गोरखपुर में जन्मे आईएएस अधिकारी सिद्धार्थ शिव जायसवाल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक समारोह में लगातार तीसरे वर्ष उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सम्मानित किया।
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यह पल न केवल सिद्धार्थ बल्कि गोरखपुर के लोगों के लिए भी गर्व की बात है। आईएएस अधिकारी सिद्धार्थ शिव जायसवाल चौरी चौरा के मुंडेरा बाजार से ताल्लुक रखते हैं।
वर्तमान में वे त्रिपुरा के सिपाहीजाला के डीएम के रूप में कार्यरत हैं। सिद्धार्थ को भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की ओर से सर्वश्रेष्ठ जिला (पूर्वोत्तर क्षेत्र) पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
यह सम्मान जल संरक्षण, नदी पुनर्जीवन, बाढ़ क्षेत्र संरक्षण और सतत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में जिले की उत्कृष्ट उपलब्धियों को मान्यता देते हुए दिया गया, जो समन्वित विभागीय प्रयासों और मजबूत सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से हासिल की गईं।
30 किमी नदी तटों का पुनर्जीवन आईएएस अधिकारी सिद्धार्थ और उनकी टीम की उत्कृष्ट कार्यों में 30 किमी नदी तटों का पुनर्जीवन, जिसमें आवास सुधार, स्थानीय प्रजातियों का पौधारोपण, और जल भंडारण को बढ़ाने और कटाव को रोकने के लिए तटबंध और प्रतिधारण बेसिन का निर्माण शामिल था।
42 जल निकायों को पुनर्जीवित किया गया उन्होंने जल शक्ति अभियान के तहत, जिले ने भूजल पुनर्भरण में महत्वपूर्ण वृद्धि हासिल की। इसके साथ ही 42 जल निकायों को पुनर्जीवित किया गया और रुद्रसागर रामसर वेटलैंड (2.4 वर्ग किमी) का हाइड्रोलॉजिकल पुनर्स्थापन, सफाई और निराई-गुड़ाई, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और 15वें वित्त आयोग के अनुदानों के माध्यम से किया गया।
यह प्रयास पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति जिले की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। साथ ही जैव विविधता और पर्यटन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।
भारतीय सेना में डॉक्टर थे सिद्धार्थ जायसवाल, सिविल सेवा में शामिल होने से पहले भारतीय सेना में डॉक्टर के रूप में कार्यरत थे। इससे पहले उनको 2023 में भूमि सुधारों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार और अपने प्रशासनिक कार्यकाल के दौरान धलाई जिले में राष्ट्रीय जल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
पहले भी हासिल की उपलब्धि इसके अलावा, उन्होंने सिपाहीजाला के तहत 2024 का राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्राप्त किया, जिसमें पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण, जल निकायों का जियो-टैगिंग, चेक डैम का निर्माण और 41 लाख से अधिक बांस के पेड़ लगाने का कार्य शामिल था।

