Monday, July 28, 2025
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तीन दशकों से मैं Z+ सुरक्षा में जी रहा हूं: हर केस श्लोक से शुरू करता हूं’,धमकियां मिलती हैं, लेकिन मैं ध्यान नहीं देता- उज्जवल निकम


अहमदाबाद7 मिनट पहलेलेखक: ध्रुव संचानिया

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‘कसाब केस के दौरान जितना मीडिया था इतना मीडिया अगर 1993 में होता तो मैं पूरी दुनिया में मशहूर हो गया होता। लेकिन अच्छा है कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है। जितना कम याद रखें, उतनी कम चिंता। ‘मुझे धमकियां तो मिलती रहती हैं, लेकिन मैं उन पर ध्यान नहीं देता और न ही उन्हें याद रखता हूं। मेरा काम ही अपराधियों से निपटने का है।’ ‘2016 में प्रदीप जैन हत्याकांड में मैंने अबू सलेम को उम्रकैद की सजा दिलाई। फिर भी वह अब मुझे तारीफ भरे पत्र भेजता है। जब उसका केस चल रहा था, तब कोर्ट के बाहर हमारी बात होती थी। मैं उसे कहता था, ‘तुझे सजा तो मैं दिलवाऊंगा ही, लेकिन अभी नहीं। पहले तू जेल में थोड़ी कसरत कर।’

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उज्जवल निकम… देश के सबसे मशहूर वकील। 1993 के मुंबई बम धमाकों से लेकर 26/11, अबू सलेम, गुलशन कुमार हत्या जैसे बड़े और चर्चित मामलों को लड़ने वाला चेहरा अब सांसद के रूप में नजर आएगा।

पब्लिक प्रॉसिक्यूटर पद्म श्री उज्जवल निकम ने गुरुवार को राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ ली। उसी दिन दैनिक भास्कर ने उनसे बात की। दिल्ली में बैठे निकम साहब ने दैनिक भास्कर के साथ लंबी और विशेष बातचीत में कई रहस्य खोले और अपने बारे में चल रही अफवाहों पर से भी पर्दा उठाया।

तो आइए, आज उज्जवल निकम के साथ मुकदमा चलाते हैं…

सर, आपके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। अब आपने सांसद के रूप में शपथ ले ली है। पीछे मुड़कर अपनी रोमांचक जिंदगी को देखते हैं, तो क्या नजर आता है?

उज्जवल निकम कहते हैं, ‘अभी पीछे देखकर कुछ सोचने का वक्त नहीं आया। क्योंकि मेरा पिछला अध्याय अभी बंद ही नहीं हुआ। मैंने सांसद के रूप में शपथ ली है, लेकिन वकील के रूप में मेरा सफर जारी रहेगा। मैं अब भी विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के रूप में काम करता रहूंगा। पहले मैं कोर्ट में जाकर न्याय की लड़ाई लड़ता था, अब मुझे उस कोर्ट में जाने का मौका मिला है, जहां कानून बनने की शुरुआत होती है।

मैं दैनिक भास्कर के माध्यम से खास तौर पर कहना चाहता हूं कि कई लोग हमारे देश को चूना लगाकर घोटाले कर भाग जाते हैं। ऐसे लोगों को वापस लाने में हम कमजोर पड़ते हैं। हमारे संविधान में अभी कई खामियां हैं। मैं उन खामियों को ढूंढने और दूर करने पर खास ध्यान दूंगा।’

निकम ने कहा- मैने सांसद के रूप में शपथ ली है, लेकिन वकील के रूप में मेरा सफर जारी रहेगा।

निकम ने कहा- मैने सांसद के रूप में शपथ ली है, लेकिन वकील के रूप में मेरा सफर जारी रहेगा।

आपके करियर और उपलब्धियों से कोई अनजान नहीं है, लेकिन सबसे पहले किस केस से आपका नाम चर्चा में आया?

