Monday, July 7, 2025
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School Education: स्कोरिंग और नॉन स्कोरिंग विषय में क्या अंतर है? उदाहरण सहित समझिए, आसान होगा फैसला लेना


नई दिल्ली (School Education). बीते कुछ सालों में स्कूल एजुकेशन में बहुत बदलाव आया है. नई शिक्षा नीति 2020 को लागू करने के लिए अभी और बदलाव होंगे. लेकिन कुछ चीजें हमेशा एक जैसी रहती हैं. जैसे, विषयों को हमेशा ही 2 कैटेगरी में बांटा जाएगा- स्कोरिंग और नॉन-स्कोरिंग. आपने अपने टीचर्स, पेरेंट्स, सीनियर्स या अन्य लोगों से अक्सर यह कहते सुना होगा कि यह विषय स्कोरिंग है, जबकि दूसरा नॉन स्कोरिंग. 10वीं के बाद स्ट्रीम सिलेक्ट करते समय इन बातों का बहुत ख्याल रखना पड़ता है.

स्कोरिंग और नॉन स्कोरिंग विषयों का अंतर मुख्य रूप से उनके मूल्यांकन, परीक्षा में हासिल किए जाने वाले अंकों की संभावना और उनके पाठ्यक्रम की प्रकृति पर आधारित है. इंडियन एजुकेशन सिस्टम और उसमें भी खासकर बोर्ड परीक्षाओं (जैसे CBSE, ICSE या राज्य बोर्ड) और प्रतियोगी परीक्षाओं के संदर्भ में स्कोरिंग और नॉन स्कोरिंग विषयों जैसी शब्दावली का इस्तेमाल किया जाता है. यूपीएससी ऑप्शनल विषय चुनते समय भी इस फैक्टर पर फोकस करना जरूरी होता है.

स्कोरिंग और नॉन-स्कोरिंग विषयों में अंतर

अगर आप किसी खास कोर्स के लिए सब्जेक्ट्स चुन रहे हैं या यूपीएससी का वैकल्पिक विषय फाइनल कर रहे हैं तो स्कोरिंग और नॉन स्कोरिंग विषयों से जुड़ी डिटेल्स की जानकारी जरूर होनी चाहिए.

स्कोरिंग विषय क्या होते हैं?

जिन विषयों में हाई मार्क्स हासिल करने की ज्यादा संभावना होती है, उन्हें स्कोरिंग विषय कहा जाता है. ये विषय आमतौर पर फैक्चुअल, स्ट्रक्चर्ड और ऑब्जेक्टिव होते हैं. इनमें उत्तर स्पष्ट और परिभाषित होते हैं.

विशेषताएं

  • पाठ्यक्रम सीमित और अच्छी तरह परिभाषित होता है.
  • प्रश्न पत्र में MCQs या संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न अधिक होते हैं.
  • मूल्यांकन में सब्जेक्टिविटी कम होती है, जिससे अंक कटने की संभावना भी कम रहती है.
  • प्रैक्टिस और रटने (rote learning) से अच्छे अंक हासिल किए जा सकते हैं.
  • उदाहरण
    गणित: प्रश्नों के उत्तर निश्चित होते हैं और सही विधि से हल करने पर पूरे मार्क्स मिलते हैं.
    विज्ञान (भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान): फैक्ट-बेस्ड और फॉर्मूला-बेस्ड प्रश्नों के कारण स्कोरिंग माना जाता है.
    सामाजिक विज्ञान: इतिहास और भूगोल में फैक्ट्स और परिभाषाओं के आधार पर अच्छे अंक मिल सकते हैं.
    कंप्यूटर विज्ञान: प्रोग्रामिंग और टेक्निकल प्रश्नों में उत्तर निश्चित होते हैं.

    क्यों स्कोरिंग?: इन विषयों में उत्तर या तो सही होते हैं या गलत, जिससे मूल्यांकन में यूनिफॉर्मिटी रहती है. रेगुलर प्रैक्टिस से स्टूडेंट्स इसमें अच्छे अंक हासिल कर सकते हैं.

    नॉन-स्कोरिंग विषय क्या होते हैं?

    जिन विषयों में सब्जेक्टिविटी, क्रिएटिविटी या डीप एनालिसिस की जरूरत होती है, उनमें उच्च अंक हासिल करना कठिन होता है.

