नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: अनिरुद्ध शर्मा
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जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से 500-500 रुपए के जले नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिले थे।
संसद का मानसून सत्र शुरू होने से तीन दिन पहले 18 जुलाई को जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने का अनुरोध किया।
जस्टिस वर्मा का तर्क है कि उनके आवास के बाहरी हिस्से में नकदी बरामद होने मात्र से उनका इस मामले में शामिल साबित नहीं करती। क्योंकि आंतरिक जांच समिति ने यह तय नहीं किया कि नकदी किसकी है या परिसर में कैसे मिली।
समिति के निष्कर्षों पर सवाल उठाते हुए उनका तर्क दिया है- ये अनुमान पर आधारित हैं। याचिका में जस्टिस वर्मा का नाम नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट डायरी में इसे ‘XXX बनाम भारत सरकार व अन्य’ के टाइटल से दर्ज किया गया है।
उन्होंने अपनी याचिका में 5 सवाल के जवाब मांगे हैं, साथ ही 10 तर्क दिए हैं, जिनके आधार पर जांच समिति की रिपोर्ट रद्द करने की मांग और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
जस्टिस वर्मा ने याचिका में कहा है कि नोटों की बरामदगी पर समिति को इन 5 सवालों के जवाब देने चाहिए थे-
- बाहरी हिस्से में नकदी कब, कैसे और किसने रखी?
- कितनी नकदी रखी गई थी?
- नकदी असली थी या नहीं?
- आग लगने का कारण क्या था?
- क्या याचिकाकर्ता किसी भी तरह से 15 मार्च 2025 को ‘बची हुई नकदी’ को ‘हटाने’ के लिए जिम्मेदार था?
जस्टिस वर्मा के मुताबिक, रिपोर्ट में इन सवालों के जवाब नहीं हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई दोष नहीं लगाया जा सकता।

यह तस्वीर 14 मार्च की है। जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में लगी आग में 500-500 के नोट जले थे।
याचिका में जस्टिस वर्मा के 10 तर्क…
- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई महाभियोग सिफारिश अनुच्छेद 124 और 218 का उल्लंघन है।
- 1999 की फुल कोर्ट बैठक में बनी इन-हाउस प्रक्रिया सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था है, न कि संवैधानिक या वैधानिक। इसे न्यायाधीश को पद से हटाने जैसे गंभीर निर्णय का आधार नहीं बनाया जा सकता।
- जांच समिति का गठन बिना औपचारिक शिकायत के सिर्फ अनुमानों और अप्रमाणित जानकारियों से किया। यह इन-हाउस प्रक्रिया के मूल उद्देश्य के ही खिलाफ है।
- 22 मार्च 2025 को प्रेस विज्ञप्ति में आरोपों का सार्वजनिक उल्लेख किया। इससे मीडिया ट्रायल शुरू हो गया और उनकी प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचा।
- न साक्ष्य दिखाए, न आरोपों के खंडन करने का मौका दिया। मुख्य गवाहों से मेरी अनुपस्थिति में पूछताछ हुई। सीसीटीवी फुटेज को सबूत के तौर पर नहीं लिया गया।
- समिति ने नकदी किसने रखी, वह असली थी या नहीं, आग कैसे लगी जैसे मूल प्रश्नों को अनदेखा किया।
- समिति की रिपोर्ट अनुमानों और पूर्वधारणाओं पर आधारित थी, न कि किसी ठोस सबूत पर। यह गंभीर कदाचार सिद्ध करने के लिए अपर्याप्त है।
- जांच रिपोर्ट मिलने के कुछ ही घंटों में तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इस्तीफा देने या महाभियोग का सामना करने की चेतावनी दी। पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया।
- पिछले मामलों में न्यायाधीशों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका मिला था। इस मामले में परंपरा की अनदेखी हुई।
- रिपोर्ट गोपनीय बनाए रखने के बजाय उसके अंश मीडिया में लीक और तोड़-मरोड़ कर दिए गए, जिससे छवि खराब हुई जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकेगी।