मैं 1977 से महाराष्ट्र के जलगांव में वकालत कर रहा था। वहां मैंने कई केस लड़े, जिसके कारण स्थानीय स्तर पर मेरा नाम काफी मशहूर हो गया था। 1993 में मुंबई बम धमाकों के बाद मुंबई पुलिस मेरे पास आई और अनुरोध किया कि आप इस केस में सरकार की तरफ से काम करें। मुझे खुशी हुई कि देश के लिए काम करने का मौका मिला। उस केस की वजह से मेरा नाम मशहूर हुआ और मुंबई सहित पूरे देश में लोग मुझे जानने लगे।

इसके बाद गुलशन कुमार हत्या, गेटवे ऑफ इंडिया बम धमाका, कसाब केस जैसे कई मामले लड़े और अभी भी लड़ रहा हूं।’

1993 बम धमाके, 26/11 कसाब केस जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में मीडिया और जनता बहुत ज्यादा शामिल होती है। ऐसे केस को आप मानसिक और भावनात्मक रूप से कैसे संभालते हैं?

‘भावनात्मक होने की जरूरत ही नहीं है। मुझे व्यावहारिक रूप से सभी पहलुओं की जांच कर केस जीतना होता है। हां, जब मैं उस दुखद घटना के बारे में पहली बार सुनता हूं, तो दुख जरूर होता है। जब पुलिस मेरे पास आकर अपराधी की क्रूरता बताती है, तो मन व्याकुल हो जाता है। लेकिन मेरे दिमाग में साफ होता है कि मुझे इन्हें कानून का पाठ पढ़ाना है। बाद में मैं अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर सिर्फ केस जीतने पर ध्यान देता हूं।’

2016 में भारत सरकार ने उज्जवल निगम को पद्मश्री से सम्मानित किया। प्रेक्टिस करते हुए यह अवार्ड पाने वाले वे पहले एडवोकेट हैं।

2016 में भारत सरकार ने उज्जवल निगम को पद्मश्री से सम्मानित किया। प्रेक्टिस करते हुए यह अवार्ड पाने वाले वे पहले एडवोकेट हैं।

‘मुझे दुनिया में मिसाल कायम करनी है’ ऐसे मामलों में मेरा खास ध्यान होता है कि मैं जिस तरह हर केस लड़ता हूं, उससे ज्यादा गंभीरता इन मामलों में बरतता हूं। मेरे मन में हमेशा यही रहता है कि मुझे दुनिया में एक मिसाल कायम करनी है, ताकि ऐसा अपराध दोबारा न हो। यही सोचकर मैं केस लड़ता हूं और अपराधी को किसी भी तरह फांसी या उम्रकैद की सजा दिलवाता हूं।’

सर, आपके बारे में एक बात सुनी है कि 26/11 केस के दौरान आपने अपने परिवार को कहीं दूर अज्ञात जगह पर रखा था और रोज मुंबई आकर केस लड़ते थे। क्या यह सच है?

बात सच है, लेकिन इसे तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। उस केस के दौरान मेरा परिवार मुंबई से दूर था और मैं आना-जाना करता था, यह हकीकत है। लेकिन केस के लिए परिवार को दूर छोड़कर आया था, यह गलत है। दरअसल, 1993 में जब मैं मुंबई आया, तब से लेकर 2016 में मेरे बेटे की शादी तक मेरा परिवार जलगांव में ही रहा। वे मुंबई आए ही नहीं। मैं 23 साल तक मुंबई की होटल में रहा। हर शुक्रवार को जलगांव घर जाता और सोमवार सुबह वापस मुंबई होटल आकर काम शुरू करता। इसमें 26/11 का केस हो या कोई सामान्य हत्या का केस, 23 साल तक मेरा यही टाइम टेबल रहा।’

ज्यादातर लोग आपको 26/11 या 1993 बम धमाकों जैसे केस से ही जानते हैं। क्या यह अन्याय नहीं लगता?

