वहीं, आर.डी. गौड़ द्वारा बांसुरी वादन की मौलिक तकनीकों और रागों की समझ प्रदान की जा रही है। ललित शर्मा के निर्देशन में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कैलीग्राफी (सुलेख) तथा चित्रकला की विधा ‘पोट्रेट’ का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
इसी प्रकार, डॉ. ब्रजमोहन खत्री प्रतिभागियों को ‘वैदिक ज्योतिष’ के सिद्धांतों और उसकी व्याख्या से परिचित करा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष 15 दिवसीय विशेष सत्र के अंतर्गत बद्री नारायण कुमावत प्रतिभागियों को पारंपरिक ‘ठीकरी’ (मिरर वर्क) कला की बारीकियों से अवगत करा रहे हैं।