सावन के महीने में मांसाहार की दुकानों से लेकर उनकी बिक्री और खाद्य पदार्थों में उनके इस्तेमाल को लेकर यूपी में लगातार विवाद और प्रदर्शन हुए हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.इस बात पर भी विचार किया गया कि क्या यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को भी अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करना जरूरी है.
सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने सुझाव था कि मालिकों से उनका नाम प्रदर्शित करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए. केवल लाइसेंस और पंजीकरण ही दिखाना चाहिए.अब सवाल ये है कि मांसाहार को लेकर क्या भारतीय संविधान में कुछ कहा गया है. कोई प्रतिबंध या समर्थन जैसी बात आई है.
– भारतीय संविधान में मांसाहार (non-vegetarianism) को लेकर कोई स्पष्ट प्रतिबंध या समर्थन नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत पसंद और स्वतंत्रता का विषय माना गया है. इस विषय पर संविधान में कुछ संबंधित धाराएं, अनुच्छेद और कानूनी प्रावधान हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से इस पर प्रभाव डालते हैं.
-संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार को परिभाषित किया गया है. इसमें कहा गया है, “किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है.”
इसका मतलब है कि आप क्या खाएंगे (मांस, मछली, अंडा या शाकाहार), यह आपके निजी जीवन और स्वतंत्रता का हिस्सा है.
– हां, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों ने कई मामलों में कहा है कि भोजन की पसंद व्यक्तिगत मौलिक अधिकार है, जब तक वह कानूनन प्रतिबंधित न हो (जैसे – प्रतिबंधित पशु जैसे गाय या एंडेंजर्ड यानि लुप्तप्राय प्रजातियां). अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता की बात कहता है, यानि हर व्यक्ति को धर्म मानने, उसका प्रचार और अभ्यास करने की स्वतंत्रता है. अगर किसी धर्म या परंपरा में मांस खाना या न खाना शामिल है, तो वह व्यक्ति उस अनुसार आचरण कर सकता है. इसका सीधा अर्थ यह है कि राज्य किसी धर्म विशेष के भोजन नियमों को सब पर थोप नहीं सकता.
– अनुच्छेद 48 में साफतौर पर कहा गया है कि “राज्य को गोवंश और दुग्ध उत्पादक जानवरों के वध को रोकने का प्रयास करना चाहिए.” यह एक निर्देशक सिद्धांत है, बाध्यकारी नहीं, यानी राज्य इसका पालन कर सकता है, लेकिन यह व्यक्ति पर लागू नहीं होता. इसी वजह के कई राज्यों में बीफ बेचने और खाने पर प्रतिबंध नहीं है लेकिन कई राज्यों में गाय के वध पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, परंतु भैंस, बकरी, मुर्गी, मछली आदि पर नहीं.
– संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(g) व्यवसाय करने की स्वतंत्रता देता है. हर नागरिक को कोई भी पेशा, व्यापार या व्यवसाय अपनाने की स्वतंत्रता है.
– बिल्कुल इसका अर्थ यही है. संविधान साफ तौर पर नियमानुसार चल रहे इन व्यावसायों को रोकने की अनुमति नहीं देता. मांस बेचना, मीट शॉप चलाना या मांस से जुड़े व्यवसाय करना मौलिक अधिकार है, बशर्ते वो जब तक कानूनों के अनुसार चलाए जाएं.
– हिन्दुस्तान पेट्रोलियम बनाम हसनखान (2003) मामले में कोर्ट ने कहा कि मांसाहार करना मौलिक अधिकार के तहत आता है. किसी के व्यक्तिगत आचरण में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.
हांसराज बनाम राज्य (राजस्थान HC, 2015) मामले में कोर्ट ने कहा कि नवरात्रि के दौरान मांस की दुकानों को बंद करना असंवैधानिक हो सकता है, क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता और व्यवसाय की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.
सुजाता वली बनाम राज्य मामले में महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने कहा, किसी भी धार्मिक भावना के नाम पर भोजन की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता.
– कुछ राज्य विशेष मांसों पर प्रतिबंध लगाते हैं, लेकिन सभी मांस पर नहीं. जैसे केरल, बिहार और मध्य प्रदेश में गोवंश वध पर प्रतिबंध है. केरल, नॉर्थ-ईस्ट कोई मांस प्रतिबंध नहीं है. महाराष्ट्र में गोहत्या पर प्रतिबंध है लेकिन भैंस काटने की अनुमति है. जम्मू-कश्मीर में गोहत्या प्रतिबंधित है.
– भारत के संविधान में मांसाहार पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं है. यह विषय व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता और चयन के अधिकार से जुड़ा है. संविधान के अनुसार, जब तक किसी के खानपान से लोक व्यवस्था या दूसरों के अधिकारों में कोई अड़चन नहीं आती, तब तक उस पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती.
अनुच्छेद 21 – जीवन जीने के अधिकार के तहत, सुरक्षित और स्वच्छ भोजन का अधिकार भी शामिल है. इसमें मांसाहार भी आता है, बशर्ते कि वह स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मापदंडों का पालन करे.
अनुच्छेद 19(1)(g) – व्यापार और आजीविका की स्वतंत्रता देता है, जिससे मांस व्यापार करने वालों को भी सुरक्षा मिलती है, लेकिन यह अधिकार सार्वजनिक स्वास्थ्य और नियमों के अधीन है.
अनुच्छेद 48 – केवल गायों, बछड़ों और दुधारू/वाहक पशुओं की रक्षा की बात करता है. इसमें पूरे मांसाहार पर प्रतिबंध नहीं है, सिर्फ “गोमांस” (beef) की दिशा में राज्य नीति का मार्गदर्शन है.
अनुच्छेद 14 – सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है. मांस/शाकाहार पर बिना उचित तर्क के पूर्ण प्रतिबंध असंवैधानिक माना जा सकता है.