इससे क्या फर्क पड़ता? लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। कुछ साल बीतने दो, लोग कसाब की कहानी भी भूल जाएंगे और यह भी कि मैंने वह केस लड़ा था। यह जरूरी नहीं कि मेरे लड़े सभी केस लोगों को याद रहें। मैं हमेशा मजाक में कहता हूं कि अगर 1993 या कसाब के समय जितना मीडिया होता, तो मैं पूरी दुनिया में मशहूर हो गया होता। लेकिन अच्छा ही है कि लोगों की याददाश्त कमजोर है। जितना कम याद रखें, उतनी कम चिंता।’

इतने बड़े-बड़े अपराधियों से आपका पाला पड़ा है। जान से मारने की धमकियां तो मिली ही होंगी! कितनी बार?

कई बार… लेकिन मैं उसे गिनता नहीं और न ही याद रखता हूं। अगर ऐसा याद रखने लगा, तो मुझे भी लगेगा कि मैं बहुत महान हूं। मेरा काम ही अपराधियों से पंगा लेने का है। उनके खिलाफ पड़ता हूं, तो एक्शन का रिएक्शन तो आएगा ही। मैं इसे गिनता नहीं।’ आप कोर्टरूम में केस को बहुत नाटकीय ढंग से लड़ते हैं। आपकी रणनीति क्या होती है?

सबने मान लिया है कि कोर्ट का माहौल गंभीर ही होना चाहिए। मैं हमेशा मानता हूं कि कोर्ट का माहौल जीवंत होना चाहिए। मैं जब भी केस शुरू करता हूं, तो संस्कृत के श्लोक से अपनी दलील शुरू करता हूं। जब कोई क्रूर अपराधी के खिलाफ केस हो, तो मैं कहता हूं:

‘तेऽमी मानुषराक्षसाः परहितं स्वार्थाय निघ्नन्ति ये ये तु घ्नन्ति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे’ जो लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को मार देते हैं, वे इनसान रूपी राक्षस हैं। और जो बिना स्वार्थ के दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, उन्हें क्या कहें? मेरे पास शब्द नहीं हैं।

इससे फायदा यह होता है कि जज खुद थोड़ा हिल जाता है। मैं कोई भी दलील, सवाल या विरोध करता हूं, तो कुछ कहावत या श्लोक बोलता हूं, जिससे मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत फर्क पड़ता है। मैं मशीन की तरह रोजमर्रा का काम नहीं करता। यही कारण है कि लोगों को लगता है कि मैं मजाक करता हूं या ड्रामा करता हूं, लेकिन यह मजाक नहीं, बल्कि मनाने की मेरी तकनीक है।’

आपके हजारों केस में से सबसे यादगार केस कौन सा है, जिसमें आप संतुष्ट हुए?

40 साल के करियर में मैंने आतंकवादियों, लुटेरों, संगठित अपराध, बलात्कार जैसे हर तरह के केस लड़े, लेकिन ‘रेणुका शिंदे केस’ मेरा सबसे यादगार केस है। इसमें तीन महिलाएं 3-4 साल के छोटे बच्चों को जमीन पर या खंभे से टकराकर मार डालती थीं।’ ‘घटना कोल्हापुर की थी। बाल हत्याकांड। अंजनाबाई गावित नाम की राक्षसी महिला अपनी दो युवा बेटियों रेणुका और सीमा के साथ मिलकर 5 साल से छोटे बच्चों को किडनैप करती और क्रूरता से मार डालती। चार जिलों में ये राक्षसियां गरीब परिवारों के बच्चों को किडनैप कर उनके साथ लूटपाट करती थीं।

अगर पकड़ी जातीं, तो बच्चों को जोर से पटककर मार देती थीं। इससे लोग सोचते कि इन्होंने चोरी नहीं की होगी, क्योंकि कोई अपने बच्चों को मारता है क्या? इस तरह वे बच निकलती थीं, लेकिन बच्चे मर जाते थे।’

