Monday, November 3, 2025
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Jitiya Vrat 2026: जितिया व्रत 2026 में कब है ? अभी से जान लें डेट


Jitiya Vrat 2026 Date: जितिया व्रत का आज समापन हो गया है. अगले साल 2026 में 3 अक्टूबर को जितिया व्रत किया जाएगा. हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. यह पर्व बिहार, झारखंड और नेपाल के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है.

संतान की खारितर किया जाने वाला जीवित्पुत्रिका व्रत के बहुत प्रभावशाली माना जाता है. महाभारत काल के दौरान भगवान श्रीकृष्ण  ने इस व्रत के फलस्वरूप उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया था.

जितिया व्रत 2026 मुहूर्त

अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि प्रारम्भ –  3 अक्टूबर 2026, सुबह 07:59

अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त – 4 अक्टूबर 2026, सुबह 05:51

  • पूजा मुहूर्त – सुबह 7.44 – सुबह 9.12
  • दोपहर 12.10 – शाम 4.36

जितिया व्रत में किसकी पूजा होती है ?

इस पूजा में महिलाएं कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा करती हैं. साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति बनाती हैं.

कैसे रखते हैं जितिया व्रत ?

जीवित्पुत्रिका व्रत में महिलाएं निर्जला व्रतकरती हैं जो 24 घंटे के लिए किया जाता है. इसमें जल, अन्न, फल, दूध कुछ भी ग्रहण नहीं करते हैं. व्रती को दिनभर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. पर्व का पहला दिन नहाय खाय परंपरा निभाई जाती है, दूसरे दिन व्रत की शुरुआत होती है और तीसरे दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है.

जितिया व्रत कथा

जीमूतवाहन युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर पिता की सेवा करने वन की ओर चले गए थे. एक समय जंगल में विचरण करते हुए उनकी भेंट नागमाता से हुई. जीमूतवाहन के नागमाता से विलाप का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है. अपने वंश की रक्षा करने के लिए उन्होंने गरुड़ से समझौता किया है कि वे रोज गरुड़ को एक नाग खाने को देंगे.

ऐसा करने पर वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा. इस समझौते के बाद अब आज नाग के पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है. जीमूतवाहन ने नागमाता की ये सारी बातें सुनकर उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे व उनकी रक्षा करते हुए सकुशल उन्हें वापस लौटा लाएंगे.

जीमूतवाहन खुद नाग के पुत्र की जगह कपड़े में लिपटकर गरुड़ के सामने रखी शिला पर जाकर लेट गए, जहां से गरुड़ अपना आहार लेते थे. इस  दौरान गरुड़ आये और शिला पर से जीमूतवाहन को पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ ले गये. गरुड़ ने देखा कि हर बार कि तरह इस बार नाग न चिल्ला रहा है और न ही रो रहा है.

इस बार नाग बिल्कुल शांत है. शंका होने पर उन्होंने कपड़ा हटाकर देखा तो जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बताई, जिसके बाद गरुड़ ने उन्हें छोड़ दिया. इसके साथ ही गरुड़ ने नागों को न खाने का भी वचन दिया.

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