Tuesday, December 2, 2025
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‘स्‍टाफ कम है, CCL नहीं मिलेगी’, हाईकोर्ट ने खींच दी अधिकारों पर लक्ष्‍मण रेखा


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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ कर दिया कि कामकाजी माताओं की चाइल्ड केयर लीव (CCL) मनमर्जी से नहीं रोकी जा सकती. एक मामले में स्कूल प्रिंसिपल ने ‘स्टाफ की कमी’ का हवाला देकर महिला टीचर की CCL अर्जी ठुकरा दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे मनमाना और नियमों की भावना के खिलाफ बताया. कोर्ट ने कहा कि CCL का मकसद मां और बच्चे की जरूरतों को प्राथमिकता देना है, न कि प्रशासनिक बहानों में उलझाना.

सीसीएल पर हाईकोर्ट का फैसला आया.
दिल्‍ली हाईकोर्ट ने एक महत्‍वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि चाइल्‍ड केयर लीव (CCL) को मनमाने ढंग से नहीं ठुकराया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि यह छुट्टी किसी अधिकार की तरह भले न हो, लेकिन इसे देने या न देने का निर्णय यांत्रिक, कठोर या मनमाना नहीं हो सकता. इसका मूल उद्देश्‍य बच्‍चों की भलाई और मां की जरूरतों को सहारा देना है, इसलिए प्रशासन को हर मामले में संवेदनशीलता रखनी होगी. अदालत ने यह भी याद दिलाया कि CCL को एक वेलफेयर मेजर के रूप में लाया गया था ताकि कामकाजी महिलाओं को नौकरी और घर दोनों की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में राहत मिल सके.

प्रिंसिपल ने ठुकरा दी थी चाइल्‍ड केयर लीव
यह अहम टिप्‍पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें हरियाणा कुदना स्थित सरकारी स्कूल की टीजीटी (मैथमेटिक्स) टीचर ने CCL मांगी थी. उनके दो बच्‍चे बोर्ड क्‍लास में थे और पति मरीन इंजीनियर हैं. वो लंबे समय तक विदेश में तैनात रहते हैं. ऐसे में बच्‍चों की पढ़ाई और देखभाल की जिम्‍मेदारी उन पर ही थी. लेकिन जब उन्‍होंने लंबी अवधि की CCL मांगी तो प्रिंसिपल ने यह कहकर मना कर दिया कि मैथमेटिक्‍स का कोई सब्स्‍टीट्यूट टीचर नहीं है और छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी. उन्‍होंने दोबारा आवेदन किया तब भी मंजूरी नहीं मिली. बाद में प्रिंसिपल ने ऊपरी अधिकारियों को लिखा कि यदि गेस्‍ट टीचर मिल जाए तो CCL देने में कोई आपत्ति नहीं.

SChool Teacher
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
CCL की जगह महिला ने ले ली थी ऑर्डिनरी लीव
हालांकि टीचर को कुछ दिनों के लिए CCL दी गई, लेकिन एक बार तो उन्‍हें यह लिखकर देने के लिए मजबूर किया गया कि वह आगे CCL नहीं मांगेंगी. बाद में उनके बेटे के बीमार पड़ने पर जब उन्‍होंने फिर छुट्टी मांगी तो उसे नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन हैरानी की बात यह कि उसी अवधि में उन्‍हें 303 दिनों की एक्सट्रा ऑर्डिनरी लीव (EOL) दे दी गई. यहीं से मामला उलझा और वे CAT पहुंचीं, जहां से राहत न मिलने पर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

हाईकोर्ट की तीखी टिप्‍पणी
हाईकोर्ट ने नियमों, DoPT के 2008 के मेमो और पूरे घटनाक्रम का विश्‍लेषण करते हुए पाया कि प्राधिकरणों का रवैया अस्पष्‍ट और विरोधाभासी था. कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “जब EOL दी जा सकती थी, तो यह तर्क कि CCL से स्‍कूल का कामकाज बाधित होगा, टिकता नहीं.” यानी प्रशासनिक जरूरत का हवाला सिर्फ CCL रोकने के लिए दिया गया, जबकि वास्तविक रूप से उतनी गंभीर आवश्यकता नहीं थी. अंत में अदालत ने कहा कि CAT ने मामले के महत्‍वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज किया और गलत नतीजे पर पहुंची. इसलिए उसका आदेश रद्द किया जाता है और टीचर की याचिका मंजूर की जाती है.

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Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और…और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और… और पढ़ें

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