मैं इस केस को सुप्रीम कोर्ट तक ले गया और तीनों को फांसी की सजा दिलवाई। राष्ट्रपति ने भी फांसी पर रोक की अर्जी खारिज कर दी थी। यह केस मेरे दिमाग में इसलिए बसा है, क्योंकि केस के बाद कोल्हापुर जिला सत्र न्यायालय के सामने बहुत सारे छोटे-छोटे बच्चे इकट्ठा हुए और उन्होंने मुझे खांड दी। उनका भाव था कि आपने इस राक्षसी को फांसी दिलाकर हमें बचाया। हमारे पास देने को कुछ नहीं, तो यह खांड स्वीकार करें। इससे बड़ा उपहार क्या हो सकता है? मेरे जीवन का यह सबसे यादगार किस्सा है।’ आपने एक बार कहा था कि केस जीतने के लिए सही जानकारी के साथ उसका प्रस्तुतीकरण भी उतना ही जरूरी है।

मेरी लड़ाई सिर्फ कोर्ट की दलील पर नहीं होती। मैं मनोवैज्ञानिक लड़ाई भी लड़ता हूं। जब मैं दलील शुरू करता हूं, तो अपनी बात रखने से लेकर सामने वाले पक्ष की बात भी रख देता हूं। जैसे, मैं कहता हूं कि आरोपी का वकील ऐसा कहेगा, लेकिन वह दलील गलत है। इससे जज और सामने वाले वकील, दोनों के दिमाग पर असर पड़ता है।’ कोर्टरूम के अंदर या बाहर का कोई यादगार पल, जो आपको जीवनभर याद रहे?

कई केस में मुझे लोगों का ढेर सारा प्यार मिला। मैं मानता हूं कि अगर आप अच्छा काम करेंगे, तो लोग आपको प्यार करेंगे। आपको आश्चर्य होगा कि मैं अपराधियों को सजा दिलवाता हूं, फिर भी वे मुझसे नफरत नहीं करते। मेरा मानना है कि अपराधी सिर्फ सजा से नहीं सुधरता। अगर उसे बताया जाए कि तुममें यह अच्छी खूबी भी है, जिसे तुम सुधार सकते हो, तो उसमें बदलाव आएगा। एक किस्सा सुनाता हूं…’

प्रदीप जैन नाम के बिल्डर की हत्या के केस में मैंने अबू सलेम को उम्रकैद की सजा दिलवाई। अबू दिखने में स्मार्ट था, उसने एक्ट्रेस मोनिका बेदी से शादी की थी। लेकिन जब पहली बार ट्रायल के दौरान कोर्ट के बाहर वह मुझसे मिला, तो मैंने मजाक में हंसते हुए कहा, ‘तेरे पिता वकील थे और तू ऐसा तुच्छ काम करता है? तुझे सजा तो मैं दिलवाऊंगा, लेकिन अभी नहीं। पहले जेल में थोड़ी कसरत कर।’

हर सुनवाई के दौरान मैं उससे बात करता था- जेल में क्या करता है? तबीयत कैसी है? कसरत करता है या नहीं? मैंने उसका केस अच्छे से लड़ा और उम्रकैद की सजा दिलवाई। लेकिन कुछ साल पहले जब वह जेल में बीमार था, तो उसका एक दोस्त कैदी मेरे पास उसका पत्र लेकर आया। मैंने पत्र पढ़ा, जिसमें अबू ने मेरी बहुत तारीफ की थी।

यह एक उदाहरण है कि जिस अपराधी को मैं सजा दिलवाता हूं, वह भी मुझसे नफरत नहीं करता, धमकी नहीं देता। यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि मेरे उनके प्रति व्यवहार का नतीजा है। उस पत्र को मैंने लैमिनेट करवाकर संभालकर रखा है।’



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