आज 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जा रहा है। इस अवसर पर पन्ना टाइगर रिजर्व की सफलता गाथा विशेष चर्चा का विषय है। वर्ष 2008-09 में पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं था।
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तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर श्री निवासन मूर्ति ने बाघ पुनर्स्थापना की पहल की। उन्होंने जन सहयोग से बाघ संरक्षण कार्यक्रम के माध्यम से इस रिजर्व को फिर से बाघों से आबाद करने का बीड़ा उठाया।
इस अभियान में बाघिन टी-1, टी-2 और बाघ टी-3 की भूमिका अहम रही। बाघिन टी-1 को बांधवगढ़ से और टी-2 को कान्हा टाइगर रिजर्व से पन्ना लाया गया था। बाघ टी-3 को पेंच नेशनल पार्क से लाया गया था।
विशेष रूप से बाघिन टी-2, जिसे ‘रानी’ के नाम से भी जाना जाता था, ने 21 शावकों को जन्म देकर पन्ना की बाघ आबादी बढ़ाने में अहम योगदान दिया। इन तीनों बाघों की वंशावली से आज पन्ना टाइगर रिजर्व में लगभग 100 छोटे-बड़े बाघ विचरण कर रहे हैं।
यह सफलता गाथा बाघ संरक्षण के क्षेत्र में एक अनूठा उदाहरण है। शून्य से 100 तक का यह सफर दर्शाता है कि प्रकृति संरक्षण के लिए समर्पित प्रयास और जन सहभागिता से असंभव लगने वाले लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं।