Wednesday, June 25, 2025
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बेरहमी की हर हद पार! कम नंबर से नाराज पिता ने बेटी को उतारा मौत के घाट.. कोई तो समझाओ- ज़िंदगी बस यही नहीं


नई दिल्ली (Exam Results). हर घर का माहौल अलग होता है. किसी भी परीक्षा का रिजल्ट जारी होने के बाद उसे समझना आसान हो जाता है. बोर्ड परीक्षा के नतीजे घोषित होने पर कई परिवारों ने कम नंबर पर भी बच्चों को दुलारा. वहीं, महाराष्ट्र के सांगली जिले के थोंडीराम भोसले की अपेक्षाओं के आगे एक युवा जिंदगी हार गई. थोंडीराम की 17 वर्षीय बेटी साधना ने नीट मॉक टेस्ट अटेंप्ट किया. उसमें कम नंबर आने पर थोंडीराम को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने साधना को डंडे से मारना शुरू कर दिया.

इस दौरान साधना के सिर पर गंभीर चोटें आईं. उसे पास के हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. यह मामला बहुत दुखद है और एक पिता की क्रूरता और जबरदस्ती की अपेक्षाएं दर्शाता है. यहां यह भी गौर करने की बात है कि साधना पढ़ाई-लिखाई में काफी होशियार थी. उसने बोर्ड परीक्षा मे 92.60% मार्क्स हासिल किए थे. वह 1 साल से नीट की तैयारी कर रही थी. उसे मारने वाला उसका पिता स्कूल प्रिंसिपल बताया जा रहा है.

क्या परीक्षा परिणाम से ही बनेगी जिंदगी?

महाराष्ट्र में हुई यह घटना बहुत दुखद और चिंताजनक है. यह माता-पिता और बच्चों के बीच शैक्षिक दबाव से उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याएं उजागर करती है. साथ ही एक बार फिर से हम सबके सामने एक सवाल खड़ा करती है- क्या अच्छे परीक्षा परिणाम से ही जिंदगी बन सकती है? इन दिनों बच्चों के ऊपर से पढ़ाई का दबाव कम करने के लिए एजुकेशन सिस्टम में बदलाव किया जा रहा है. मनोवैज्ञानिक भी बच्चों पर रिजल्ट का अनुचित दबाव नहीं बनाने की सलाह दे रहे हैं. इसके बावजूद इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं.

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शैक्षिक दबाव का घातक परिणाम

यह घटना भारतीय समाज में प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े अत्यधिक दबाव का आईना है. साधना जैसी मेधावी छात्रा पर भी अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव था.. और उसके प्रिंसिपल पिता ने इस दबाव को हिंसक रूप दे दिया. यह दर्शाता है कि कैसे माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाएं बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं. अब समाज को यह समझना होगा कि न तो हर बच्चा एक जैसा प्रदर्शन कर सकता है और न ही एक मॉक टेस्ट का परिणाम किसी का भविष्य परिभाषित कर सकता है.

Parenting Tips: बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का दबाव न डालें

हिंसा किसी बात का हल नहीं

पिता की क्रूरता से परेशान साधना ने कहा था- आप कौन सा कलेक्टर बन गए. बेटी के जवाब ने पिता को इतना भड़का दिया कि वह हिंसा में बदल गया. यह किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. माता-पिता का कर्तव्य अपने बच्चों को गाइडेंस देना, उन्हें प्रोत्साहित करना है, न कि उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना. कई पेरेंट्स, छोटी-बड़ी कैसी भी बात होने पर बच्चों पर हाथ उठाते हैं या उन्हें डांटते-फटकारते हैं. उन्हें यह समझना चाहिए कि ऐसा व्यवहार किसी बात का हल नहीं, बल्कि नई समस्याओं की शुरुआत है.

बेटी ने हताशा में पूछा होगा सवाल

माता-पिता का हिंसक व्यवहार बच्चों की ओवरऑल ग्रोथ में बाधा बनता है. इससे वह चाइल्डहुड ट्रॉमा का शिकार हो जाते हैं. यह सालों बाद तक उनकी पर्सनैलिटी में झलकता है. माता-पिता को बच्चों के साथ संवाद में धैर्य और सहानुभूति बरतनी चाहिए. साधना ने अपने पिता से पूछा था- आप कौन सा कलेक्टर बन गए? हो सकता है कि उस बच्ची ने यह सवाल हताशा या तनाव के कारण पूछ लिया हो. लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नहीं था कि एक पिता ने रिश्तों का खून कर डाला.

