Last Updated:
Chirag Paswan News: चिराग पासवान के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले से बिहार की राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है. राजनीति के जानकार इसे तेजस्वी यादव के लिए नई चुनौती और सीएम नीतीश कुमार के लिए नई सरदर्दी मान र…और पढ़ें
चिराग पासवान के बिहार चुनाव लड़ने के फैसले को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के लिए नई चुनौती माना जा रहा है.
हाइलाइट्स
- चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, एलजेपीआर ने लिया बड़ा फैसला.
- बिहार विधानसभा चुनाव लड़ना तेजस्वी यादव के लिए नई चुनौती मानी जा रही है.
- चिराग पासवान का सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला भी दांव माना जा रहा.
पटना. बिहार की राजनीति की दृष्टि से रविवार को एक बड़ी खबर आई कि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव लड़ाने का फैसला लिया है. इसकी चर्चा तो बीते कई दिनों से थी, लेकिन अब जाकर जब पार्टी ने यह फैसला लिया है तो इसके इसको लेकर बिहार की सियासत में सरगर्मी बढ़ गई है. खास तौर पर एनडीए खेमे में जहां इसको लेकर कयासों का बाजार गर्म है. वहीं, चिराग पासवान का केंद्र की राजनीति से बिहार के सियासी मैदान में सीधे तौर पर आना महागठबंधन के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव के लिए भी एक नई सियासी चुनौती के तौर पर माना जा रहा है. यही नहीं एलजेपीआर ने एक और महत्वपूर्ण फैसला किया है कि चिराग पासवान किसी सामान्य सीट से लड़ेंगे. आखिर चिराग पासवान के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर एलजेपीआर का यह फैसला बिहार की राजनीति की दृष्टि से कितना बड़ा है? क्या तेजस्वी यादव के लिए यह नया चैलेंज है या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई सरदर्दी?
चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव लड़ाने का एलजेपीआर का सियासी दांव बिहार की राजनीति की दृष्टि से क्या कहता है? राजनीति के जानकारों की नजरों से इस फैसले के सियासी मायने निकालेंगे तो एक स्पष्ट रूप से जो संदेश है वह यह कि चिराग पासवान बिहार में अपनी राजनीतिक शक्ति को और सशक्त करना चाहते हैं. दूसरा यह कि उन्होंने अपने लिए कुछ महत्वाकांक्षाएं भी पाल रखी होंगी. अब यह महत्वाकांक्षा क्या है यह तो वक्त बताएगा, लेकिन एलजेपीआर के चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव लड़ाने के फैसले के पीछे कुछ न कुछ बड़ी प्लानिंग जरूर है.
बिहार में कैसा भविष्य देख रहे हैं चिराग पासवान?
दरअसल, चिराग पासवान के बिहार चुनाव लड़ने का सीधा पर जो असर होता है राजनीति के जानकारों की दृष्टि में यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति और तेजस्वी यादव की पॉलिटिक्स, दोनों को प्रभावित करेगा. आने वाले समय में यह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी उम्र और सियासी रूप से ढलान की ओर हैं. आने वाले समय में वह 2025 में एनडीए का चेहरा जरूर हैं, लेकिन इसके आगे की राजनीति में वह कितना सक्रिय रह पाएंगे यह देखने वाली बात होगी. ऐसे में चिराग पासवान की पार्टी को लगता है कि आगे एनडीए में एक फेस की दरकार होगी जो चिराग पासवान भर सकते हैं.
चिराग पासवान की महत्वाकांक्षा आज की नहीं
बता दें कि बीते दिनों चिराग पासवान ने मीडिया से बात करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा था कि ”बिहार मुझे पुकार रहा है. बिहार मेरी हमेशा से प्राथमिकता रही है और अगर पार्टी कहेगी तो मैं विधानसभा चुनाव लड़ूंगा. बतौर सांसद मेरा यह तीसरा कार्यकाल है,लेकिन अब लगता है कि मुझे बिहार में ही रहकर काम करना चाहिए. मेरा सपना है कि बिहार युवाओं को अपना प्रदेश छोड़कर बाहर जाना ना पड़े. मेरी पार्टी और मैंने यह इच्छा जताई है कि मैं विधानसभा चुनाव लड़ना चाहता हूं.” राजनीति के जानकार भी कहते हैं कि चिराग पासवान की महत्वाकांक्षा बिहार का चेहरा बनने की आज की नहीं है. वह जब से 2013 से जब से राजनीति में आए हैं तब से ही उन्होंने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दिया था. वह लगातार युवाओं की बात भी करते रहे हैं ऐसे में वह आने वाले समय में तेजस्वी यादव के सामने एक युवा चेहरा होंगे.
चिराग पासवान का फैसला, तेजस्वी यादव को चुनौती
बिहार में युवा नेतृत्व के तौर पर एकमात्र चेहरा तेजस्वी यादव का बड़ा कद दिखता है, क्योंकि उनके साथ लालू प्रसाद यादव की सियासत की विरासत भी है. जातिगत समीकरण भी फेवर करता है और एक बिहार के दो तिहाई मतदाताओं (मुस्लिम-यादव) पर उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या चिराग पासवान तेजस्वी यादव के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं? जाहिर तौर पर राजनीति में बदलते वक्त के साथ कई समीकरण भी बदलते हैं और उतार-चढ़ाव भी आते हैं. चिराग पासवान अगर चुनावी मैदान में आते हैं तो तेजस्वी यादव की चुनौती बढ़ जाएगी, क्योंकि अभी तक बिहार में युवा चेहरे के तौर पर तेजस्वी यादव के बाद एक प्रशांत किशोर दिखते हैं और अब चिराग पासवान भी होंगे.
सामान्य सीट से लड़कर खास संदेश देंगे चिराग पासवान
सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला भी बड़ा दांव माना जा रहा है. क्योंकि चिराग पासवान मोटे तौर पर जातिवादी राजनीति से के दायरे से बाहर खड़े होने की कोशिश करते देखे जाते रहे हैं जो आज की युवा पीढ़ी को अपील करती है. इतना ही नहीं चिराग पासवान युवा वर्ग में जातिगत दायरे से बाहर भी लोकप्रिय हैं और बिहार में जहां भी जाते हैं वहां उनको देखने-सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है. नये जेनरेशन को वह इस मायने में पसंद हैं कि अपने भाषणों में उन्होंने कभी जातिवादी राजनीति करने की कोशिश नहीं की. अब जब उन्होंने सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है तो यह वह यह भी संदेश देने की कोशिश करते हैं कि वह सक्षम हैं और उनकी स्वीकार्यता सभी वर्गों में है. इतना ही नहीं वह यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि रिजर्व कैटेगरी की सीट को वह कमजोर तबके के नेता के लिए खाली छोड़ेंगे जो बड़ा सियासी संदेश भी होगा. जाहिर तौर पर चिराग पासवान बड़ी सोच समझकर राजनीति के कदम उठा रहे हैं.