पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि मैंने अपने जीवन में डोनाल्ड ट्रंप से ज्यादा उदंड आदमी नहीं देखा। उन्होंने कहा कि जिस पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर को आतंकवादी गाइड करते हो, उसके मुंह से ट्रंप के लिए नोबेल
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर से बंद कमरे में मुलाकात की। दोनों ने व्हाइट हाउस के कैबिनेट रूम में साथ लंच किया। यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ की मेजबानी की है।
निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान को मिटाने में लगे हैं। मैं पाकिस्तान के आतंकवादियों से कहना चाहता हूं कि 100 जन्म ले लो, फिर भी तुम ईरान को भारत से अलग नहीं कर सकते। जो इजराइल का दोस्त होगा, वही ट्रंप के लिए शांति पुरस्कार की मांग करेगा।
निर्दलीय सांसद ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर जमकर हमला बोला।
बोले- अमेरिका ने ठान लिया है कि दुनिया को मिटा देना है
आज दुनिया भर के मुल्क गंभीर दौर से गुजर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अमेरिका ने ये ठान लिया है कि उसे दुनिया को मिटा देना है। मैं अमेरिका की जनता को शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, जो ट्रंप के पाप में उनके साथ खड़े नहीं है। जो देश अपने हथियार को बेचने के लिए पूरी दुनिया को मिटाने की तैयारी कर रहे हैं। वह मानवता और ईश्वर दोनों के ही दुश्मन हैं। ईरान हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा और इजराइल हमेशा अमेरिका के पक्ष में रहा है।
निर्दलीय सांसद ने आगे कहा कि मैं ऐसी उम्मीद करता हूं कि भारत सच्ची दोस्ती निभाते हुए ईरान का साथ देगा। भारत को ईरान के साथ खड़ा रहना चाहिए। ऐसे समय में देश के हर नागरिक को ऐसी अपेक्षा है कि हम ईरान का साथ दें। मैं दुनिया के हर उसे मुल्क से मांग करता हूं, जो मानवता को बचाना चाहते हैं और न्याय प्रिय हैं कि वे इजराइल का साथ ना दे और अमेरिका के दादागिरी के साथ खड़े ना हो।
अब तक 111 लोगों को मिला शांति का नोबेल
नोबेल पीस प्राइज की शुरुआत 1901 में हुई थी। अब तक यह सम्मान 111 लोग और 31 संस्थाओं को मिला है। महात्मा गांधी को 5 बार नॉमिनेट किए जाने के बाद भी नोबेल पीस प्राइज नहीं दिया गया। इस पर कई बार सवाल उठ चुके हैं।
1937 में नोबेल प्राइज कमेटी के एडवाइजर रहे जेकब वॉर्म-मुलर ने कहा था- गांधी एक स्वतंत्रता सेनानी, आदर्शवादी, राष्ट्रवादी और तानाशाह हैं। वो कभी एक मसीहा लगते हैं, लेकिन फिर अचानक एक आम नेता बन जाते हैं। वो हमेशा शांति के पक्ष लेने वालों में नहीं रहे। उन्हें पता होना चाहिए था कि अंग्रेजों के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक अभियान हिंसा और आतंक में बदल जाएंगे।
जेकब की इस रिपोर्ट के बाद कमेटी ने महात्मा गांधी को शांति के लिए नोबेल प्राइज नहीं देने का फैसला किया। ये इकलौता मौका नहीं था, इसके बाद भी 4 बार 1938, 1939, 1947 और 1948 में गांधी को नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था। हालांकि, हर बार उनका नाम हटा दिया गया।
