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ये कहानी बॉलीवुड से ताल्लुक रखने वाली उस महिला की है जिसने 13 साल की उम्र में 43 साल के शादीशुदा शख्स को दिल दिया. तीन बच्चों की मां बनीं. पति को ही गुरु माना. उन्हीं के साथ रखकर डांस सीखा. बाद में ताश खेलते-खेलते चार बच्चों के पिता से प्यार कर बैठीं. मस्जिद में जाकर निकाह किया और धर्म बदल लिया. बॉलीवुड की एक से बढ़कर हीरोइन को अपने इशारे पर नचाया लेकिन खुद पूरी उम्र किस्मत के इशारों पर थिरकती रहीं.
जानी-मानी कोरियोग्राफर सरोज खान का असली नाम निर्मला नागपाल था. उनके माता-पिता बंटवारे के बाद पाकिस्तान से अपना सबकुछ छोड़कर आए थे. उन्होंने लंबा समय रिफ्यूजी के तौर पर गुजारा. गरीबी थी. सरोना खान ने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘हमारे पास कुछ नहीं था. जब मैं 3 साल की थी तो अपनी ही परछाई को देखकर डांस करने लगी. मां को लगा कि मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं है. मुझे डॉक्टर के पास ले गई. डॉक्टर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे. उन्होंने मेरी मां को समझाया कि अगर आपकी बेटी डांस करना चाहती है तो उसे डांस करने दीजिए. आप लोगों को तो वैसे भी पैसे की जरूरत है. उन्होंने मुझे फिल्म इंडस्ट्री में इंट्रोड्यूस करवाया था. 10 साल की उम्र तक मैंने चाइल्ड आर्टिस्ट के रोल लिए. इसी बीच मेरे पिता का निधन हो गया. फिर मैं ग्रुप डांस करने लगी. मैं बहुत ही फाइन डांसर थी.’

सरोज खान ने दूरदर्शन सह्याद्रि को दिए एक इंटरव्यू में अपनी पहली शादी के बारे में बताया था. उन्होंने कहा था, ‘मेरे पिता गुजर चुके थे. ऐसे में मन में उनके जैसी छवि वाले आदमी की तलाश थी. इसी बीच मैं मास्टर जी सोहनलाल के संपर्क में आई. वह मेरे लिए फादर फिगर थे. गाइड करना, ये मत करो, उधर बैठो, वो मुझे महफूज रखते थे. जब वह डांस करते थे तो वह दुनिया के सबसे हैंडसम इंसान बन जाते थे. उनका डांस बहुत ही उम्दा था. एक औरत भी वो चाल नहीं चल सकती थी, जो वो चलते थे. जिस दिन वो नाचते थे, उस दिन मैं नहीं नाचती थी. उनके सामने मैं कैसे नाच सकती थी. उनके डांस को देखकर मैं बहुत क्रेजी हो गई थी.’

सरोज खान ने आगे बताया, ‘जब मैं 14 साल की हुई तो मेरी पहली संतान हुई. राजू खान जो कि आज इंडस्टी का बहुत बड़ा कोरियाग्राफर है. दूसरी संतान बेटी हुई लेकिन 8 बाद ही उसकी मौत हो गई. फिर एक बेटी हुई, जिसका नम कुकू था, उसकी 2011 में मौत हो गई थी. वह 39 साल की थी.’

सरोज खान ने दूसरी शादी करने और धर्म बदलने का खुलासा करते हुए बताया, ‘मैंने दूसरी शादी इसलिए की क्योंकि सोहनलाल मास्टरजी मेरे बच्चों को अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं थे. एक-दो बार मैंने उन्हें चेतावनी दी कि अगर मेरे बच्चों को नाम नहीं देंगे तो मैं हर हाल में दूसरी शादी कर लूंगी. मेरे मन में सवाल यही था कि अगर वो मेरे बच्चों को अपना नाम नहीं देंगे तो वो स्कूल-कॉलेज कैसे जाएंगे. वहां पर किसका नाम लिखाएंगे. उन्होंने कहा कि वो इसमें कुछ नहीं कर सकते. हम दोनों प्यार से अलग हो गए. फिर मैं सरदार रोशन खान से मिली. ताश के पत्ते खेलने के दौरान किटी पार्टी में हमारी मुलाकात हुई थी. हमें प्यार हो गया. वो शादीशुदा थे. उनके चार बच्चे थे. मेरे दो बच्चे थे. उन्होंने ही शादी का प्रस्ताव दिया था. मैंने बच्चों को अपना नाम देने की शर्त पर शादी की थी. फिर मैं हिंदू से मुस्लिम बन गई और खान सरनेम अपने नाम के साथ जोड़ लिया.’

क्या बच्चों ने दूसरी शादी और इस्लाम धर्म अपनाने का विरोध किया? इस सवाल के जवाब में सरोज खान ने कहा था, ‘मैंने बच्चों से कभी कोई चीज छिपाई नहीं. मैंने उन्हें बताया था कि मैं सरदार रोशन खान से प्यार करती हूं. वह हम सबका ख्याल रखेंगे. आप लोगों को जरूरत है नाम की, आगे जाकर आप मुझे दोष देंगे तो मेरा फर्ज तुमको बताना है. अगर तुम कहोगे कि मैं हिंदू ही रहो तो मैं हिंदू ही रहूंगी. मैं शादी नहीं करूंगी. अगर आप मुझे इजाजत देंगे तो हमें एक अच्छा घर-परिवार मिल जाएगा. मेरी एक औलाद थी 11 साल की और एक थी चार वर्ष की. बेटे ने कहा कि जिसमें आपकी खुशी, उसी में हम खुश हैं. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. मेरी दूसरी शादी बहुत अच्छी रही. मेरे दूसरे पति ने कभी भी अहसास नहीं होने दिया कि वो मेरे बच्चों के पिता नहीं हैं. दूसरे पति से मुझे एक बेटी हुई.’

सरोज जिंदगी की कहानी आगे बताते हुए कहती हैं, ‘मेरे दूसरे पति के दो बेटियां थीं. वो मेरे साथ रहती हैं. एक सोलह वर्ष की है और दूसरी 11 साल की है. मेरे दूसरे पति की भी मौत हो चुकी है.’

