राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा– साहित्य बदलाव की बुनियाद है

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राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा– साहित्य बदलाव की बुनियाद है


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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में दो दिवसीय साहित्यिक सम्मेलन का उद्घाटन किया और साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का आधार बताया. मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद थे.

राष्‍ट्रपत‍ि ने दो द‍िवसीय साह‍ित्‍य महोत्‍सव का उद्घाटन क‍िया.

हाइलाइट्स

  • राष्ट्रपति मुर्मू ने साहित्यिक सम्मेलन का उद्घाटन किया.
  • साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का आधार बताया.
  • साहित्य सम्मेलन में मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद थे.

नई दिल्ली: राष्ट्रपति भवन की भव्य दीवारों के बीच दो दिनों के लिए साहित्य की गूंज सुनाई दे रही है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दो दिवसीय साहित्यिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए न केवल साहित्य को सलाम किया, बल्कि इसे भावनात्मक एकता और सामाजिक परिवर्तन का आधार बताया. उन्‍होंने कहा, साहित्य बदलाव की बुनियाद है. इस मौके पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद थे. कार्यक्रम का आयोजन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है.

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि बचपन से ही उनके मन में साहित्य के लिए विशेष स्थान रहा है. समय के साथ यह लगाव और गहराता गया. न्होंने बताया कि वे हमेशा चाहती थीं कि राष्ट्रपति भवन में भारत की सभी भाषाओं और बोलियों के साहित्यकार एकत्र हों, और आज यह सपना साकार हुआ है.उन्होंने साहित्य के प्रभाव को उजागर करते हुए कहा, “साहित्यकार का सत्य, इतिहासकार के तथ्य से अधिक प्रभावी सिद्ध होता है, क्योंकि वह जन-गण के जीवन-मूल्यों को व्यक्त करता है.”

‘हर भाषा मेरी भाषा, हर साहित्य मेरा साहित्य’
अपने भावपूर्ण भाषण में राष्ट्रपति ने भारत की भाषाई विविधता को गले लगाते हुए कहा, “देश की सभी भाषाएं और बोलियां मेरी अपनी हैं. हर भाषा में लिखा गया साहित्य मेरा साहित्य है.” उन्होंने ओड़िया के प्रतिष्ठित कवि उत्कलमणि गोपबंधु दास की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए भारत माता की हर भूमि को शालिग्राम और पुरी धाम की तरह पवित्र बताया.

‘रेवती’ से ‘याज्ञसेनी’ तक: साहित्य जो बदलता है
राष्ट्रपति ने ओड़िया साहित्यकार फकीर मोहन सेनापति की कहानी ‘रेवती’ का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे उस कहानी ने नारी शिक्षा के प्रति समाज की सोच को बदला. उन्होंने कहा, “रेवती जैसी कहानियों ने मेरे जैसे अनेक महिलाओं के जीवन को दिशा दी होगी.” सम्मेलन के दौरान ‘भारत का नारीवादी साहित्य’ पर एक विशेष सत्र भी रखा गया है, जिसे उन्होंने “बहुत महत्वपूर्ण और सराहनीय” बताया. राष्ट्रपति ने प्रतिभा राय के उपन्यास ‘याज्ञसेनी’ का जिक्र करते हुए बताया कि “महिला लेखिका द्वारा नारी चरित्र पर आधारित रचना के 120 संस्करण प्रकाशित होना इस बात का प्रमाण है कि समाज साहित्य को किस रूप में स्वीकार करता है.”

‘आज का साहित्य उपदेश नहीं, सहयात्रा है’
समापन की ओर बढ़ते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने आज के समय में साहित्य की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा, “आज का साहित्य प्रवचन नहीं हो सकता. वह पाठकों का सहयात्री बनकर चलता है, देखता है और दिखाता है, अनुभव करता है और कराता है.” उन्होंने विश्वास जताया कि यह साहित्य सम्मेलन वक्ताओं और प्रतिभागियों के बीच रचनात्मक संवाद का मंच बनेगा, जिससे न केवल भारतीय साहित्य, बल्कि राष्ट्र की भावनात्मक एकता को भी बल मिलेगा.

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