Hazrat Ali Birthday 2026: हजरत अली (रजियल्लाहु तआला अन्हु) का पैदाइश मक्का में हुआ था. इस्लामिक महीने रजब की 13 तारीख को उनका जन्मदिन मनाया जाता है. साल 2026 में यह तारीख 3 जनवरी शनिवार को पड़ रही है.
हजरत अली (रजियल्लाहु तआला अन्हु) इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचेरे भाई और दामाद थे. हजरत अली शिया मुस्लिम समुदाय के पहले इमाम और सुन्नी मुसलमानों के चौथे खलीफा माने जाते हैं.
कहा जाता है कि जब इस्लाम धर्म अपने प्रारंभिक दौर में था और उसे विरोध व संघर्ष का सामना करना पड़ रहा था, तब हजरत अली ने इस्लाम की हिफाजत की और उसके उसूल को आम लोगों तक पहुंचाया. उनके वफादारी, कुर्बानी और ईमानदारी को देखकर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें खलीफा ऐलान किया.
हजरत अली ने हमेशा शांति, प्रेम और भाईचारे का पैगाम दिया. उन्होंने कहा था कि “इस्लाम इंसानियत का धर्म (दीन) है और वह शांति (अमन) का समर्थक (हामी) है।” उनके जीवन का उद्देश्य समाज में अमन कायम करना था.
इस्लाम के पहले वैज्ञानिक
हजरत अली को इस्लाम का पहला वैज्ञानिक माना जाता है, क्योंकि वे आम लोगों तक अपने विचारों को आसानी और दिलचस्प तरीके से पेश करते थे. वे हमेशा अपनी बातों में प्रेम और रहम दिली का पैगाम देते थे. उनके मुताबिक, इस्लाम का रास्ता नफरत या हिंसा का नहीं, बल्कि माफी और हमदर्दी का है. हजरत अली ने हमेशा देशभक्ति और सामाजिक एकता की वकालत की.
चरित्र की व्यक्ति की सच्ची पहचान
हजरत अली के ख्यालात सिर्फ अल्फाज नहीं हैं, बल्कि जीवन का आईना हैं. उन्होंने अपने उपदेशों के जरिय इंसानियत, अखलाक, सबर और खुद पर काबू रखने का जो पैगाम दिया, वह आज भी अहम है. हजरत अली ने कहा कि चुगली करने वाला व्यक्ति अपनी कमी को छिपाने की कोशिश करता है, क्योंकि जो खुद को बेहतर नहीं बना सकता, वही दूसरों की बुराई करता है.
उन्होंने सूरत और सीरत के फर्क को साफ करते हुए बताया कि चेहरा धोखा दे सकता है, लेकिन किरदार ही असल पहचान करवाता है. उनके मुताबिक आज का इंसान दौलत को खुशनसीबी समझता है, जबकि यही उसकी बदनसीबी है.
सब्र करना ही सफलता की कुंजी
हजरत अली ने फरमाया कि जिस्म की ताकत खाना है, जबकि रूह की ताकत दूसरों को खिलाने में है. यह रहमदिली और खिदमत की इंतेहा है. उन्होंने सब्र को कामयाबी की कुंजी बताया और कहा कि सब्र से जीत तय हो जाती है. उनके मुताबिक महान व्यक्ति वही है जो माफ करना और भुला देना जानता है.
अपने आप पर काबू रखने की अहमियत पर भी उन्होंने जोर दिया. अपने फरमाया कि कम बोलना समझदारी है, कम खाना सेहत है, और कम सोना इबादत है.
हजरत अली का ये पैगाम सिर्फ मजहबी नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगी के हर पहलू के लिए जरूरी है. वे सिखाते हैं कि इंसानियत, सब्र, माफी और सच्चाई ही जिंदगी की असली पूंजी हैं.
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