दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने विकसित उत्तर प्रदेश @ 2047 – शिक्षा एवं कौशल विकास महाचर्चा में भारतीय ज्ञान प्रणाली को मजबूत आवाज दी। इस महत्वपूर्ण आयोजन में विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने भारतीय ज्ञान परंपरा विषयक सत्र की अध्य
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कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने किया
भारतीय ज्ञान परंपरा को भविष्य की शिक्षा से जोड़ने पर जोर
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. टंडन ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल सांस्कृतिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी, दर्शन, कला, कृषि, योग और समाज को समझने का प्राचीन और समृद्ध आधार है। उन्होंने बताया कि अगर इस परंपरा को आधुनिक शिक्षा, शोध, नवाचार, उद्यमिता और कौशल विकास से जोड़ा जाए, तो यह उच्च शिक्षा क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दे सकती है।
प्रो. टंडन ने कहा कि पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेज़, धरोहर सूचीकरण और स्थानीय परंपरा विशेषज्ञों के साथ विश्वविद्यालयों का सहयोग उत्तर प्रदेश के लिए बेहद उपयोगी होगा। उन्होंने बताया कि अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, UP की शिल्प परंपराएँ, लोककला, कृषि विरासत और सांस्कृतिक विविधता राज्य को भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रमुख केंद्र बना सकती हैं।
विभिन्न विद्वानों ने रखे अपने विचार
सत्र में प्रो. बिहारी लाल शर्मा (वाराणसी), प्रो. ए. के. त्यागी (वाराणसी), बिजेन्द्र सिंह (अयोध्या) और प्रो. विनय कुमार पाठक (कानपुर) ने अपने विचार साझा किए। विद्वानों ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा को शोध, उद्योगों के सहयोग, कौशल विकास, वैश्विक शिक्षा कार्यक्रमों और रोजगार के नए अवसरों से जोड़ने की दिशा में काम होना चाहिए।
उच्च शिक्षा विभाग ने प्रो. टंडन के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर उनकी दृष्टि राज्य की उच्च शिक्षा नीतियों को विकसित भारत 2047 के लक्ष्यों के अनुरूप नई दिशा देती है।
कार्यक्रम में कई विशेषज्ञों ने दिया मार्गदर्शन
मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. जी. एन. सिंह, आर्थिक सलाहकार डॉ. के. वी. राजू, शिक्षा सलाहकार प्रो. डी. पी. सिंह, नीतिगत दिशा पर अवनीश अवस्थी, उच्च शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एम. पी. अग्रवाल, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी, और उच्च शिक्षा कैबिनेट मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने अपनी-अपनी दृष्टि से विकसित उत्तर प्रदेश @ 2047 की रूपरेखा पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए।