समाज और शिक्षा प्रणाली को बच्चों और माता-पिता, दोनों को स्ट्रेस मैनेजमेंट, मेंटल हेल्थ और हेल्दी कम्युनिकेशन के क्षेत्रों में शिक्षित करने की जरूरत है. स्कूलों में बच्चों और माता-पिता के लिए काउंसलिंग सर्विसेस शुरू होनी चाहिए. साथ ही कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू किए जाने चाहिए. इनमें अटेंडेंस भी अनिवार्य कर देनी चाहिए. इससे भी सुधार न नज़र आए तो सर्वे करके बच्चों और उनके माता-पिता की मेंटल स्टेट पता करने पर काम किया जाना चाहिए.

जरूरी है कानूनी और सामाजिक जवाबदेही

साधना की मां प्रीति भोसले ने अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कर बेहतरीन कदम उठाया. इसके आधार पर ही धोंडीराम को गिरफ्तार किया गया. इससे एक सबक मिलता है कि हिंसा को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह परिवार के भीतर ही क्यों न हो. हालांकि प्रीति भोसले अगर पहले से पति के व्यवहार में इस तरह की क्रूरता नोटिस कर रही थीं तो उन्हें पहले ही एक्शन लेना चाहिए था. अगर ऐसा हो गया होता तो शायद उनकी होनहार बेटी आज ज़िंदा होकर अपने सपने जी रही होती.

ज़िंदगी से कीमती नहीं है कुछ भी

करियर में ग्रोथ और एक सुनहरे भविष्य के लिए पढ़ाई-लिखाई करना जरूरी है. उससे ज़िंदगी बनती है लेकिन ज़िंदगी सिर्फ उसी से नहीं है. हर बच्चा दूसरे से अलग होता है, सबकी अपनी क्षमताएं होती हैं. कोई किसी क्षेत्र में अच्छा करता है तो दूसरा किसी और में मास्टरी कर लेता है. नीट जैसी परीक्षाओं में लाखों स्टूडेंट्स शामिल होते हैं, लेकिन मेडिकल कॉलेज में सीटों की संख्या सीमित होती है. इस कॉम्पिटीशन से उत्पन्न तनाव को कम करने के लिए वैकल्पिक करियर ऑप्शंस को बढ़ावा देना चाहिए.

बच्चे के कम नंबर आने पर क्या करें?

यह घटना सिर्फ माता-पिता ही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम और समाज के लिए आई ओपनर है. जानिए परीक्षा में बच्चों के कम नंबर आने पर क्या करना चाहिए-

शांत और सहानुभूतिपूर्ण रवैया

बच्चों के कम नंबर को व्यक्तिगत असफलता के रूप में न देखें. इसके बजाय उससे आराम से बात करें और उनकी भावनाओं को समझें. गुस्से में आकर हिंसा का सहारा न लें. यह कोई विकल्प है ही नहीं. माता-पिता को अपने गुस्से पर कंट्रोल करना चाहिए और बच्चे को डराने या उस पर दबाव डालने से बचना चाहिए.

समझें बच्चे की समस्या

परीक्षा में कम नंबर के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे पढ़ाई में कठिनाई, तनाव या अधूरी तैयारी. बच्चे से खुलकर बात करें और उसकी मुश्किलों को जानने की कोशिश करें. साधना ने 10वीं में 92.6% अंक हासिल किए थे. इसका मतलब है कि वह पढ़ाई में कमजोर नहीं थी.

बच्चों को चाहिए आपका सपोर्ट

बच्चे को विश्वास दिलाएं कि एक परीक्षा उनके भविष्य को पूरी तरह से परिभाषित नहीं करती है. उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे अगली बार बेहतर कर सकते हैं. माता-पिता को बच्चों के सपनों को समर्थन देना चाहिए, न कि उन पर अनुचित दबाव डालना चाहिए.

जरूरी है ओपन कम्युनिकेशन

बच्चों के साथ नियमित और पॉजिटिव बातचीत करें. उनकी परेशानियां सुनें और बिना आलोचना किए समाधान सुझाएं. साधना के मामले में पिता और बेटी के बीच तीखी बहस हुई, जिसमें साधना ने पिता की उपलब्धियों पर सवाल उठाया. इससे पिता और भड़क गए. माता-पिता को ऐसी स्थिति में धैर्य रखना चाहिए.

मेंटल हेल्थ का रखें ध्यान

शैक्षिक दबाव बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी असर डाल सकता है. अगर बच्चा स्ट्रेस में या निराश दिखे तो उसे मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लेने के लिए प्रेरित करें. दबाव और हिंसा बच्चों के लिए बहुत हानिकारक हो सकती है. माता-पिता को बच्चों की मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता देनी चाहिए.

अपेक्षाओं पर रखें कंट्रोल

हर बच्चे की क्षमता अलग होती है. माता-पिता को बच्चों पर अपनी अपेक्षाएं थोपने के बजाय उनकी रुचियों और ताकत को पहचानना चाहिए. नीट जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत तगड़ा कॉम्पिटीशन होता है. इसमें कम नंबर आना सामान्य बात है. माता-पिता को समझना चाहिए कि असफलता सीखने का हिस्सा है.



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