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ये आपबीती 28 साल के साकेत( बदला नाम) की है। राजगढ़ का रहने वाला साकेत मप्र के उन छह युवाओं में से एक है जो हाल ही में थाईलैंड और म्यांमार से वापस लाए गए हैं। दरअसल, थाईलैंड, लाओस, मलेशिया, कंबोडिया और म्यांमार जैसे देशों में मप्र के युवाओं से साइबर ठगी कराई जाती है। उन्हें अच्छी सैलरी और सुविधाओं का लालच दिया जाता है।
जब वे वहां पहुंचते हैं तो हकीकत कुछ और ही होती है। स्टेट साइबर सेल के अफसरों की माने तो प्रदेश के 300 से अधिक युवा साइबर स्लेवरी (गुलामी) में फंसे हुए हैं। युवा, कैसे साइबर अपराधियों के चंगुल में आकर विदेश तक पहुंच रहे हैं? उन्हें दूसरे देशों में बंधक कैसे बना लिया जाता है और कैसा सुलूक किया जाता है? ये जानने भास्कर ने स्टेट साइबर सेल के एसपी प्रणय एस नागवंशी से बात की। पढ़िए रिपोर्ट
18 घंटे काम, परफॉर्म नहीं किया तो पिटाई स्टेट साइबर सेल ने जिन छह युवाओं को थाईलैंड और म्यांमार से रेस्क्यू किया है, उनसे जब पूछताछ की गई तो उन्होंने खौफनाक अनुभव बताए। स्टेट साइबर सेल के एसपी प्रणय एस नागवंशी बताते हैं कि इन युवकों से बात कर समझ आया कि जहां इन्हें ले जाया गया था, वहां का माहौल डरावना है।
जिन युवाओं को रेस्क्यू किया उन्होंने बताया कि वहां रहने की परिस्थितियां बेहद भयावह है। एक कमरे में चार-पांच लड़कों को ठूंस कर रखा जाता है। हिलने की भी जगह नहीं होती। वे अपने कमरों में 6 घंटे सोने के लिए आते हैं। उनसे 18 घंटे काम कराया जाता है।
यदि वो सही तरीके से परफार्म नहीं कर पाते हैं तो उनकी पिटाई होती है और कई कई बार तो भूखा भी रखा जाता है। उन्होंने बताया कि कई लोगों को कड़ी धूप में बिना हिले-डुले एक ही स्थिति में घंटों खड़ा रखने की सजा भी दी जाती है।

हथियारबंद गार्ड्स के पहरे में काम करते हैं एसपी के मुताबिक पूछताछ में युवकों ने बताया कि उनके काल सेंटर का माहौल बेहद खराब था। वहां बंधक बनाए गए युवा हमेशा हथियारबंद गार्ड्स के पहरे में रहते हैं, वे अपने घर वालों से खुलकर बात तक नहीं कर सकते। जहां वे काम करते हैं, वहीं पर किसी फ्लोर पर उनके रहने की व्यवस्था होती है।
वहां डबल डेकर बेड लगे होते हैं। ऐसे एक हॉल में दर्जनों लोगों को रहने के लिए मजबूर किया जाता है। युवाओं ने बताया कि बस दो बार जैसे-तैसे खाना परोस दिया जाता है, जो कि अच्छा नहीं होता। कुल मिलाकर सोने से लेकर खाने की बेहद खराब व्यवस्था के बीच परिवार से कटे रहने के दौरान पीड़ित युवा बेहद तनाव में आ जाते हैं।

