Bhajan Clubbing: आधुनिक समय में भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में खासकर युवा पीढ़ी पारंपरिक और धार्मिक आयोजनों से दूर होती जा रही है. मंत्र, जाप, भजन, कीर्जन आदि की जगह पर अब युवा डिस्को, क्लब, पार्टी, नाइट-आउट, कैफे की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं.
लेकिन सोचिए इस बीच कुछ ऐसा ट्रेंड आ जाए जिसमें युवा आध्यात्म की ओर जुड़ना पसंद करने लगे और इसमें उन्हें कोई दबाव नहीं बल्कि मजा आए तो कैसा रहेगा? बस यही है ‘भजन क्लबिंग’.
भजन क्लबिंग का ट्रेंड इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. जब आप इसका नाम सुनते हैं तो मन में डिस्को लाइट्स, DJ बीट्स जैसे वाइब्स सामने आते होंगे, लेकिन भजन क्लबिंग में थोड़ा ट्विस्ट है. यह नया कॉन्सेप्ट अध्यात्म और आधुनिकता का ऐसा मिश्रण है जिसे Gen Z बेहद पसंद कर रही है.
भजन क्लबिंग में भजन, मंत्र, जाप और कीर्तन को क्लब कल्चर की तरह प्रेजेंट किया जा रहा है, वो भी लाइटिंग, बेस, DJ रिदम और रियल-टाइम एनर्जी के साथ. यह एक ऐसा मॉडर्न स्पिरिचुअल सेटअप है जहां लोग डांस फ्लोर पर नहीं, बल्कि डिवोशन फ्लोर पर एनर्जी को रिलीज करते हैं. इसलिए इसे स्पिरिचुअलिटी का कूल और मॉर्डन रूप कहा जा रहा है.
कैसे शुरू हुआ आध्यात्म का यह नया ट्रेंड
भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल, ओवरथिंकिंग, काम का बोझ, करियर का प्रेशर और बढ़ते तनाव के बीच मानसिक शांति के लिए ही युवा पीढ़ियों का झुकाव आध्यात्म की ओर बढ़ा. इसी क्रम में भजन को मॉडर्न म्यूजिक के साथ प्रेजेंट कर क्लब-स्टाइल इवेंट्स करना शुरू हुआ और यह सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ. धीरे-धीरे यह ट्रेंड एक बड़े मूवमेंट में बदल गया. लेकिन यह ट्रेंड किसी व्यक्ति विशेष या किसी विशेष दिन पर शुरू नहीं हुआ.
भजन क्लबिंग में क्या होता है
भजन क्लबिंग एक सुरक्षित और नशा मुक्त स्थान प्रदान कराता है जहां सभी साथ मिलकर गाचते हैं, गाते हैं, मंत्रोच्चारण करते हैं और वास्तविक आनंद का अनुभव करते हैं वो भी बिना हैंगओवर के चिंता के. हमारे पैरेंट्स भी जागरण या जगराता आदि के जरिए ऐसे ही आध्यात्मिकता का अनुभव किया करते हैं. लेकिन बदलते दौर में युवा पीढ़ियों ने बड़े-बुजुर्गों के इसी शौक यानी भजन-कीर्जन को कैफे, बैंकेट हॉल, रेस्टोरेंट और कम्युनिटी स्पेस आदि में करना शुरू किया है. इस तरह से भजन क्लबिंग के जरिए युवा सिर्फ फोन में ही भजन या मंत्र नहीं सुनते बल्कि बड़ी संख्या में एकत्रित होकर पूरे जोश के साथ नाचते और गाते भी हैं.
भजन क्लबिंग GEN Z का नया ट्रेंड है, जिसमें तेज बीट्स और पार्टी सॉन्ग की जगह भजन बजते हैं, हाथों में शराब की जगह चाय होती है और सामूहिक मंत्रोच्चारण से आता है असली हाई किक. आज के दौर में भजन क्लबिंग ऐसा पुल है जोकि युवाओं को परंपरा और आधुनिकता के साथ जोड़कर आध्यात्मिक बनाने का कार्य कर रहा है.
भजन क्लबिंग की ओर क्यों आकर्षित हो रही Gen Z
स्पिरिचुअलिटी को कूल फॉर्म में अनुभव करना: Gen Z को पारंपरिक धार्मिक तरीके कठोर और कई बार बोरिंग भी लगते हैं. लेकिन भजन क्लबिंग के जरिए जब यही चीजें उन्हें लाइटिंग, DJ मिक्स और वाइब्स के साथ मिलते हैं तो उन्हें नया अनुभव देता है.
मानसिक शांति और स्ट्रेस-रिलीफ- क्लासिक क्लबिंग से अलग, यहां कोई नशीले चीजें या नकारात्मक माहौल नहीं होता, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, मंत्रोच्चारण से दिमाग को रिलैक्स मिलता है, जिससे तनाव भी कम होता है.
कम्युनिटी कनेक्शन: इस माहौल में अनजान लोग भी एक परिवार की तरह मिलते हैं.
आधुनिकता और अध्यात्म का कॉम्बो: Gen Z आधुनिकता को अपनाती है, लेकिन अपनी जड़ों से भी जुड़ना चाहती है. भजन क्लबिंग का ट्रेंड इन दोनों का एक आकर्षक कॉम्बिनेशन है.
सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष (Bhajan Clubbing Positive and Negative Aspect)
जब भी हम किसी चीज में बदलाव लाते हैं तो उसके अच्छे और बुरे दोनों ही पक्ष होते हैं. इसी प्रकार इस नए ट्रेंड यानी भजन क्लबिंग को लेकर भी लोगों के अपने-अपने मत हैं. कुछ इसे सकारात्मक मानते हैं तो कुछ इसे नकारात्मक भी मानते हैं.
सकारात्मक पक्ष
- भजन क्लबिंग युवाओं को आध्यात्म से जोड़ने का नया माध्यम है.
- यह तनाव मुक्त और साकारात्मक माहौल देता है.
- भजन क्लबिंग के जरिए युवा किसी दबाव नहीं बल्कि अपनी इच्छा से जुड़ती है. यह ट्रेंड सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाता है.
- सबसे अच्छी बात यह है कि भजन क्लबिंग युवाओं को नशामुक्त माहौल देता है.
नकारात्मक पक्ष
- कई लोग यह भी मानते हैं कि भजन क्लबिंग के जरिए युवा आध्यात्म को मनोरंजन का पैकेज बना रहे हैं.
- यह नया ट्रेंड आध्यात्म की गहराई को कम करता है. क्योंकि भजन, मंत्र और कीर्तन का उद्देश्य शांति और मानसिक एकाग्रता है. लेकिन भजन क्लबिंग में तेज म्यूजिक, लाइट्स और नाच-गाने के जरिए आध्यात्मिकता की वास्तविकता कम होती है.
- युवा भजन क्लबिंग को केवल नया ट्रेंड समझकर अपना रहे हैं ना कि आध्यात्म समझकर.
- कई लोगों का यह भी मानना है कि, भजन और मंत्रों को पॉप-कल्चर में बदल देने से धार्मिक भावनाएं आहत होने की आशंका बढ़ती है.
- भजन क्लबिंग के नाम पर टिकट आधारित इवेंट्स, महंगे पास और स्पॉन्सरशिप होने से धर्म का व्यवसायीकरण बढ़ता है, जो आध्यात्मिक उद्देश्य को कमजोर कर सकता है.
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