क्या है 100 साल पुरानी रेसिपी का राज?
यह कहानी आज से करीब एक सदी पहले शुरू होती है. जब रामपुर के शाही रसोई में एक महारथी रसोइया रहमत अली आए. वे केवल खाना नहीं बनाते थे, बल्कि उसे इबादत की तरह परोसते थे. एक दिन उन्होंने सोचा क्यों न मछली को कुछ अलग तरीके से परोसा जाए. उन्होंने मछली को दूध और मसालों में इतनी बारीकी से पकाया कि उसका नमकीन स्वाद मिट गया. फिर उसमें खोया, देसी घी, शक्कर और शाही मसाले डालकर हलवा तैयार किया गया.
अब विरासत संभाल रहे हैं महफूज अली
आज इस शाही रेसिपी की बागडोर महफूज अली संभाल रहे हैं, जो रहमत अली की पांचवीं पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं. वे बताते हैं, “मैंने अपने दादा और पिता को शाही रसोई में काम करते देखा है. मछली का हलवा बनता था तो पूरी हवेली महक उठती थी. आज वही स्वाद नवाब काज़िम अली उर्फ नावेद मियां के दस्तरख़्वान पर परोसा जा रहा है.”
इस हलवे की खास बात है इसकी लंबी और धीमी तैयारी. सबसे पहले ताज़ी मछली को दूध, मसालों और थोड़ी सी हल्दी में पकाया जाता है, जिससे उसकी गंध पूरी तरह खत्म हो जाए. इसके बाद इसमें डाला जाता है देसी घी, खोया और शक्कर. इसे धीमी आंच पर तब तक भूना जाता है, जब तक इसका रंग भूरा न हो जाए और खुशबू पूरे माहौल को मीठा न बना दे.
विदेशों में भी बज रहा है डंका
महफूज अली ने इस लज़ीज़ मछली हलवे को देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचा दिया है. कई विदेशी फूड फेस्टिवल्स में वह इसे लाइव बनाकर दिखा चुके हैं और लोगों को रामपुर के जायके से रूबरू कराया है.