    विशेषताएं:

    • उत्तर लंबे, निबंध फॉर्मेट में या एनालिटिकल होते हैं.
    • मूल्यांकन में शिक्षक की पर्सनल राय या व्याख्या प्रभाव डाल सकती है.
    • पाठ्यक्रम व्यापक और abstract हो सकता है.
    • राइटिंग स्टाइल, प्रेजेंटेशन और भाषा की क्वॉलिटी पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.
    उदाहरण
    अंग्रेजी साहित्य: निबंध, Poetry Analysis और लेखन में सब्जेक्टिविटी के कारण पूरे मार्क्स हासिल कर पाना मुश्किल हो सकता है.
    हिंदी या अन्य भाषाएं (साहित्य भाग): लिटरेरी एनालिसिस और निबंध लेखन में उत्तर की क्वॉलिटी पर मार्क्स निर्भर करते हैं.
    दर्शनशास्त्र या समाजशास्त्र: डीप एनालिसिस और लॉजिक की जरूरत होती है. यह सब्जेक्टिव हो सकता है.
    कला (आर्ट्स): क्रिएटिविटी और प्रेजेंटेशन पर निर्भरता के कारण स्कोरिंग सीमित हो सकती है.

    क्यों नॉन-स्कोरिंग?: इन विषयों में आंसर की क्वॉलिटी, राइटिंग स्टाइल और कॉपी चेक करने वाले की Explanation महत्वपूर्ण होती है. छोटी-छोटी गलतियां (जैसे भाषा, स्ट्रक्चरिंग) मार्क्स कम कर सकती हैं.

    किन विषयों को स्कोरिंग माना जाता है और क्यों?

    स्कोरिंग विषयों में निश्चित उत्तर (जैसे गणित में 2+2=4) होते हैं. ये आमतौर पर फॉर्मूला-बेस्ड होते हैं (फिजिक्स या केमिस्ट्री में फॉर्मूले और लॉजिक के आधार पर उत्तर दिए जाते हैं). MCQs या एक-शब्द उत्तर वाले प्रश्नों में गलती की गुंजाइश कम होती है. सोशल साइंस में फैक्ट्स पर आधारित प्रश्न (जैसे तारीखें, घटनाएं) आसानी से याद किए जा सकते हैं.

    उदाहरण
    गणित: सही उत्तर पर पूरे अंक, जैसे ‘Solve 5x + 3 = 18’ का जवाब x=3 होगा.
    विज्ञान: ‘What is the boiling point of water?’ का जवाब 100°C स्पष्ट है.
    सामाजिक विज्ञान: ‘भारत को स्वतंत्रता कब मिली?’ का जवाब 15 अगस्त 1947 निश्चित है.

    किन विषयों को नॉन-स्कोरिंग माना जाता है और क्यों?

    नॉन-स्कोरिंग विषयों में उत्तर की क्वॉलिटी शिक्षक की व्याख्या पर निर्भर हो सकती है. निबंध या एनालिटिकल सवालों में भाषा, लॉजिक और प्रेजेंटेशन मायने रखती है. साहित्य या कला जैसे विषयों में क्रिएटिव एक्सप्रेशन की जरूरत होती है. ये जवाब कई बार पर्सनल थिंकिंग क हिसाब से भी लिखे जाते हैं.

    उदाहरण
    अंग्रेजी साहित्य: ‘Discuss the theme of love in Shakespeare’s Romeo and Juliet’ में मार्किंग आंसर की क्वॉलिटी और एनालिसिस पर निर्भर करता है.
    हिंदी साहित्य: ‘कबीर की भक्ति भावना पर लेख लिखें’ में भाषा और तर्क की गहराई महत्वपूर्ण है.
    समाजशास्त्र: ‘Globalization के प्रभाव’ जैसे प्रश्नों में डीप एनालिसिस चाहिए.

    कुछ विषय स्कोरिंग और कुछ नॉन-स्कोरिंग क्यों माने जाते हैं?

    मूल्यांकन की प्रकृति
    – स्कोरिंग विषयों में objective evaluation होता है, जैसे गणित या विज्ञान में सही/गलत उत्तर.
    – नॉन-स्कोरिंग विषयों में subjective evaluation होता है, जैसे साहित्य में निबंध या एनालिसिस.

    पाठ्यक्रम की संरचना
    स्कोरिंग विषयों का पाठ्यक्रम सीमित और फैक्ट्स पर आधारित होता है.
    नॉन-स्कोरिंग विषयों में ब्रॉड और एब्सट्रैक्ट कॉन्सेप्ट होते हैं.

    स्टूडेंट की तैयारी
    स्कोरिंग विषयों में नियमित अभ्यास और रटने से हाई मार्क्स मिल सकते हैं.
    नॉन-स्कोरिंग विषयों में क्रिएटिविटी, डीप अंडरस्टैंडिंग और अच्छी राइटिंग स्किल जरूरी है.

    मार्किंग स्कीम
    स्कोरिंग विषयों में मार्किंग स्कीम स्पष्ट होती है (जैसे 5 अंक का प्रश्न, 5 बिंदुओं के लिए).
    नॉन-स्कोरिंग विषयों में मार्किंग शिक्षक पर निर्भर कर सकती है.



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