Monday, November 3, 2025
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दिल्ली क्लाउड सीडिंग- एक ट्रॉयल की कीमत ₹64 लाख: दो और बाकी; एक्सपर्ट बोले- ये तभी सफल जब नमी 50% हो, कल सिर्फ 15% थी


नई दिल्ली32 मिनट पहले

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दिल्ली सरकार प्रदूषण कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग पर करीब 3.2 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। दिल्ली पर्यावरण विभाग और IIT-कानपुर के बीच हुए समझौता के अनुसार, एक ट्रॉयल की कीमत करीब 64 लाख रुपये है।

28 अक्टूबर को दो ट्रॉयल हुए जबकि पहला पहला टेस्ट 23 अक्टूबर को हुआ था। तीनों ही ट्रॉयल सफल नहीं हो पाए। एक्सपर्ट के मुताबिक, क्लाउड सीडिंग में तभी सफलता मिलती है जब हवा में करीब 50% नमी हो, ट्रॉयल के दौरान नमी 10-15% के बीच थी।

मंगलवार को यूपी के मेरठ से से स्पेशल विमान ‘सेसना’ ने उड़ान भरी थी। विमान ने दिल्ली में खेकड़ा, बुराड़ी, मयूर विहार इलाके में 6 हजार फीट की ऊंचाई पर बादलों में दोपहर 2 बजे केमिकल छिड़का। बताया गया कि ट्रायल के 4 घंटे के अंदर कभी भी बारिश हो सकती है, लेकिन रात तक नहीं हुई।

AAP ने वीडियो बनाकर मजाक उड़ाया

AAP नेता सौरभ भारद्वाज ने वीडियो बनाकर दिल्ली सरकार के इस ट्रायल का मजाक उड़ाया। हंसते हुए कहा, ” 4:30 बज चुके हैं, बारिश नहीं है। उन्होंने कहा, ‘बारिश में भी फर्जीवाड़ा, कृत्रिम वर्षा का कोई नामोनिशान नहीं दिख रहा है। इन्होंने सोचा होगा देवता इंद्र करेंगे वर्षा, सरकार दिखाएगी खर्चा।’

दिल्ली सरकार की रिपोर्ट में दावा- ट्रायल सफल रहा

इधर, दिल्ली सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, मौसम में नमी कम (10-15%) थी, जो क्लाउड सीडिंग के लिए आदर्श नहीं मानी जाती, फिर भी ट्रायल सफल रहा। इससे हवा में मौजूद डस्ट पार्टिकल (PM2.5 और PM10) की मात्रा में कमी दर्ज की गई है। ट्रायल के दौरान नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हल्की बारिश हुई।

वहीं, ट्रायल से पहले PM2.5 का स्तर मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में क्रमशः 221, 230 और 229 था, जो ट्रायल के बाद घटकर 207, 206 और 203 रह गया। इसी तरह PM10 का स्तर 209 से घटकर लगभग 170 के आसपास पहुंच गया।

क्लाउड सीडिंग की 3 तस्वीरें…

दिल्ली में स्पेशल विमान 'सेसना' से क्लाउड सीडिंग की गई।

दिल्ली में स्पेशल विमान ‘सेसना’ से क्लाउड सीडिंग की गई।

स्पेशल विमान 'सेसना' ने कानपुर से उड़ान भरी थी।

स्पेशल विमान ‘सेसना’ ने कानपुर से उड़ान भरी थी।

क्लाउड सीडिंग खेकड़ा, बुराड़ी, मयूर विहार और कई अन्य इलाकों में की गई है।

क्लाउड सीडिंग खेकड़ा, बुराड़ी, मयूर विहार और कई अन्य इलाकों में की गई है।

जानिए कैसे होती है कृत्रिम बारिश

ट्रायल डेटा से बड़े प्लान की तैयारी दिल्ली सरकार का लक्ष्य है कि सर्दियों से पहले वायु गुणवत्ता में सुधार हो सके, जब प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है। यह कोशिश एन्वायर्नमेंट एक्शन प्लान 2025 का हिस्सा है। ट्रायल से जो डेटा मिलेगा, वह भविष्य में क्लाउड सीडिंग को बड़े पैमाने पर लागू करने में मदद करेगा।

सोलापुर में क्लाउड सीडिंग से 18% ज्यादा बारिश

भारत में इससे पहले भी कई बार ऐसे क्लाउड सीडिंग हो चुकी हैं। भारत में 1983, 1987 में इसका पहली बार इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा तमिलनाडु सरकार ने 1993-94 में ऐसा किया गया था। इसे सूखे की समस्या को खत्म करने के लिए किया गया था। साल 2003 में कर्नाटक सरकार ने भी क्लाउड सीडिंग करवाई थी। इसके अलावा महाराष्ट्र में भी ऐसा किया जा चुका है।

वैज्ञानिकों की एक स्टडी में पाया गया कि महाराष्ट्र के सोलापुर में क्लाउड सीडिंग से सामान्य स्थिति की तुलना में 18% ज्यादा बारिश हुई। यह प्रक्रिया सिल्वर आयोडाइड या कैल्शियम क्लोराइड जैसे कणों को बादलों में फैलाकर बारिश को बढ़ाते हैं। 2017 से 2019 के बीच 276 बादलों पर यह प्रयोग किया गया, जिसे वैज्ञानिकों ने रडार, विमान और स्वचालित वर्षामापी जैसे आधुनिक उपकरणों से मापा।

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