Sunday, July 20, 2025
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‘नाम गुम जाएगा…’, कभी संगीत से चिढ़ने लगा था ये सिंगर, राजेश खन्ना की फिल्म से मिला था बड़ा मुकाम


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कैफी आजमी के गंभीर पर सहज बोल और खय्याम के संगीत को जब लरजती खनकती आवाज का साथ मिला तो खूबसूरत सा गाना तैयार हो गया. ये आवाज थी भूपिंदर सिंह की, जो पर्दे पर हाथ में गिटार लेकर क्लब में गाते भी नजर आते थे. उनकी …और पढ़ें

राजेश खन्ना की फिल्म से मिली पहचान

हाइलाइट्स

  • भूपिंदर सिंह ने फिल्म ‘आखिरी खत’ से बड़ा मुकाम हासिल किया.
  • भूपिंदर सिंह को संगीत से चिढ़ थी, बाद में गायक बने.
  • भूपिंदर सिंह ने ‘दिल ढूंढता है’ जैसे अमर गाने दिए.
नई दिल्ली. वैसे पहली बार नहीं था जब भूपिंदर सिंह की गंभीर, भारी और बेलौस आवाज हिंदी सिनेमा में गूंजी थी. इससे पहले वॉर ड्रामा हकीकत में भी इनकी बेमिसाल गायकी से हिंदी सिने जगत रूबरू हुआ था. गाना था वही- होके मजबूर मुझे… यह गीत एक कोरस था जिसे मोहम्मद रफी, मन्ना डे, तलत महमूद और भूपिंदर सिंह ने मिलकर गाया था. उस समय के तीन दिग्गज गायकों के साथ एक नवोदित गायक का नाम आना अपने आप में एक बड़ी बात थी.

भूपिंदर की आवाज इस गीत में साफ सुनाई देती है और उसकी गहराई गीत की भावनाओं को और ज्यादा मजबूत बनाती है. इसी गीत ने उन्हें संगीतकारों और श्रोताओं के बीच पहचान दिलाई। वैसे अमृतसर में जन्मे भूपी कभी सिंगर या म्यूजिशियन बनने की ख्वाहिश नहीं रखते थे। इसका किस्सा भी दिलचस्प है। वो खुद ही कई इंटरव्यू में कहते थे कि पिता चूंकि खालसा कॉलेज अमृतसर में संगीत के प्रोफेसर थे इसलिए घर में माहौल भी संगीतमय था। पिताजी जी चाहते थे कि बेटा म्यूजिक सीखे, लेकिन वो ऐसा नहीं चाहते थे। खेलने में उनका मन ज्यादा रमता था.

राजेश खन्ना की फिल्म से मिली पहचान

जब डीएनए में संगीत हो तो भला कैसे सुरों से नाता तोड़ते, सो भूपिंदर ने गीत संगीत से दोस्ती की और बड़ा नाम कमाया. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन दिल्ली से अपने करियर की शुरुआत की. यहीं से उनके अंदर छिपे हुनर को नई उड़ान मिली. लेकिन हिंदी सिनेमा में उन्हें पहला बड़ा ब्रेक फिल्म ‘आखिरी खत’ (1966) से मिला. चेतन आनंद के निर्देशन में सजी फिल्म में राजेश खन्ना ने पहली बार अभिनेता की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म के संगीतकार खय्याम थे. गजल के उस्ताद खय्याम की एक दुर्लभ जैज रचना थी, जिसे भूपिंदर सिंह की गहरी, गंभीर और विशिष्ट आवाज ने विशेष बना दिया. उन्होंने भूपिंदर को एक मौका दिया और यह मौका उनके करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। खय्याम साहब के साथ बाद में भी सिंगर ने लाजवाब गीत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दिए.

हर गाने को बनाया अमर

भूपिंदर सिंह को संगीत से क्यों होने लगी थी चिढ़?

बचपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहे भूपिंदर सिंह को सख्त मिजाज गुरु और अपने पिता नत्था सिंह के कठोर अनुशासन की वजह से संगीत से चिढ़ भी होने लगी थी. लेकिन बाद में उनको संगीत से ऐसा लगाव हुआ कि सांसों में एहसासों की खुशबू इस कदर घुल गई की उनकी आवाज का असर सदियों तक रहेगा.

अमर कर दिए कई गाने

‘दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन’ के सिंगर भूपिंदर सिंह ने संगीत की दुनिया में अपनी सत्ता लगातार बनाए रखी. अपनी जवारीदार गंभीर आवाज और आवाज से मखमली एहसास पैदा करने वाले महान गायक भूपिंदर सिंह का जादू हमेशा सिर चढ़ कर बोलता रहेगा.

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कभी संगीत से चिढ़ने लगा था ये सिंगर, राजेश खन्ना की फिल्म



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