गीता हमें समझाती है कि संसार में मोह-माया है जिसके आसक्ति में मनुष्य पड़ता है. वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता है लेकिन एक भ्रम जाल हमारे आसपास के वातावरण को घेरे रखे रहता है. इस दुनिया से संतुलन बनाते हुए किस तरह हमें स्पष्टता और व्यावहारिकता के साथ चलना है. कैसे व्यक्ति भ्रम से उठकर यथार्थ रूप में रह सकता है. इसी से तालमेल करना गीता हमे सीखाती है.

गीता को जिस दृष्टि से देखा जाए, उस हिसाब से गीता हमें उपदेश देती है. यह मानव जीवन को एक दृष्टि प्रदान करती है जहां पर मनुष्य मोह-माया से ऊपर उठ कर अपना कर्तव्य करता है. गीता के उपदेशों को जीवन में उतारने पर जीवन खुशहाल बनता है और कभी मन विचलित नहीं होता है. गीता में भगवान कृष्ण बताते हैं कि माया के स्वरूप को समझने से व्यक्ति को जीवन में कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर रहने में मदद मिलती है.

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आसक्ति मन को निर्बल बनाती है. आसक्ति से व्यक्ति के मन में भय, क्रोध व भ्रम पैदा होता है. अगर मनुष्य इस भ्रम को त्याग दें तो उसका जीवन संवर जाता है. किसी के प्रति आसक्ति ही हमें निर्बल बनाती है. श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि हे अर्जुन, सच्ची स्वतंत्रता उसी को मिलती है जो फल की इच्छा त्यागकर समभाव से अपना कर्तव्य निभाना सीख लेता है.

गीता हमें समझाती है कि आसक्ति त्याग देने का मतलब दुनिया से विमुख होना नहीं है बल्कि हमें उन कर्तव्यों को पूरा करना है जो धर्म हित में हो. श्रीकृष्ण कहते हैं कि इसका अर्थ है कि मन भीतर से शांत रहे और कर्म श्रद्धा के साथ किया जाए. गीता सिखाती है कि अपना कर्तव्य निभाओ और परिणामों को स्वीकार करो.

भगवान कृष्ण बताते हैं कि कर्म करते समय हर मनुष्य का उद्देश्य होता है और जब वह अपने कर्तव्य को निष्ठा व समर्पण से निभाता है, तभी उसे आंतरिक शांति प्राप्त होती है. संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है. ऐसा ज्ञान मन को अनावश्यक दबाव से मुक्त कर देता है. फिर मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपने जीवन के साथ संतुलन बना लेता है.

गीता हमें सीखाती है कि हमें प्रत्येक दिन प्रकृति के नियम और धर्मानुरूप कार्य करना चाहिए. अपने कर्तव्य को सत्य, निष्ठा के साथ पूरा करना चाहिए. कर्तव्य ऐसा होना चाहिए कि दूसरों को उससे ठेस नहीं पहुंचे. प्रतिदिन हमें प्रात:काल में उठ कर प्रार्थना के साथ जीवन की शुरूआत करनी चाहिए.
Published at : 25 Nov 2025 06:00 AM (IST)

