Friday, August 1, 2025
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महाभारत : दुर्योधन के मृत्यु पर क्यों देवताओं ने उस पर फूलों की बारिश, लज्जित हो गए पांडव


दुर्योधन जलाशय के किनारे मरणासन्न स्थिति में पड़ा था. हालांकि उसमें चेतना बची थी. उसने भीम से गदा युद्ध हारने और दोनों जांघें टूटवाने के बाद पांडवों से ऐसी बात बोली कि कृष्ण की मौजूदगी में ही देवतागण आकाश से उस पर फूलों की बारिश करने लगे. उसे शाबासी देने लगे. ये देखकर कृष्ण और पांडव दोनों लज्जित हो गए. आखिर पूरी कहानी क्या है.

दरअसल जब भीम ने सरोवर में छिपे दुर्योधन को युद्ध में हारने के बाद चुनौती दी. उसे बाहर आकर गदा युद्ध करने की चुनौती दी तो वो बाहर निकल आया. भीम से उसका जबरदस्त युद्ध हुआ. आखिरकार कृष्ण के इशारे पर भीम ने गदा के प्रहार से उसकी दोनों जाघें तोड़ दीं. वो जमीन पर आ गिरा. ऐसे में कृष्ण को उसने कटु बातें सुनाईं.

तब क्या हुआ कृष्ण और दुर्योधन संवाद 

बदले में कृष्ण ने भी उससे कहा कि अगर वो युद्ध में हार गया. अपने सारे भाइयों और राजपाट को खो बैठा तो ये उसके पाप की वजह से ही हुआ. कृष्ण ने उसे कहा कि उसने सारे गलत काम किए. लोभ किए. दुष्कर्म किए और इसी वजह से उसका फल भुगत रहा है.

तब दुर्योधन ने फिर कहा, मैने दान करते हुए पृथ्वी पर शासन किया. शत्रुओं से बहादुरी से मुकाबला किया. देवगणों के योग्य दुर्लभ राज्य को भोगा. सारा ऐश्वर्य हासिल किया. मेरे समान आखिर कौन है. कृष्ण इस बात को सुन लो कि मैं अपने सभी स्वजनों और भाइयों को स्वर्ग में लेकर जाऊंगा. तुम लोगों का संकल्प पूरा नहीं हो पाया.

महाभारत में जब दुर्योधन मरणासन्न हालत में जमीन पर लेटा था तब आकाश से उस पर फूलों की बारिश होने लगी. (news18)

तब उस पर आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी

जैसे ही दुर्योधन ने ये बात कही, तब आकाश ने पुष्पवर्षा उस पर होने लगी. अप्सरा और गंधर्व गीत गाने लगे. सिद्धगणों ने उसे साधु – साधु कहा. दुर्योधन का इस तरह सम्मान होते देख कृष्ण और पांडव दोनों लज्जित हो गए. तब कृष्ण को पांडवों से कहा पड़ा कि अगर मैने युद्ध में अनुचित तरीकों का इस्तेमाल किया तो केवल इसलिए क्योंकि न्याय युद्ध में आप लोग जीत नहीं पाते. आप लोगों की हित साधना के लिए ही मैने शत्रुओं के अधिक ताकतवर होने पर कई तरह के कूट उपायों से उनका वध कराया. …और वाकई इसके बाद दुर्योधन को अपने भाइयों के साथ स्वर्ग में जगह मिली.

दुर्योधन को अधर्म और क्रूरता का प्रतीक माना जाता है

कहा जाता है कि जब दुर्योधन की मृत्यु हुई, तो देवताओं ने आकाश से उस पर फूलों की वर्षा की. यह घटना पहली दृष्टि में आश्चर्यजनक और विरोधाभासी लगती है, क्योंकि दुर्योधन को अधर्म और क्रूरता का प्रतीक माना जाता था. महाभारत में दुर्योधन को एक महत्वाकांक्षी, अहंकारी, और ईर्ष्यालु व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जिसकी पांडवों, विशेषकर भीम और द्रौपदी, के प्रति शत्रुता ने कुरुक्षेत्र के युद्ध को जन्म दिया.

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द्यूतक्रीड़ा में पांडवों को छलना और द्रौपदी का अपमान जैसे कामों ने दुर्योधन को अधर्म का प्रतीक बना दिया. (news18)

कौन से सकारात्मक गुण थे उसमें

उसकी नीतियों जैसे द्यूतक्रीड़ा में पांडवों को छलना और द्रौपदी का अपमान जैसे कामों ने उसे अधर्म का प्रतीक बना दिया. फिर भी दुर्योधन के चरित्र में कुछ सकारात्मक गुण भी थे, जैसे उसकी वीरता, अपने मित्र कर्ण के प्रति निष्ठा और गदा युद्ध में अद्वितीय निपुणता.

तब भीम ने उसको गदा युद्ध के लिए ललकारा

महाभारत के युद्ध के 18वें दिन जब कौरव सेना लगभग नष्ट हो चुकी थी. दुर्योधन अकेला पड़ गया.वह झील में छिप गया. पांडवों ने उसे ढूंढ निकाला. भीम ने उसे गदा युद्ध के लिए ललकारा. दोनों योद्धा समान रूप से शक्तिशाली थे, लेकिन श्रीकृष्ण के संकेत पर भीम ने दुर्योधन की जंघाओं पर प्रहार किया, जो गदा युद्ध के नियमों के विरुद्ध था. दुर्योधन गंभीर रूप से घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई.

उसकी मृत्यु वीर योद्धा के रूप में हुई

महाभारत के कुछ संस्करणों, विशेष रूप से लोकप्रिय कथाओं और टीवी धारावाहिकों जैसे बी. आर. चोपड़ा की “महाभारत” में, यह उल्लेख किया गया है कि दुर्योधन की मृत्यु के बाद देवताओं ने आकाश से फूलों की वर्षा की. उसकी मृत्यु एक वीर योद्धा के रूप में हुई, जो आखिर तक अपने कर्तव्य (क्षत्रिय धर्म) का पालन करता रहा. हिंदू परंपरा में एक वीर योद्धा की मृत्यु को सम्मानित किया जाता है. देवताओं द्वारा फूलों की वर्षा को दुर्योधन के इस वीरत्व के सम्मान के रूप में देखा जा सकता है.



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