Monday, December 1, 2025
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Panchjanya Inaugurate: पांचजन्य उद्घाटन से बदलेगा कलियुग का धर्म संतुलन!



Panchjanya Inaugurate: हरियाणा के कुरुक्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य ‘पांचजन्य’ के सम्मान में नवनिर्मित स्मारक का भव्य लोकार्पण किया. पांचजन्य शंख (Panchjanya Shankh) की उत्पत्ति शंखासुर के वध से हुई थी. यह भगवान कृष्ण का वही शंख है, जिसकी ध्वनि से 18 दिनों के महाभारत युद्ध की शुरुआत और अंत हुई थी.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण का पांचजन्य सिर्फ युद्ध का शंख नहीं, बल्कि धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक भी था. आज कुरुक्षेत्र में नवनिर्मित ‘पांचजन्य’ स्मारक के उद्घाटन के बाद सनातनियों के मन में यही सवाह है कि, क्या पांचजन्य की प्रतीकात्मक ध्वनि फिर से वही धर्म ऊर्जा को जागृत होगी.

जब-जब बढ़ता है अर्धम जागृत होती है नवऊर्जा

धर्म शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि, युग चाहे कोई भी हो जब-जब अधर्म का प्रभाव बढ़ता है, तब किसी न किसी रूप में धर्म की नई ऊर्जा जागृत होती है. महाभारत के समय में भी ऐसा ही हुआ था. जब पांचजन्य की ध्वनि से युद्ध की शुरुआत हुई और कृष्ण के उपदेश ने अर्जुन के मनोबल को पुनर्जीवित किया, धर्म-युद्ध की दिशा तय हुई और अधर्म की हार हुई.

विद्वानों के अनुसार, कुरुक्षेत्र में नवनिर्मित पांचजन्य के उद्घाटन को भी आध्यात्मिक चेतना की लहर का नया जन्म माना जा रहा है. पवित्र पांचजन्य की स्थापना के बाद ऐसा माना जा रहा है कि यह सिर्फ एक स्थापत्य नहीं, बल्कि धर्म-ऊर्जा का पुनर्जागरण केंद्र भी बन सकता है.

अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित महाभारत अनुभव केंद्र गीता, धर्म, नीति और युद्ध धर्म के संदेशों को आधुनिक दनिया के समाने लाएगा. साथ ही नवनिर्मित पांचजन्य शंख का उद्घाटन कलियुग के बढ़ते अशांत वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का नया द्वार खोल सकता है.

भगवान कृष्ण का पांचजन्य शंख क्यों था इतना खास

भगवान श्रीकृष्ण के पांचजन्य शंख को लेकर ऐसा कहा जाता है कि, इसकी सबसे बड़ी खासियत भी इसकी ध्वनि. महाभारत काल में जब आज की तरह अत्याधुनिक तकनीक नहीं थी, फिर भी इस शंख को कुछ इस प्रकार बनाया गया था कि इसकी ध्वनि कई किलोमीटर दूर तक जाती थी. कहा जाता है कि, पांचजन्य शंख का शंखनाद हजार शेरों की गर्जना के समान था. महाभारत युद्ध के समय इसी कृष्ण ने इसी शंख का प्रयोग किया था. महाभारत यद्ध की शुरुआत में सुबह और अंत में शाम के समय इसी शंख से शंखनाद होता है था. यह प्रकिया पूरे 18 दिनों तक चली थी.  

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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