सिर्फ प्रेग्नेंसी नहीं, माहवारी में देरी के लिए ये आठ वजह भी जिम्मेदार… देख लीजिए पूरी लिस्ट

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सिर्फ प्रेग्नेंसी नहीं, माहवारी में देरी के लिए ये आठ वजह भी जिम्मेदार… देख लीजिए पूरी लिस्ट


महिलाओं के लिए मासिक धर्म यानी माहवारी नैचुरल और बेहद अहम फिजिकल प्रोसेस है, जिससे उनकी रीप्रोडक्टिव हेल्थ का पता चलता है. सामान्य तौर पर मासिक धर्म चक्र 21 से 35 दिन का होता है, लेकिन कई बार यह चक्र अनियमित हो जाता है. आम धारणा है कि माहवारी में देरी का मतलब प्रेग्नेंसी है, लेकिन कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि इसके पीछे कई अन्य कारण भी हो सकते हैं. आइए जानते हैं उन अठ कारणों के बारे में, जो माहवारी में देरी के लिए जिम्मेदार होते हैं.

माहवारी में देरी का मतलब क्या?

मासिक धर्म चक्र की शुरुआत पहले दिन से अगले चक्र के पहले दिन तक मानी जाती है. सामान्य रूप से यह पीरियड 28 दिन का होता है, लेकिन 21 से 38 दिन तक का चक्र भी सामान्य माना जाता है. यदि माहवारी सामान्य चक्र से 7 दिन या उससे अधिक देर से आती है या 6 सप्ताह से अधिक समय तक नहीं आती तो इसे देरी या मिस्ड पीरियड माना जाता है. यह स्थिति बार-बार होने या लंबे समय तक बनी रहे तो यह एमेनोरिया (मासिक धर्म का बंद होना) का संकेत हो सकती है. इसके लिए डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है.

स्ट्रेस की वजह से लेट होते हैं पीरियड्स

स्ट्रेस का सीधा असर हमारे हार्मोनल बैलेंस पर पड़ता है. 2024 में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) द्वारा पब्लिश एक स्टडी के अनुसार, ज्यादा तनाव गोनैडोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन (GnRH) के प्रॉडक्शन में रुकावट डालता है, जो ओव्यूलेशन और मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करता है. तनाव के कारण कोर्टिसोल हार्मोन का लेवल बढ़ता है, जो एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोनों के प्रॉडक्शन को प्रभावित करता है. यह स्थिति माहवारी में देरी या अनियमितता का कारण बन सकती है.

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से भी होती है दिक्कत

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) नॉर्मल हार्मोनल डिसऑर्डर है, जो भारत में 10-20% महिलाओं को प्रभावित करता है. यह स्थिति पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) के ज्यादा प्रॉडक्शन के कारण होती है, जिससे अंडाशय में सिस्ट बन सकते हैं. ये सिस्ट ओव्यूलेशन में बाधा डालते हैं, जिसकी वजह से माहवारी अनियमित हो जाती है या देर से आती है. 2024 में इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी में पब्लिश एक स्टडी के अनुसार, PCOS से ग्रस्त महिलाओं में माहवारी में देरी और मेटाबॉलिक प्रॉब्लम जैसे मोटापा और डायबिटीज भी कॉमन हैं.

थायरॉइड डिसबैलेंस भी करता है परेशान

थायरॉइड ग्लैंड शरीर की मेटाबॉलिक एक्टिविटीज को कंट्रोल करती है और इसके असंतुलन (हाइपोथायरॉइडिज्म या हाइपरथायरॉइडिज्म) से माहवारी प्रभावित हो सकती है. हाइपोथायरॉइडिज्म (कम एक्टिव थायरॉइड) के कारण माहवारी में देरी और भारी ब्लीडिंग हो सकती है, जबकि हाइपरथायरॉइडिज्म (ज्यादा एक्टिव थायरॉइड) के कारण माहवारी जल्दी या अनियमित हो सकती है. 2024 में मैक्स हेल्थकेयर के एक सर्वे में पाया गया कि 15% महिलाओं में थायरॉइड असंतुलन माहवारी में देरी का प्रमुख कारण था.

वजन में अचानक बदलाव

वजन में तेजी से बदलाव होना भी माहवारी चक्र को प्रभावित कर सकता है. दरअसल, 6 महीने के भीतर पांच फीसदी से ज्यादा वजन कम होना माहवारी में देरी का कारण बन सकता है. मोटापा भी एस्ट्रोजन के लेवल को बढ़ाता है, जो ओव्यूलेशन को बाधित कर सकता है. इसके अलावा कुपोषण या एथलीट्स की तरह ज्यादा एक्सरसाइज के कारण भी शरीर में एस्ट्रोजन का उत्पादन कम हो सकता है, जिससे माहवारी अनियमित हो जाती है.

हार्मोनल गर्भनिरोधक भी देती हैं दिक्कत

हार्मोनल गर्भनिरोधक गोलियां, पैच या इंजेक्शन माहवारी चक्र को प्रभावित कर सकते हैं. इनमें मौजूद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन हार्मोन ओव्यूलेशन को रोकते हैं, जिससे माहवारी में देरी या अनियमितता हो सकती है. जब कोई महिला गर्भनिरोधक गोलियां शुरू या बंद करती है तो शरीर को हार्मोनल लेवल के अनुकूल होने में समय लगता है, जिसके कारण माहवारी में देरी हो सकती है.

प्रोलैक्टिन हार्मोन का बढ़ा हुआ स्तर

पिट्यूटरी ग्रंथि से निकलने वाला प्रोलैक्टिन हार्मोन स्तनपान और दूध उत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है. प्रोलैक्टिन का सामान्य से अधिक स्तर माहवारी में देरी का कारण बन सकता है. यह स्थिति आमतौर पर स्तनपान कराने वाली माताओं या पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर (प्रोलैक्टिनोमा) के कारण देखी जाती है. यह हार्मोन ओव्यूलेशन को दबा सकता है, जिससे माहवारी में देरी होती है.

मेनोपॉज या पेरीमेनोपॉज

मेनोपॉज आमतौर पर 45-55 वर्ष की उम्र में होता है. यह माहवारी के स्थायी रूप से बंद होने की स्थिति होती है. इससे पहले का चरण पेरीमेनोपॉज होता है, जो हार्मोनल उतार-चढ़ाव के कारण माहवारी में अनियमितता और देरी का कारण बन सकता है. भारत में 10% महिलाओं में मेनोपॉज 40 वर्ष से पहले (प्रारंभिक मेनोपॉज) शुरू हो सकता है, जिसके कारण माहवारी में देरी या अनियमितता आम है.

पुरानी बीमारियां और दवाएं

डायबिटीज, सेलियक रोग, और अन्य पुरानी बीमारियां हार्मोनल संतुलन को बिगाड़ सकती हैं, जिससे माहवारी में देरी हो सकती है. इसके अलावा, कुछ दवाएं जैसे एंटीडिप्रेसेंट, स्टेरॉयड, और कीमोथेरेपी दवाएं भी मासिक धर्म चक्र को प्रभावित कर सकती हैं. 2023 में जर्नल ऑफ क्लिनिकल मेडिसिन में पब्लिश एक रिसर्च के अनुसार, डायबिटीज से पीड़ित 20% महिलाओं में माहवारी अनियमितता देखी गई.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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