पैसों के लालच में युवा इनके जाल में फंसते हैं
एसपी प्रणय नागवंशी के मुताबिक गिरोह युवाओं को ऊंचे वेतन और विदेश में नौकरी का झांसा देकर बुलाते हैं। उन्हें बताया जाता है कि अच्छे पैसे के साथ सारी सुविधाएं मिलेंगी। उन्हें विदेश में लग्जरी लाइफ का ख्वाब दिखाया जाता है। जैसे ही युवा जॉब ऑफर मंजूर करते हैं। उनके पासपोर्ट से लेकर वीजा और टिकट का इंतजाम भी गिरोह करता है।
जैसे ही ये वहां पहुंचते हैं इनका पासपोर्ट और कागजात छीन लिए जाते हैं। उनका मोबाइल भी जब्त कर लिया जाता है। उन्हें दूसरा मोबाइल दिया जाता है। इससे वे जो भी बात करते हैं उस पर गिरोह के लोगों की निगरानी होती है। इन्हें बंधक बनाकर रखकर साइबर ठगी कराई जाती है, बाकायदा ठगी की ट्रेनिंग देते हैं।
ठगी की भाषा में इसे “बिल ओपन करना” कहा जाता है, यानी किसी को ठग कर पैसा निकलवाना। अगर टारगेट समय पर पूरा नहीं होता तो पहले आर्थिक दंड और फिर शारीरिक यातनाएं दी जाती है।

साइबर क्रिमिनल्स के गिरोह से जुड़े तो प्रमोशन साइबर क्रिमिनल के चंगुल से बचकर आए युवा ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि गिरोह साइबर ठगी के लिए जरूरतमंद युवाओं की हर जगह तलाश करते हैं। इनके एजेंट देशभर में फैले हैं। इसके अलावा टेलीग्राम से भी युवाओं से कॉन्टैक्ट किया जाता है। वहां पहुंचने के बाद ज्यादातर युवाओं को सच्चाई का पता चलता है।
कुछ तो परिवार से दूर रहकर काम ही नहीं पाते तो कुछ मोटी कमाई देखकर परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं। वे नए युवाओं को फंसाने और साइबर ठगी में गिरोह की मदद करने लगते हैं।

परिजनों के खातों में ठगी के रुपए साइबर ठगों के चंगुल में फंसे युवाओं से वादे तो बड़े-बड़े किए जाते हैं, लेकिन उन्हें बंधक बनाने के बाद पूरी तरह अपराध के दलदल में फंसाने के हथकंडे अपनाए जाते हैं। ऐसे बंधुआ मजदूरों काे सैलरी के नाम पर भुगतान विदेशी मुद्रा में किया जाता है, मगर उन्हें रुपए अपने परिवार को भेजने नहीं दिए जाते।
उनसे कहा जाता है कि वे अपने ही देश के किसी व्यक्ति के साथ ठगी करें और उस ठगी का पैसा अपने परिवार के अकाउंट में जमा करें। यानी ठगी की वारदात में परिवार को भी शामिल करने पर मजबूर करते हैं।

एमपी से 300 से ज्यादा युवा ठगों के चंगुल में एसपी नागवंशी के मुताबिक इन देशों में फंसे कई युवा प्रताड़ित हो चुके हैं। इनमें से कुछ ने परिवारों से संपर्क किया तो भारत सरकार ने मार्च के महीने में वहां से 500 से ज्यादा युवाओं को डिपोर्ट किया। अब इनसे पूछताछ कर पता लगा रहे हैं कि कितने युवा वहां फंसे हुए हैं।
जहां तक मप्र की बात करें तो 300 से ज्यादा युवा साइबर क्रिमिनल के चंगुल में फंसे हैं। इनमें से कुछ परिस्थितियों से समझौता कर उन गिरोहों से मिले भी हो सकते हैं, फिर भी बंधुआ मजदूर बनाए गए युवाओं की संख्या 150 से ज्यादा है।

इसी साल मार्च के महीने में थाईलैंड- म्यांमार समेत बाकी देशों से भारतीय को वापस लाया गया है।
साइबर गुलामों की ऐसे हो रही है तलाश
विदेश और गृह मंत्रालय से लेकर साइबर क्राइम से लड़ने वाली एजेंसियां विदेश जाने वाले युवाओं पर नजर रख रही हैं। जो लोग विदेश जा रहे हैं, उनमें से कितने लंबे समय से बाहर हैं? ऐसे कितने हैं जो वीजा खत्म होने के बाद भी वापस नहीं लौटे हैं। ऐसे लोगों के बारे में जानकारी निकाली जाती है।
विदेश मंत्रालय उस देश के भारतीय दूतावास से संपर्क कर इन युवाओं तक मदद पहुंचाता है। इनकी वापसी की राह निकाली जाती है।
