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नई दिल्ली10 मिनट पहले
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कोर्ट ने कहा- हमने वकीलों की पेशेवर स्वतंत्रता और जांच की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आदेश में कहा, ‘जांच एजेंसियां किसी भी वकील को तब तक समन नहीं कर सकतीं, जब तक पुलिस अधीक्षक (SP) की लिखित मंजूरी न हो। यह कदम वकील और मुवक्किल के बीच की गोपनीयता के अधिकार की रक्षा के लिए जरूरी है।
इसके आदेश के साथ ही कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को भेजे गए समन को भी रद्द कर दिया। सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच ने यह फैसला खुद से नोटिस मामले में सुनाया है।
दरअसल, यह मामला ED के वकीलों अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को मनी लॉन्ड्रिंग जांच में समन भेजने से जुड़ा था। इस कदम की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने आलोचना की थी।
इसके बाद ED ने जून में अपने अधिकारियों के लिए आंतरिक दिशा-निर्देश जारी किए थे कि अब किसी वकील को केवल निदेशक की पूर्व अनुमति और धारा 132 के अनुपालन में ही समन किया जा सकेगा।

कोर्ट के फैसले की अन्य पॉइंट्स
- अगर किसी वकील से दस्तावेज या डिजिटल डिवाइस मांगे जाएं, तो यह केवल अदालत के आदेश से ही संभव होगा।
- अदालत संबंधित पक्ष को सुनने के बाद ही डिवाइस की जांच की अनुमति देगी।
- जांच के दौरान अन्य मुवक्किलों की जानकारी गोपनीय रखनी होगी।
- इन-हाउस काउंसल (जो कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं करते) इस संरक्षण के दायरे में नहीं आएंगे
क्या है BSA की धारा 132?
इस धारा के तहत कोई भी वकील अपने मुवक्किल से जुड़ी गोपनीय जानकारी या सलाह बिना उसकी अनुमति के सार्वजनिक नहीं कर सकता।यह पेशेवर संवाद की गोपनीयता को कानूनी सुरक्षा देता है।
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