संसद में आएगा महाभियोग प्रस्ताव… कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि लगभग सभी बड़े राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा की है। जिन पार्टियों के सिर्फ एक-एक सांसद हैं, उनसे भी बात करूंगा, ताकि संसद का यह रुख सर्वसम्मति वाला हो।
वहीं, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा-

यह फैसला सरकार का नहीं, बल्कि सांसदों का है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि उनकी पार्टी के सांसद भी महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करेंगे। यानी विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों संवैधानिक कार्रवाई के पक्ष में हैं।
कांग्रेस बोली- पूर्व CJI ने लेटर लिख सांसदों को कदम उठाने को मजबूर किया
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को कहा कि उस समय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर सांसदों को यह कदम उठाने को मजबूर किया। रमेश ने कहा-

ये प्रस्ताव महाभियोग नहीं, बल्कि 1968 के जजेज (इन्क्वायरी) एक्ट के तहत जांच समिति गठित करने के लिए है। यह समिति जांच कर रिपोर्ट देगी और फिर संसद में कार्रवाई होगी।
विपक्ष जस्टिस शेखर यादव का मामला भी उठाएगा रमेश ने यह भी दोहराया कि विपक्ष जस्टिस शेखर यादव के मामले को भी जोर से उठाएगा, जिन पर सांप्रदायिक भाषण देने का आरोप है। उनके खिलाफ पिछले दिसंबर में राज्यसभा में 55 सांसदों ने प्रस्ताव दिया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
समझिए जस्टिस वर्मा का कैश कांड क्या है
जस्टिस वर्मा के लुटियंस स्थित बंगले पर 14 मार्च की रात 11:35 बजे आग लगी थी। इसे अग्निशमन विभाग के कर्मियों ने बुझाया था। घटना के वक्त जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे।
21 मार्च को कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि जस्टिस वर्मा के घर से 15 करोड़ कैश मिला था। काफी नोट जल गए थे।
22 मार्च को सीजे आई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की इंटरनल जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई। पैनल ने 4 मई को CJI को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया था।
रिपोर्ट के आधार पर ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत CJI खन्ना ने सरकार से जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी। जांच समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन थीं।
जांच रिपोर्ट 19 जून को सामने आई थी कैश केस की जांच कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट 19 जून को सामने आई थी। 64 पेज की रिपोर्ट में कहा गया कि जस्टिस यशवंत वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर सीक्रेट या एक्टिव कंट्रोल था।
10 दिनों तक चली जांच में 55 गवाहों से पूछताछ हुई और जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास का दौरा किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं। आरोप इतने गंभीर हैं कि जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए कार्यवाही शुरू करनी चाहिए।

