Monday, July 28, 2025
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न संजय दत्त, न अर्जुन कपूर, इस एक्टर ने किया विलेन को ग्लैमराइज, 2 सुपरस्टार पर पड़े भारी, ब्लॉकबस्टर थी ये मूवी


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प्राण, अमरीश पुरी, डैनी डेग्जोंपा, अजीत ऐसे तमाम बड़े कलाकार हैं, जिन्होंने पर्दे पर विलेन का किरदार निभाया और हीरो से भी ज्यादा पॉपुलर हुए. इनके अलावा एक और कलाकार हुए हैं, जिन्होने विलेन को ग्लैमराइज किया. इतना ही नहीं, फिल्म जब ब्लॉकबस्टर हुई थी, हीरो से ज्यादा विलेन की पूछ होना शुरू हो गई.

आज इंडस्ट्री कोई भी स्टार विलेन बन जाता है. लेकिन ऑडियंस पर कोई खास असर नहीं छोड़ पाता है. पिछली कई फिल्मों में संजय दत्त, बॉबी देओल, अर्जुन कपूर और सैफ अली खान विलेन के किरदार में दिखे, इन लोगों ने विलेन के किरदार को ग्लैमराइज किया है. लेकिन इसकी शुरुआत साल 1975 से हुई थी.

Amjad khan

साल 1975 में आई अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कपूर, हेमा मालिनी और जया बच्चन स्टारर ‘शोले’ में अमजद खान नेगेटिवि रोल में दिखे. उन्होंने विलेन के किरदा को इतना ग्लैमराइज किया कि लोग विलेन को भी पसंद करने लगे थे. उनका “अरे ओ सांभा… कितने आदमी थे?’ यह सिर्फ एक डायलॉग नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो चुका एक पर है.

Amjad khan

अमजद खान ने ‘शोले’ के अलावाल ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘याराना’, ‘चमेली की शादी’ जैसी फिल्मों में काम किया. फिल्मी दुनिया में खलनायक के किरदार को जो गहराई अमजद खान ने दी, वो पहले किसी ने नहीं दी थी. उनके पिता जयंत खुद एक बड़े अभिनेता थे. अमजद खान ने अभिनय की बारीकियों को घर में ही सीखा. बतौर बाल कलाकार उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और धीरे-धीरे रंगमंच से लेकर फिल्मी दुनिया तक, अपने किरदारों में ढलते चले गए.

Amjad khan Death

1975 में आई रेमेश सिप्पी की फिल्म ‘शोले’ में गब्बर सिंह के किरदार ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया. दिलचस्प बात यह है कि इस किरदार के लिए उन्होंने ‘अभिशप्त चंबल’ नामक किताब पढ़ी थी ताकि वह असली डकैतों की मानसिकता को समझ सकें. गब्बर सिंह के रूप में वह भारतीय सिनेमा के पहले ऐसे विलेन बने, जिसने बुराई को ग्लैमर और शैली दी. एक ऐसा किरदार, जो खुद को बुरा मानता है और उस पर गर्व भी करता है.

Amjad khan

‘शोले’ में उनके संवाद ‘कितने आदमी थे?’, ‘जो डर गया समझो मर गया,’ और ‘तेरा क्या होगा कालिया’ जैसे डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं. गब्बर सिंह का किरदार इतना लोकप्रिय हुआ कि अमजद खान को बिस्किट जैसे प्रोडक्ट के विज्ञापन में भी उसी रूप में दिखाया गया. यह पहली बार था जब किसी विलेन को ब्रांड एंडोर्समेंट के लिए इस्तेमाल किया गया.

Amjad khan

अमजद खान केवल ‘गब्बर’ नहीं थे. उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने दर्शकों को गंभीर, हास्य और सकारात्मक भूमिकाओं में भी प्रभावित किया. सत्यजित रे की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी (1977) में नवाब वाजिद अली शाह की भूमिका में उनका शाही ठहराव और सूक्ष्म अभिनय भारतीय कला सिनेमा के लिए एक अमूल्य योगदान था. वहीं, ‘मीरा’ (1979) में उन्होंने अकबर की भूमिका को जिस गरिमा से निभाया, वह ऐतिहासिक पात्रों के चित्रण में एक मानक बन गया.

Amjad khan Death

‘याराना’ और ‘लावारिस’ जैसी फिल्मों में उन्होंने सकारात्मक किरदार निभाए, जबकि ‘उत्सव’ (1984) में वात्स्यायन के किरदार ने उनके अभिनय की बौद्धिक गहराई को उजागर किया. उनके हास्य अभिनय की मिसाल ‘कुर्बानी’, ‘लव स्टोरी’ और ‘चमेली की शादी’ जैसी फिल्मों में मिलती है, जहां उन्होंने दर्शकों को हंसी के साथ-साथ अपनी अदाकारी से हैरान किया.

Amjad khan Death

परदे से बाहर अमजद खान एक बुद्धिमान, संवेदनशील और सामाजिक रूप से सजग व्यक्ति थे. कॉलेज के दिनों से ही वह नेतृत्वकारी व्यक्तित्व रहे और बाद में ‘एक्टर गिल्ड’ के अध्यक्ष के तौर पर कलाकारों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे. कई बार उन्होंने कलाकारों और निर्माताओं के बीच मध्यस्थता कर समाधान निकाले. एक ऐसा पहलू जो शायद आम दर्शक के सामने नहीं आता, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें अपार सम्मान दिलाता था.

Amjad khan Deat

वह एक समर्पित पारिवारिक व्यक्ति थे. उन्होंने 1972 में शायला खान से विवाह किया, जो प्रख्यात लेखक अख्तर उल इमान की बेटी थीं. उनके तीन संतानें, शादाब, अहलम और सिमाब हैं. शादाब खान ने भी पिता की राह पर चलने की कोशिश की, लेकिन अमजद खान जैसी छवि बना पाना शायद किसी के लिए संभव नहीं था. 1980 के दशक में उन्होंने ‘चोर पुलिस’ और ‘अमीर आदमी गरीब आदमी’ जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया, लेकिन निर्देशन में उन्हें वैसी सफलता नहीं मिली जैसी अभिनय में.

Amjad khan

1976 में एक गंभीर सड़क दुर्घटना के बाद उनकी सेहत प्रभावित हुई. उन्हें दिए गए स्टेरॉयड के कारण उनका वजन बढ़ता गया, जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हुआ. अंततः 1992 में 27 जुलाई को हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया. उनकी अंतिम यात्रा में बॉलीवुड के तमाम दिग्गज शामिल हुए. उनकी शवयात्रा जब बांद्रा की गलियों से निकली, तो मानो पूरा हिंदी सिनेमा उनके सम्मान में सिर झुकाए खड़ा था.

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