Monday, July 7, 2025
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आणंद में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा-: अगर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी न होते तो आज कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा न बन पाता – Gujarat News


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद किया। गुजरात के आणंद में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अगर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी न होते तो आज कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा न बन पाता। उन्होंने मुखर्जी के बलिदान और राष्

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अमित शाह ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर को दी गई विशेष स्थिति का जोरदार विरोध किया था। उन्होंने ‘एक देश में दो प्रधान, दो निशान और दो विधान नहीं चलेंगे’ का नारा दिया। शाह ने कहा कि मुखर्जी ने कश्मीर की एकता के लिए खुद को बलिदान कर दिया, तभी जाकर आज जम्मू-कश्मीर भारत का पूरा हिस्सा है।

10 लोगों के साथ की थी पार्टी की शुरुआत गृह मंत्री ने कहा कि पश्चिम बंगाल को भारत का हिस्सा बनाए रखने में भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की बड़ी भूमिका रही। उन्होंने स्वामी प्रणवानंद के साथ मिलकर बंगाल की भारत में एकता सुनिश्चित की। शाह ने कहा कि जिस पार्टी की शुरुआत मुखर्जी ने सिर्फ 10 लोगों के साथ की थी, आज वही भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।

संबोधन से पहले अमित शाह ने त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय का भूमिपूजन किया।

नेहरू सरकार से इस्तीफा देकर बनाई थी जनसंघ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आजादी के बाद नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होकर देश की औद्योगिक नीति बनाने में अहम योगदान दिया। उन्होंने चित्तरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री, सिंदरी फर्टिलाइज़र और हिंदुस्तान जैसी कई संस्थाओं की नींव रखी। लेकिन बाद में नेहरू सरकार की तुष्टीकरण नीति से असहमति जताते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया और 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की।

शिक्षा, उद्योग और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी अमित शाह ने कहा कि मुखर्जी केवल राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि एक शिक्षाविद्, देशभक्त और दूरदर्शी भी थे। उनके पिता अशुतोष मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर और हाई कोर्ट के जज रहते देश की शिक्षा और न्याय व्यवस्था को मजबूत किया। मुखर्जी ने भी शिक्षा, उद्योग और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी।

उनके बलिदान ने देश को झकझोर दिया श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1953 में जम्मू-कश्मीर दौरे पर गए थे, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के दौरान ही 23 जून 1953 को रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। शाह ने कहा कि उनके इस बलिदान ने देश को झकझोर दिया और कश्मीर की एकता का मुद्दा देश की राजनीति का अहम हिस्सा बन गया।



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