Tuesday, December 2, 2025
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गर्भनाल की झिल्ली की ठीक हो रही आंखें: प्राइवेट हॉस्पिटल में जिसका 70 हजार तक का खर्च, इंदौर के एमवाय में वह सिर्फ ₹250 में – Indore News


एमवाय में सिर्फ 250 रुपए में आंखों का इलाज हो रहा है।

किसी भी प्रकार के हादसों में आंखों में लगी चोट, जख्मों या केमिकल के कारण झुलसी आंखों का इंदौर के सरकारी एमवाय अस्पताल में बेहतर इलाज हो रहा है। खास बात यह कि यह इलाज न्यू बोर्न बेबी के गर्भनाल (प्लेसेंटा) से हो रहा है। गर्भनाल वह हिस्सा होता है जो गर

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डिलीवरी के बाद यह वेस्ट होता है जो किसी काम का नहीं होता लेकिन इससे आंखों की चोटों का इलाज हो रहा है। हर माह 80 से ज्यादा मरीजों को इससे लाभ मिल रहा है। अहम पहलू यह कि प्राइवेट अस्पताल में यह इलाज 35 से 70 हजार रु. में होता है लेकिन एमवायएच में आयुष्मान में फ्री में हो रहा है।

नेत्र रोग विभाग में गर्भनाल के अवशेष को आंखों में लगाया जा रहा है, जिससे रोशनी लौट रही है। इसे एमिनियोटिक मेमब्रेन ग्राफ्टिंग कहा जाता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक डिलीवरी के बाद नवजात के साथ प्लेसेंटा और उसकी परतें बाहर आ जाती हैं।

इन अवशेषों को एकत्र किया जाता है जिसकी छोटी झिल्ली निकालकर आंख में लगाई जाती है। इससे केमिकल के कारण आंखों में जो नुकसान पहुंचता है, वह ठीक होने लगता है।

इन परिस्थितयों में इलाज के लिए उपयोग की जा रही है गर्भनाल जब बच्चा पेट में होता है तो उसे पोषण गर्भनाल से ही मिलता है। यह गर्भस्थ शिशु और मां के बीच खास कनेक्शन होता है। ऐसे में जब गर्भनाल से बच्चे को पोषण मिलता है तो वह बाहर निकलने के बाद भी काफी उपयोगी होता है।

आमतौर पर इसे प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में बायो वेस्ट के रूप में फेंक दिया जाता है। इसे हार्वेस्ट करने के लिए एक सिजेरियन से हुए बच्चे की गर्भनाल की झिल्ली को लेकर झुलसी आंखों (ऊपरी सतह), जख्मों और इंफेक्शन का इलाज किया जाता है।

स्टेम सेल से भी इलाज रिसर्च के तहत जो मरीज देरी से इलाज के लिए पहुंचते हैं या फिर आंख अधिक प्रभावित होने से एमिनियोटिक मेमब्रेन ग्राफ्टिंग से उन्हें लाभ नहीं मिलता है।

ऐसे मरीजों का सिंपल लिम्बल एपिथेलियल ट्रांसप्लांटेशन प्रोसेस से ट्रीटमेंट किया जाता है इसमें जो आंख ठीक होती है, उससे स्टेम सेल निकाला जाता है और जिस आंख में चोट लगी होती है, उसमें लगाया जाता है। इससे मरीजों को कार्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत भी नहीं पड़ती है।

पत्नी ने एसिड डाला तो झुलस गई दोनों आंखें अस्पताल में इलाज के लिए आए इंदौर के एक मरीज से दैनिक भास्कर ने बात की। उसने बताया कि आठ माह पहले आपसी विवाद में पत्नी ने उन एसिड फेंक दिया था।

इससे पीठ तो झुलसी ही दोनों आंखों से भी दिखना पूरी तरह से बंद हो गया। गरीब परिवार के इस व्यक्ति ने एमवायएच में डॉक्टरों को दिखाया।

यहां वह पांच अलग-अलग दौर में करीब एक माह एडमिट रहा। उसकी दोनों आंखों का इलाज गर्भनाल की झिल्ली से किया गया। अभी वह वह फॉलोअप में है। उसने बताया कि उसे पहले से काफी आराम है और दिखने लगा है।

अभी इंफेक्शन न लगे इसलिए चश्मा पहनने के साथ घर पर ही है। अभी कुछ माह तक उसे आंंखों में रेगुलर ड्राप्स डालने होंगे।



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