स्टोर रूम यहीं आग लगने के बाद जले नोट मिले थे।
55 लोगों के बयान दर्ज; गवाह, किसने क्या कहा
समिति ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए। इनमें दिल्ली फायर सर्विस के 11, दिल्ली पुलिस के 14, CRPF के 6, जस्टिस वर्मा के घरेलू व कोर्ट स्टाफ के 18 लोग, जस्टिस वर्मा व उनकी बेटी आदि शामिल हैं।
- दिल्ली फायर सर्विसेज के अफसर अंकित सेहवाग ने 23 मार्च का बयान दर्ज करते वक्त बताया, ‘ मुझे प्रदीप कुमार और परविंदर मलिक (दमकल कर्मचारी) ने बताया कि स्टोर रूम में आग लगी है। वहां करेंसी नोट जल रहे हैं। मैंने टॉर्च की रोशनी में जाकर देखा। वहां बहुत सारे 500 रुपए के नोट आधे जले हुए थे। पानी से नोट गीले हो गए थे और आग से कुछ हिस्से जले थे, पर साफ दिख रहा था कि ये 500 रु. के नोट थे।
- सीआरपीएफ और सुरक्षा कर्मी ने बताया, ‘स्टोर रूम के दरवाजे पर ताला रहता था। कोई बिना अनुमति नहीं जा सकता था। कुछ ने दरवाजा तोड़ने में मदद की थी।’
रिपोर्ट की 5 बड़ी बातें…
- चश्मदीदों ने जले नोट देखे: 10 चश्मदीदों ने आधी जली हुई नकदी देखी, इनमें दिल्ली फायर सर्विस, पुलिस के अधिकारी थे। इन सभी ने जस्टिस वर्मा के घर के स्टोर रूम में जले हुए नोटों के ढेर देखे थे।
- जस्टिस वर्मा ने खंडन नहीं किया: इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (स्टोर रूम के वीडियो-फोटो) चश्मदीदों के बयानों की पुष्टि करते हैं। घटनास्थल पर लिए गए वीडियो और आरोपों का जस्टिस वर्मा ने भी खंडन नहीं किया है।
- घरेलू कर्मचारियों ने नोट निकाले: जस्टिस वर्मा के दो घरेलू कर्मचारियों राहिल/हनुमान पार्षद शर्मा और राजिंदर सिंह कार्की ने स्टोर रूम से जले हुए नोट निकाले थे। वायरल वीडियो से दोनों की आवाज मैच हुई है।
- बेटी ने गलत बयान दिया: जस्टिस वर्मा की बेटी दीया ने वीडियो के बारे में गलत बयान दिया। कर्मचारी की आवाज पहचानने से इनकार कर दिया, जबकि कर्मचारी ने खुद स्वीकार किया था कि आवाज उसकी है। परिवार की अनुमति के बिना कोई भी नहीं आ सकता था, इसलिए एक जज के स्टोर रूम में नोट रखना लगभग असंभव है, क्योंकि हर समय गेट पर तैनात 1+4 सुरक्षा गार्ड और एक पीएसओ निगरानी रखता है।
- पुलिस में रिपोर्ट नहीं की: जस्टिस वर्मा ने स्टोर रूम से कैश मिलने की घटना को षड्यंत्र कहा, लेकिन पुलिस में कोई रिपोर्ट नहीं की। चुपचाप इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर भी स्वीकार कर लिया। नकदी का कोई हिसाब नहीं था, जस्टिस वर्मा इसका हिसाब देने में असमर्थ थे। बल्कि यह कहा कि किसी ने उनके खिलाफ साजिश की थी।

यह तस्वीर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी की गई थी। इसमें 500 रुपए के नोटों की जली हुई गड्डियां नजर आ रही हैं।
जस्टिस वर्मा के खिलाफ मानसून सत्र में महाभियोग लाने की तैयारी जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए केंद्र सरकार ने संसद में प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए लोकसभा सांसदों के साइन जुटाए जा रहे हैं। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, कई सांसदों के दस्तखत लिए जा चुके हैं।
इससे संकेत मिल रहा है कि प्रस्ताव लोकसभा में लाया जा सकता है। लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 100 सांसदों के साइन जरूरी होते हैं। वहीं, राज्यसभा में यह संख्या 50 सांसदों की होती है। अब तक कितने सांसदों ने साइन किए हैं, उसकी जानकारी नहीं मिल पाई है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने 4 जून को बताया था कि जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में लाया जाएगा।
जस्टिस वर्मा फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज हैं। दिल्ली हाईकोर्ट से उनका ट्रांसफर कर दिया गया था। हालांकि, उन्हें किसी भी तरह का न्यायिक कार्य सौंपने पर रोक है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 65 सेकेंड का जो वीडियो जारी किया, उसमें नोटों की गड्डियां सुलगती दिख रही हैं, लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी सफाई में कहा है कि उन्होंने या उनके परिवार के किसी सदस्य ने जली हुई नकदी देखी ही नहीं। उनका कहना है कि वीडियो देखकर वे खुद हैरान रह गए। पूरी खबर पढ़ें…